Modi in SCO: भारत को केन्द्र में रख कर वैश्विक गठजोड़ की ऐसी राजनीति पहले कभी देखी नहीं गई ..न ही मोदी जैसा कोई देशभक्त राष्ट्राध्यक्ष भारत को मिला जो दुनिया के दरोगा को दबंगई सिखा सके ! ..
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक साथ मौजूदगी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चौंका दिया है। ट्रंप ने सोचा था कि वे मोदी जी पर दबाव बनाकर अपनी बात मनवा लेंगे, लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उल्टा। अपने अहंकार और निजी स्वार्थ के चलते उन्होंने मोदी जी जैसे सच्चे और भरोसेमंद मित्र को खो दिया।
राजनीति में स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होते
चाणक्य नीति कहती है कि राजनीति और कूटनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता। देशहित के अनुसार ही किसी राष्ट्र से संबंध बनाए जाते हैं। मोदी जी ने इसी सिद्धांत को अपनाते हुए भारत के विरोधी देशों से भी संवाद स्थापित किया और भारत की प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर पर ऊँचाई तक पहुँचाया। आज दुनिया के अधिकांश देश भारत के समर्थन में हैं, कुछ गिने-चुने अपवादों को छोड़कर।
चीन के साथ संबंधों की सच्चाई
चीन के साथ भारत के संबंध कम्युनिस्ट शासन के आने के बाद से ही तनावपूर्ण रहे हैं। चीन की विस्तारवादी नीति ने भारत के प्रति शत्रुता को जन्म दिया, जो मोदी जी के कार्यकाल में और अधिक स्पष्ट हो गई। चीन पर भरोसा करना मुश्किल है। कोरोना महामारी के बाद चीन की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई है और मोदी जी ने उसकी रणनीतिक ताकत को भी चुनौती दी है। अब चीन भारत से सहयोग चाहता है, इसलिए मीठी बातें कर रहा है, लेकिन मोदी जी जानते हैं कि कब और कैसे अपना हित साधना है।
रूस के साथ सशक्त होते समीकरण
रूस के साथ भी पहले संबंध उतने मजबूत नहीं थे। जब सोवियत संघ था, तब वह भारत से मजबूरी में दोस्ती का दिखावा करता था। लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद और मोदी-पुतिन की जोड़ी बनने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में गहराई आई है। वैसे भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हर देश अपने स्वार्थ के अनुसार संबंध बनाता है, भावनाओं की इसमें कोई जगह नहीं होती।
अमेरिका की भूमिका और ट्रंप की सोच
अमेरिका कभी किसी का स्थायी मित्र नहीं रहा है। वह हमेशा अपने हितों के लिए काम करता है और कई बार दुनिया भर में सरकारों को बदलने के लिए तख्तापलट भी कराता रहा है। ट्रंप को दक्षिणपंथी नेता माना जाता है और उनके पहले कार्यकाल में उन्होंने कुछ साहसिक कदम उठाए थे, जैसे ‘रैडिकल इस्लामिक टेररिस्ट’ शब्द का प्रयोग करना और अवैध मुस्लिम अप्रवासियों पर सख्ती बरतना। उन्होंने अमेरिका में उनके प्रवेश पर रोक भी लगाई थी। आर्थिक नीतियों में भी उन्होंने विकास की दिशा में काम किया।
लेकिन जब वामपंथी नेता जो बाइडेन सत्ता में आए, तो उन्होंने ट्रंप की नीतियों को पलट दिया। बाइडेन ने डीप स्टेट के सहारे दक्षिण-पूर्वी एशिया में तख्तापलट कराए और उन्हें लगा कि भारत को भी इसी तरह अस्थिर किया जा सकता है। इस चाल से भारतीय जनता निराश हुई और उन्हें ट्रंप में उम्मीद की किरण दिखाई दी। लोगों को लगा कि ट्रंप भारत के सच्चे मित्र हैं और भारत के हित में काम करेंगे।
ऑपरेशन सिंदूर और ट्रंप की प्रतिक्रिया
‘ऑपरेशन सिंदूर’ से अमेरिका और ट्रंप के निजी हितों को गहरा झटका लगा, जिससे ट्रंप बौखला गए और अपनी असली सोच सामने आ गई। ट्रंप को लगता है कि डीप स्टेट के सहारे वे भारत और मोदी सरकार को अस्थिर कर देंगे, लेकिन यह उनकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। अपने स्वार्थ के चलते ट्रंप ने न सिर्फ भारत से दूरी बना ली, बल्कि अमेरिका की भी छवि को नुकसान पहुँचाया।
अब ट्रंप बार-बार अपनी बातों और नीतियों में बदलाव कर रहे हैं, जैसे गिरगिट रंग बदलता है, लेकिन इससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं हो रहा।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी पारिजात)