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Sanskrit: महर्षि अरविन्द घोष स्मृति अन्तर्जालीय अन्तर्राष्ट्रीय 11 दिवसीय संस्कृत सम्भाषण शिविर का उद्घाटन सम्पन्न

 

महर्षि अरविन्द घोष स्मृति अन्तर्जालीय अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण शिविर का उद्घाटन समारोह सम्पन्न.

सर्वत्र संस्कृतम् एवं विहार संस्कृत संजीवन समाज, पटना के तत्वावधान में “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” के अन्तर्गत आयोजित महर्षि अरविन्द घोष स्मृति अन्तर्जालीय दशदिवसात्मक अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण शिविर का उद्घाटन समारोह भव्य रूप से सम्पन्न हुआ।

यह आयोजन महर्षि अरविन्द घोष के जीवन और उनके विचारों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार को समर्पित था।

डॉ. मुकेश कुमार ओझा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, ने अध्यक्षीय उद्बोधन में महर्षि अरविन्द को आधुनिक भारत के महान चिंतक और आध्यात्मिक गुरु के रूप में वर्णित किया।

उन्होंने कहा, “महर्षि अरविन्द ने भारतीय संस्कृति और योग के माध्यम से जीवन के परम उद्देश्य को समझाने का प्रयास किया। संस्कृत भाषा उनके दर्शन का मूलाधार है।”

डॉ. अनिल कुमार सिंह, उद्घाटनकर्ता और उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के सचिव, ने अपने संबोधन में महर्षि अरविन्द के योगदान को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा, “महर्षि अरविन्द ने भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने का जो स्वप्न देखा था, वह संस्कृत के माध्यम से ही साकार हो सकता है। यह शिविर उनकी स्मृति को नमन करते हुए संस्कृत के प्रचार-प्रसार का एक महत्वपूर्ण कदम है।”

मुख्य अतिथि धर्मेन्द्र पति त्रिपाठी, संयुक्त निदेशक, पेंशन विभाग, उत्तर प्रदेश, ने कहा, “महर्षि अरविन्द केवल एक दार्शनिक नहीं, बल्कि भारत को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से पुनर्स्थापित करने वाले महापुरुष थे। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। संस्कृत भाषा उनके विचारों को समझने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।”

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विशिष्ट अतिथि और संस्कृत गीतकार डॉ. अनिल कुमार चौबे ने कहा, “महर्षि अरविन्द का दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का सार है। उनकी शिक्षाओं के प्रसार के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है।”

वैदिक मंगलाचरण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। उग्र नारायण झा, जो इस अभियान के उपाध्यक्ष हैं, ने मंत्रोच्चारण करते हुए महर्षि श्री अरविन्द की आध्यात्मिक दृष्टि और उनकी शिक्षाओं का स्मरण किया।

डॉ. रागिनी वर्मा, स्वागत भाषण में, महर्षि अरविन्द के जीवन और उनके दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, “महर्षि अरविन्द का जीवन आत्मनिर्भर भारत और विश्वबंधुत्व की प्रेरणा देता है। संस्कृत उनकी शिक्षाओं का वाहक है।”

मंच संचालन करते हुए पिंटू कुमार, राष्ट्रीय संयोजक, ने महर्षि अरविन्द के उद्धरणों को प्रस्तुत किया और शिविर के उद्देश्यों को प्रतिभागियों के समक्ष प्रभावशाली ढंग से रखा।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. लीना चौहान ने किया। उन्होंने शिविर की सफलता के लिए सभी अतिथियों और आयोजकों का आभार व्यक्त किया और कहा, “महर्षि अरविन्द की स्मृति को जीवंत रखते हुए हम संस्कृत के माध्यम से उनके विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास करेंगे।”

इस संस्कृत सम्भाषण शिविर के उद्घाटन समारोह में भारत के विभिन्न राज्यों यथा बिहार से डॉ उषा यादव, पटना विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग से तन्नु कुमारी एवं मुरलीधर शुक्ल, असम से सुजाता घोष एवं पवन छेत्री, दिल्ली से विजेन्द्र सिंह, उत्तरप्रदेश से सौरभ शर्मा, कश्मीर से कोमल परिहार, बंगाल से हेमन्ती बेएन आदि 50 से अधिक लोग जुड़े रहें।

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