8 am Metro (2023)
इन दिनों कम फिल्में देख रही हूँ लेकिन कल रात थोड़ा वक़्त और एकांत मिला तो दो फिल्में एक साथ देख डालीं। इन दोनों को कब से विशलिस्ट में रखा। पहले बात करती हूँ पिछले साल आयी युवा निर्देशक राज रचाकोंडा की फ़िल्म 8 ए एम मेट्रो की। मेरी वाल पर ही कई मित्रों ने इसके लिये सजेस्ट किया था कि मुझे इसे जरूर देखना चाहिये। देखने में बहुत वक़्त लग गया लेकिन कह सकती हूँ कि मेरे वक़्त का इससे बेहतर उपयोग हो ही नहीं सकता।
मेरा फिल्मों को देखने का नज़रिया और उनसे मेरी अपेक्षा कुछ अलग है। यही कारण है कि बहुत सी हिट या पॉपुलर फिल्में जो अरबों की कमाई करती हैं मेरी उदासीनता की शिकार हो जाती हैं। लेकिन सुखद बात यह है कि आजकल बड़े सितारों पर बिग बजट की फिल्मों से हटकर जो फिल्में ओटीटी के दर्शकों को ध्यान में रखकर बन रही हैं वहाँ मेरी पसंद की खूब फिल्में मिलने लगी हैं। मेरे सिनेमा की तरफ़ लौटने में इन फिल्मों का बड़ा योगदान है।
तो फ़िल्म की कहानी पर बात करते हैं। फ़िल्म के दो अहम किरदार हैं इरावती (सैयामी खेर) और प्रीतम (गुलशन देवैया)। इरावती एक गृहिणी है जिसके पास पति, बच्चे, सुखी गृहस्थी और कवि मन है। इरा कविताएँ लिखती है और यही कविताएँ पूरी फिल्म में उसके स्वर में पृष्ठभूमि में गूँजती हैं। मुझे शिद्दत से वर्षों पहले की एक स्त्री याद आ गई जो घर, ऑफिस, पति, बच्चों, रिश्तों नातों के बीच दौड़ते हुए भी कविता को हर जगह साथ लिये हुए चलती थी। जिसकी बचपन से डायरियाँ भरती रहीं लेकिन तब कविताएँ कभी कभार ही खुली हवा में सांस ले पाती थीं।
इरा की छोटी बहन रिया माँ बनने वाली है। किसी कॉम्प्लिकेशन के चलते वह हॉस्पिटल में एडमिट हो जाती है। उसका पति विदेश गया है और इरा को आपातकालीन परिस्थितियों में अकेले हैदराबाद जाना पड़ता है। इरा की एक परेशानी उसे उलझन में डाल रही है वो यह कि वह ट्रेन के सफ़र में कम्फर्ट फील नहीं करती। पति बहुत व्यस्त है, इतने अधिक कि वह थमकर इरा की परेशानी तक नहीं सुनना चाहता। हारकर इरा को सफ़र पर निकलना पड़ता। ट्रेन में उसकी हालत खराब हो जाती पर किसी तरह वह हैदराबाद पहुँच जाती है और आगे के लिये ऑटोरिक्शा ले लेती है जो बहुत महंगा है। इसके बाद उसे रोज बहन के घर से हॉस्पिटल तक मजबूरन सुबह 8 बजे की मेट्रो से सफर करना पड़ता है।
पहले ही दिन उसे मेट्रो स्टेशन पर पैनिक अटैक आता है। उसकी मदद एक अनजान सहयात्री प्रीतम (गुलशन देवैया) करता है।
प्रीतम किताबों का शौक़ीन है और किताब के माध्यम से वह इरा की परेशानी का हल ढूंढकर उसकी मदद करता है। दो इंट्रोवर्ट लोगों में धीरे धीरे अच्छी दोस्ती हो जाती है। सहजता के एक बिंदु पर इरा अपना मन खोलने लगती है। उसके मन के भीतर की गांठें थोड़ी सी नमी, थोड़ी सी अपनेपन की ऊष्मा से पिघलने लगती है। कहानी इसके बाद भी बहुत लंबी है लेकिन उसे आप फ़िल्म देखकर ही जानें तो बेहतर। मेरे लिये तो यही बिंदु फ़िल्म का हासिल है।
पति पत्नी के परस्पर रिश्तों, भरोसे, स्पेस और तवज्जो, और एंजायटी, पैनिक अटैक, डिप्रेशन जैसे मेंटल हैल्थ से जुड़े विषयों पर बहुत ही शानदार तरीके से बिना लाउड हुए, बिना कोई सवाल उठाए यह फ़िल्म कितनी ही जरूरी बातों के सिरे आपको थमा जाती है ये आप देखकर ही जान पाएंगे। पूरी फिल्म के बैकड्रॉप में गुलज़ार की लिखी कविताएँ सैयामी की आवाज़ में चलती रहती हैं। हिंदी किताबों के घटते दर्शकों पर बात उठाती है यह फ़िल्म, बाकायदा रेत समाधि का ज़िक्र आता है। मुझे तो बहुत जगह स्ट्रांग कनेक्शन फील हुआ। शायद आपको भी हो।
फ़िल्म की कहानी थोड़ी स्लो है लेकिन थमकर, ठहरकर देखने वालों के लिये ये फ़िल्म एक ट्रीट है। मुझे दो पसंदीदा फिल्में थ्री ऑफ अस और करीब करीब सिंगल याद आती रहीं। इसी से आप फ़िल्म के ट्रीटमेंट का अनुमान लगा सकते हैं। बाकी मुझे शुरुआत में भी और भी कई जगह लगा कि फ़िल्म की कहानी पर बीते दौर की छाया है जो बाद में स्पष्ट हो गया कि फ़िल्म 1989 में लिखे गए लेखक मलाडी वेकण्ट कृष्ण मूर्ति के उपन्यास अंदामिना जीवितम पर आधारित है। (नाम गूगल से लिये हैं जिनका उच्चारण अलग भी हो सकता है।) दूसरी दिक्कत मुझे नायक प्रीतम की कहानी से है जिस पर बात करना स्पॉइलर देना होगा। मैं आपका मज़ा खराब नहीं करना चाहती तो पहले फ़िल्म देखिये हम बाद में किसी पोस्ट में कहानी डिसकस करेंगे।
सैयामी के पास सुंदर चेहरा, बोलती हुई बल्कि सामने वाले के दिल में उतर जाने वाली भूरी आँखें, आकर्षक देहयष्टि ही नहीं बल्कि उषा किरण (दादी) और तन्वी आजमी (बुआ) की लीगेसी भी है तभी इतनी सहजता से वे महाराष्ट्रीय स्त्री इरावती की भूमिका में उतरती हैं और सैयामी कहीं पीछे छूट जाती है, रह जाती है तो बोलती आँखों और कम शब्दों वाली इरा जो अपने मन को अपनी कविताओं में ही अभिव्यक्त करती है। वेबसीरिज या फिल्में कम देखती हूँ तो बाकी सब कलाकार मेरे लिये अपरिचित थे। यहाँ तक कि प्रीतम के रोल में गुलशन का चेहरा तो पहचाना लगा पर नाम से पहचान के तार कहीं नहीं जुड़े। मुझे उनका काम बेहद पसंद आया, मैं आगे से उनकी फिल्मों को ज्यादा ध्यान से देखना चाहूँगी। मुझे प्रीतम की पत्नी मृदुला के रोल में कल्पिका गणेश और इरा की छोटी बहन रिया के रोल में निमिषा नैयर भी पसंद आयीं।
बाकी संगीत अच्छा है। संवाद मन को छूते हैं। हैदराबाद की सुंदर लोकेशन्स के लिये भी देख सकते हैं। बहुत लाउड, मारधाड़ वाली या ओवर ड्रैमेटिक फिल्मों के शौकीन लोगों को शायद फ़िल्म स्लो लगे पर मीनिंगफुल सिनेमा पसंद करते हैं तो ये फ़िल्म यूट्यूब और ज़ी 5 पर आपकी प्रतीक्षा कर रही है, देख डालिये।
. Anju Sharma