Friday, August 8, 2025
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Acharya Anil Vats writes: अंतर क्या है चरणामृत और पंचामृत में ? 

Acharya Anil Vats के इस लेख से जानिये कि दोनो एक जैसे लगने वाले प्रसाद मूल रूप से अलग-अलग होते हैं..

Acharya Anil Vats के इस लेख से जानिये कि दोनो एक जैसे लगने वाले प्रसाद मूल रूप से अलग-अलग होते हैं..

जब भी घर या मंदिर में पूजन होता है, तब चरणामृत अथवा पंचामृत ग्रहण कराया जाता है। किंतु बहुत से लोग इनकी महिमा, निर्माण प्रक्रिया और स्वास्थ्य लाभों से परिचित नहीं होते।

 चरणामृत का अर्थ और महत्व

‘चरणामृत’ का शाब्दिक अर्थ है—भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत जल। शास्त्रों के अनुसार, यह पवित्र जल सभी रोगों का नाश करता है और पुनर्जन्म से मुक्ति दिलाता है:

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्। विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।

चरणामृत आमतौर पर तांबे के पात्र में रखा जाता है जिसमें तुलसी-पत्र, तिल व अन्य औषधीय तत्व मिलाए जाते हैं। तांबे और तुलसी के संयोजन से यह जल औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है।

 सेवन के नियम

हमेशा दाहिने हाथ से श्रद्धा एवं शांति के साथ ग्रहण करें।

चरणामृत ग्रहण करने के बाद सिर पर हाथ न फेरें; शास्त्रों के अनुसार यह अशुभ माना जाता है।

स्वास्थ्य लाभ

आयुर्वेद के अनुसार यह बुद्धि, स्मरण शक्ति, मानसिक शांति और पौरुष शक्ति को बढ़ाता है।

तुलसी एवं तांबे के गुणों के कारण रोगों से रक्षा करता है।

 पंचामृत का अर्थ और आध्यात्मिक भावार्थ

‘पंचामृत’ का अर्थ है पांच पवित्र द्रवों से बना अमृत—दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर। यह भगवान के अभिषेक और प्रसाद स्वरूप प्रदान किया जाता है।

 पंच प्रतीकों की व्याख्या

दूध: शुद्धता का प्रतीक, जीवन को निष्कलंक बनाना चाहिए।

दही: समरसता का संकेत, सद्गुण अपनाकर दूसरों को प्रेरित करना।

घी: स्नेह और आत्मीयता का प्रतीक।

शहद: शक्ति और मिठास का मिलाजुला रूप, जीवन में संतुलन जरूरी।

शक्कर: मधुरता का संकेत, हर व्यवहार में मिठास हो।

यह पंच तत्व आत्म-विकास के पांच स्तंभ माने जाते हैं।

लाभ

यह मिश्रण शरीर को पुष्ट, रोगमुक्त और मानसिक रूप से शांत बनाए रखने में सहायक होता है।

सीमित मात्रा में ग्रहण करना उत्तम होता है।

 

 

 

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