Friday, August 8, 2025
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Sarvesh Tiwari Shrimukh writes: पेशवा बालाजी बाजीराव और मंदिरों पर हमले की गंदी नीयत वाला लुटेरा अब्दाली

Sarvesh Tiwari Shrimukh के इस लेख से भी यही सिद्ध होता है कि मुगलिया लुटेरे इस देश में अपने मजहब का प्रचार करने आये थे -लूटपाट और हमला तो बस बहाना था..

Sarvesh Tiwari Shrimukh के इस लेख से भी यही सिद्ध होता है कि मुगलिया लुटेरे इस देश में अपने मजहब का प्रचार करने आये थे -लूटपाट और हमला तो बस बहाना था..
सन 1757 की बात है। तुर्क लुटेरा अहमद शाह अब्दाली लूटपाट करता पंजाब में घुसा। आम बाजारों को लूटना, सामान्य जन का सामूहिक कत्लेआम, स्त्रियों बच्चों को गुलाम बनाना तो सामान्य बात थी, पर इसके अतिरिक्त एक और काम हुआ। अमृतसर स्वर्ण मंदिर को अपवित्र कर दिया गया। तालाब में गाय काट कर डाली गई, और मन्दिर पर अब्दाली का कब्जा हो गया। अब्दाली लौटा तो अपने बेटे को पंजाब का सूबेदार बना गया।
सिख समुदाय के पास तब इतना बल नहीं था कि वे अपने स्वर्ण मंदिर को मुक्त करा सकें। ऐसे विकट समय मे समूचे भारतवर्ष में एक ही व्यक्ति था, जिसपर उनकी उम्मीद टिक गई। और फिर मदद के लिए एक करुण चिट्ठी पहुँची पुणे। मराठा साम्राज्य के तात्कालिक पेशवा बालाजी बाजीराव के पास…
वे शिवाजी के सैनिक थे, हिंदुत्व के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर देने वाले योद्धा! महान पेशवा बाजीराव बल्लाळ की महान शौर्य परम्परा के वाहक! वे भला कैसे न आगे आते?
तो पेशवा ने आदेशित किया अपने छोटे भाई, सेनापति पण्डित रघुनाथ राव राघोबा को। रघुनाथ राव के लिए यह सत्ता का कार्य नहीं, धर्म का कार्य था। वे अपनी सेना के साथ पहुँचे सरहिंद, और एक झटके के साथ समूचा पंजाब मुगलों और अफगानों के अत्याचार से मुक्त हो गया।
स्वर्ण मंदिर पुनः पवित्र हुआ। वहाँ की पवित्र पूजा परम्परा पुनः स्थापित हुई। धर्म का ध्वज पुनः लहराने लगा।
पर रुकिये। क्या कथा यहीं पूर्ण होती है? नहीं। कथा तो अब प्रारम्भ होती है। सन 1761 में अहमद शाह अब्दाली पुनः लौटा। पानीपत के मैदान में वही मराठे भारत का ध्वज लिए अब्दाली का सामना करने के लिए खड़े थे। देश की अधिकांश हिन्दू रियासतें अपनी सेना लेकर उनके साथ खड़ी थीं। पर सिक्ख? नहीं। वे नहीं आये। यहाँ तक कि मराठा सेना के भोजन के लिए अन्न देने तक से मना कर दिया।
युद्ध मे मराठों की पराजय हुई। सदाशिव राव, विश्वास राव और असंख्य मराठा सरदारों को वीरगति प्राप्त हुई। उधर पुत्र और भाई की मृत्यु से टूट गए पेशवा बालाजी की भी मृत्यु हो गयी। कहते हैं, तब समूचे महाराष्ट्र में एक भी घर ऐसा नहीं था जिसके एक दो सदस्य वीरगति न प्राप्त किये हों। अब्दाली की सेना में भी केवल एक चौथाई सैनिक बचे थे।
रुकिये तो। पानीपत युद्ध जीतने के बाद अपनी बची खुची सेना और हजारों भारतीय स्त्रियों बच्चों को गुलाम बना कर लौटता अब्दाली उसी पंजाब के रास्ते से गया। किसी ने उस लुटेरे के ऊपर एक पत्थर तक नहीं फेंका जी। वापस पहुँच कर अब्दाली ने 727 गांवों की जागीरदारी दी, जिससे पटियाला राज्य की स्थापना हुई।
पर क्या अब्दाली रुका? नहीं दोस्त। वह एक साल बाद ही वापस लौटा और सबसे पहले बारूद से स्वर्ण मंदिर को उड़वा दिया।
पता नहीं कहानियां लोग भूल कैसे जाते हैं, जबकि किताबें भरी पड़ी हैं। विकिपीडिया पर ही इतना कुछ लिखा हुआ है कि आंखें खुल जाँय, पर पढ़ना किसको है…
खैर! आज 24 जून है, आज ही स्वर्ण मंदिर के उद्धारक पेशवा बालाजी बाजीराव की पुण्यतिथि है। नमन कीजिये।
किसी ने याद दिलाया आज!
(सर्वेश श्रीमुख)
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