(औ3म श्री गणेशाय नमः)
तं तथा कृपयाविष्ट मश्रुपूर्णाकुलेक्षणम
विषीदन्तमिदं वाक्य मुवाच मधुसूदनः !! (श्रीमदभागवत गीता/अध्याय-2/श्लोक-1)
(रणक्षेत्र में अपने रथ के पिछले भाग में शोक में डूबे घुटनों के बल बैठे हुए अर्जुन को देख कर उसके यह कहने पर कि मैं युद्ध नहीं करूंगा, तब)
(शब्दानुवाद)
प्रभु श्रीकृष्ण ने कहा – हे अर्जुन, तुम असमय में इस मोह भाव में क्यों डूब रहे हो? यह मोह श्रेष्ठ पुरुषों का आचरण नहीं है, यह आचरण न स्वर्ग को देने वाला है और न ही कीर्ति प्रदान करने वाला है!
(व्याख्या)
प्रभु श्रीकृष्ण ने जब देखा कि युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व भी महाधनुर्धारी अर्जुन अचानक मोहग्रस्त होकर शोकाकुल हो गये और उन्होंने अपना गांडीव धनुष रख दिया और रथ के पिछले भाग में जा कर घुटनों के बल बैठ गये. उन्होंने अपने परम मित्र श्री कृष्ण जी से, जो उनके रथ-सारथी थे, यह स्पष्ट कह दिया कि मैं युद्ध नहीं करूंगा. ऐसी स्थिति में प्रभु श्री कृष्ण अचंभित हो गये और उन्होंने जैसे उलाहना देने के स्वर में अर्जुन से कहा – अर्जुन यह समय मोह में डूबने का नहीं है. इस तरह का आचरण तुम्हे शोभा नहीं देता. यह आचरण श्रेष्ठ पुरुषों को न स्वर्ग प्रदान करने वाला है न इससे उन्हें कीर्ति की प्राप्ति होती है.