News Hindu Global

दिल्ली की कुतुब मीनार मूल रूप से ध्रुव स्तंभ थी ?

दिल्ली की कुतुब मीनार

दिल्ली की कुतुब मीनार

कुतुब मीनार को लेकर चल रहे विवाद में सनातनी पक्ष की तरफ से कहा जा रहा है कि कुतुब मीनार का निर्माण किसी कुतुबुद्दीन ऐबक ने 12वीं शताब्दी में नहीं करवाया था, बल्कि इसे चौथी शताब्दी में बनवाया गया था.

इस स्तंभ को उस समय ‘ध्रुव स्तम्भ’ के नाम से जाना जाता था. ध्रुव स्तम्भ का निर्माण सम्राट विक्रमादित्य के शासन में हुआ था. बताया जाता है कि उनका विशाल साम्राज्य विश्व के 3/4 भाग पर फैला हुआ था.

बतया जाता है कि दिल्ली में आज दिखने वाली कुतुब मीनार वास्तव में ध्रुव स्तंभ था जिसे विष्णु ध्वज नाम से भी जाना जाता था. कहा ये भी जाता है कि विष्णु ध्वज सम्राट विक्रमादित्य के समय से भी पहले से अस्तित्व में था.

ये भी कहा जा रहा है कि इस स्तंभ में जो कुछ अरबी लिपि का उपयोग हुआ है और कुछ चित्र बने हैं वे कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1191 – 1210 ई. के बीच स्थापित किया था, उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों इल्तुतमिश, अलाउद्दीन आदि ने 1315 ई. तक इसमें जोड़-तोड़ किये और फिर इसको कुतुब मीनार नाम से स्थापित किया.

देश में अन्य कई स्थानों के उदाहरण से ये बात सामने आई है कि मुगलिया आक्रमणकारियों ने हिन्दू धर्मस्थलों का रूप बदल कर अपने धर्मस्थलों के रूप में उनको परिवर्तित किया. ऐसा ही यहां भी दिखाई देता है. यदि हम कुतुब मीनार को ऊपर से देखें तो इसमें 24 पंखुड़ियों वाला कमल दिखाई देता है.

कमल निश्चित रूप से मुगलिया प्रतीक नहीं है, लेकिन यह प्राचीन सनातनी प्रतीक है जिसका वेदों में उल्लेख बार बार मिलता है. कहा जाता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का जन्म भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से हुआ था.

कुतुब मीनार से लगा हुआ इलाका महरौली के नाम से जाना जाता है. मूल रूप से ये एक संस्कृत शब्द है मिहिरावली. यह शब्द उस प्राचीन नगर को दर्शाता है जहाँ विक्रमादित्य के दरबार के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराह-मिहिर अपने सहायकों, गणितज्ञों और तकनीकविदों के साथ रहा करते थे.

कुतुब मीनार में 27 नक्षत्र

वराह मिहिर ने खगोलीय अध्ययन के लिए तथाकथित कुतुब मीनार का अवलोकन चौकी के रूप में उपयोग किया. इस मीनार के चारों ओर वैदिक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों को समर्पित मंडप हुआ करते थे.

आज की इस कुतुब मीनार के केंद्र में ध्रुव स्तंभ होने के कारण इस मीनार को ध्रुव स्तंभ के नाम से जाना जाता था. ज्योतिष मान्यता के अनुसार ब्रह्मांड में ध्रुव तारा केंद्र में है.ध्रुव स्तंभ से भी पहले कुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तंभ था, किन्तु उससे भी पहले इसे सूर्य स्तंभ के नाम से जाना था.

अंदर से देखने पर भी इस मीनार के गुंबद में एक दूसरे के भीतर कई कमल लगे हुए हैं जो कि श्री यंत्र के समान दिखाई देते हैं.

कुतुब मीनार गुंबद के अंदर का दृश्य

कुतुबुद्दीन के द्वारा बनाये गये एक शिलालेख से पता चलता है कि उसने इन मंडपों को नष्ट कर दिया था. लेकिन उसमें कहीं ये नहीं कहा गया कि उसने कोई मीनार बनवाई थी. ये भी बताया जा रहा है कि यहां तोड़ दिये गये मंदिर का नाम बदलकर उसे मुगलिया नाम दे दिया गया.

दुख की बात ये है कि भारतीय पुरातत्वविदों ने पहले की सरकारों के दबाव में या उनको खुश करने के लिये इस मीनार में और उसके आसपास नष्ट और विरूपित हिंदी देवताओं की मूर्तियों और रूपांकनों अर्थात चित्रांकनों का अध्ययन किए बिना गलत इतिहास दर्ज किया है.

कुतुब मीनार में हिंदू रूपांकनों को विकृत किया गया

सनातनी पक्ष की तरफ से एक तर्क ये भी दिया जा रहा कि तथाकथित कुतुब मीनार से हटाए गए पत्थरों पर एक तरफ हिंदू चित्र हैं और दूसरी तरफ अरबी अक्षर हैं. उन पत्थरों को अब संग्रहालय में ले जाया गया है.वे स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि मुगलिया आक्रमणकारियों ने हिंदू इमारतों के पत्थर-पहनावे को हटा दिया, छवि को छिपाने के लिए पत्थरों को अंदर से बाहर कर दिया और नए अग्रभाग पर अरबी अक्षर अंकित कर दिए.

परिसर में कई स्तंभों और दीवारों पर संस्कृत शिलालेखों के अंश अभी भी पढ़े जा सकते हैं. बहुत से चित्रों को विकृत किया गया था वे अभी भी विकृत होने के बावजूद कंगनी को सुशोभित करते हैं. मुगलिया वास्तुकला में फूलों के प्रतीकों का उपयोग नहीं किया जाता हैं, लेकिन इस मीनार में पत्थर में कई कमल के प्रतीक हैं.

तथाकथित कुतुब मीनार में मकर तोरणम देखा जा सकता है जो कुतुब मीनार के ऊपर के पैनल में दिखती है. इस ऊपरी हिस्से में उत्कृष्ट सर्पिन हिंदू पैटर्न ‘मकर तोरण‘ नामक पुष्पमाला है जो कि मगरमच्छ के मुंह से निकलती है. यह भारत की ऐतिहासिक इमारतों में एक बहुत ही आम पवित्र हिंदू रूपांकन है.

यहां निचले हिस्से में लगे पत्थरों पर मुगलिया लेखन की छेड़छाड़ और जालसाजी दिखाई देती है. इसमें उन्होंने अलग से कुछ लिखने की कोशिश की है. लगता है पत्थरों पर इस तरह की जालसाजी ने इतिहासकारों को भी धोखा दिया, जिन्होंने अनजाने में उन इमारतों को मुगलिया निर्माण समझ लिया.

सनातन पक्ष बताता है कि मुगल शासकों ने दिल्ली में तथाकथित कुतुब टॉवर के सतह के पत्थरों को तोड़ दिया, और उन्हें उलट दिया और बाहरी हिस्से पर कुछ लिख भी दिया. लेकिन ये भेद तब खुल गया ज वे पत्थर टॉवर से गिरने लगे. पत्थरों के ऐसे टुकड़े टूट कर गिरे जिनमें एक तरफ हिंदू चित्र उकेरे गए हैं और दूसरी तरफ मुगिलया लेखन अंकित है.

इस तथाकथित मीनार पर फ्रिज़ पैटर्न में छेड़छाड़ के संकेत दिखते हैं, जो अचानक या असंगत रेखाओं के मिश्रण में समाप्त होते हैं. मुगलिया लेखन जो ऊपर से किया गया उसमें उनके अक्षरों में कमल की कलियाँ लटकी हुई हिंदू रूपांकनों के साथ मिलाई गई दिखती हैं.

यहां तक कि इस्लामी विद्वान सैयद अहमद खान ने स्वीकार किया है कि यह मीनार एक हिंदू इमारत है.

मीनार का हिंदू नाम विष्णु ध्वज (यानी विष्णु का मानक) उर्फ ​​विष्णु स्तंभ उर्फ ​​ध्रुव स्तंभ (यानी एक ध्रुवीय स्तंभ) था, जो स्पष्ट रूप से एक खगोलीय अवलोकन टॉवर को दर्शाता है।

कुतुब मीनार अभी भी किसी भी इस्लामी संरचना के विपरीत ध्रुव तारे (उत्तरी तारा) की ओर उत्तर की ओर मुंह करके खड़ी है।

हिन्दू पक्ष के अनुसार इस मीनार में सात मंजिलें होती थीं जो सप्ताह के दिनों का प्रतिनिधित्व करती थीं. पर अब उनमें से केवल पाँच ही मौजूद हैं. छठी मंजिल को तोड़ करके नीचे गिराया गया और पास के लॉन में फिर से खड़ा किया गया.

तोड़ दी गई सातवीं मंजिल पर वास्तव में सृष्टि की शुरुआत में वेदों को पकड़े हुए चार मुख वाले ब्रह्मा की एक मूर्ति थी. भगवान ब्रह्मा के ऊपर एक सफेद संगमरमर की छतरी थी जिसमें सोने की घंटी के पैटर्न लगे हुए थे.

सनातनी पक्ष का ये भी कहना है कि कोई भी यह नहीं बता पाया कि एक मुगल शासकों ने कुतुब मीनार पर पवित्र हृदय चक्र (अनाहत) का प्रतीक क्यों बनाया.

अनहत का प्रतीक

और भी कई ऐसे तर्क एवं साक्ष्य मौजूद हैं जो कुतुब मीनार मीनार की उत्पत्ति को लेकर और भी बहुत कुछ साबित कर सकते हैं.

 

Exit mobile version