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स्नेह-निर्झर बह गया

छायावाद के प्रवर्तकों में सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का नाम प्रमुख है। 'मैं' शैली अपना कर निराला ने हिन्दी कविता को नई दिशा प्रदान की और छन्दों के बन्धन से मुक्त कर उन्होंने हिन्दी कविता के लिए नई जमीन तैयार की।

स्नेह-निर्झर बह गया है।
रेत ज्यों तन रह गया है।

आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है—“अब यहाँ पिक या शिखी

नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ—

जीवन दह गया है।”
“दिए हैं मैंने जगत् को फूल-फल,

किया है अपनी प्रभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल—

ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है।”

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को, निरुपमा।

बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मैं अलक्षित हूँ, यही

कवि कह गया है।

स्रोत :पुस्तक : निराला संचयिता (पृष्ठ 142)
रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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