Tariff War: सिटी बैंक के भारत के टॉप बैंकर का मानना है कि भारत के लिए टैरिफ एक गंभीर चुनौती है। इस झटके का सबसे बड़ा असर रोजगार और छोटे उद्योगों पर पड़ेगा..
अर्थशास्त्री और सिटीबैंक के भारत प्रमुख डॉ. समीरन चक्रवर्ती ने कहा कि भारत को अब अपनी घरेलू मांग यानी डोमेस्टिक डिमांड को मज़बूत करना होगा। उनका कहना है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार भारत के खिलाफ हो जाते हैं, तो देश की अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए घरेलू उपभोग और निवेश ही सबसे बड़ा सहारा बन सकते हैं।
उन्होंने साफ तौर पर कहा कि टैरिफ के असर को कम करने के लिए भारत को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।
डॉ. चक्रवर्ती ने बताया कि अमेरिका ने भारत पर कुल 50% टैरिफ लगा दिया है। यह कोई मामूली झटका नहीं है, बल्कि यह भारत के भविष्य के विकास को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने यह बात मुंबई में आयोजित इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2025 में कही। इस दौरान उन्होंने Business Today के ग्रुप एडिटर सिद्धार्थ जराबी से बातचीत में कई अहम बातें साझा कीं।
उनका कहना है कि भारत के लिए टैरिफ एक गंभीर चुनौती है। इस झटके का सबसे बड़ा असर रोजगार और छोटे उद्योगों पर पड़ेगा।
टैरिफ से बढ़ सकता है आर्थिक संकट
डॉ. चक्रवर्ती ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए, तो देश में बड़े पैमाने पर नौकरियों में कटौती यानी छंटनी और औद्योगिक मंदी देखने को मिल सकती है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को अभी से ऐसे उपाय करने चाहिए जो उन सेक्टरों को राहत दें जो इस टैरिफ से प्रभावित हो सकते हैं। साथ ही, घरेलू मांग को बनाए रखना भी ज़रूरी है, क्योंकि अगर मांग घटती है तो कंपनियों को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
ग्लोबलाइज़ेशन से प्रोटेक्शनिज़्म की ओर बढ़ रही दुनिया
डॉ. चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि पूरी दुनिया धीरे-धीरे ग्लोबलाइज़ेशन (वैश्वीकरण) से हटकर प्रोटेक्शनिज़्म (संरक्षणवाद) की ओर बढ़ रही है। अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े देश अब अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए ज़्यादा टैरिफ और जुर्माने लगा रहे हैं। ऐसे माहौल में भारत के लिए सिर्फ निर्यात पर आधारित रणनीति सुरक्षित नहीं रह सकती।
इसलिए भारत को अपनी नीति में बदलाव करना होगा और घरेलू मांग व निवेश पर ज़्यादा ध्यान देना होगा।
घरेलू मांग को मज़बूत करना ज़रूरी
डॉ. चक्रवर्ती ने दोहराया कि भारत को अब अपनी घरेलू मांग को मज़बूत करना होगा। अगर वैश्विक बाज़ार भारत के खिलाफ हो जाते हैं, तो घरेलू उपभोग और निवेश ही अर्थव्यवस्था को संभाल सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर GST में कटौती जैसी नीतियां पहले लागू की जातीं, तो बेहतर नतीजे मिल सकते थे। लेकिन अब ये कदम मजबूरी में उठाने पड़ रहे हैं, क्योंकि बाहरी दबाव बहुत बढ़ चुका है।
विकास की रणनीति में बदलाव की ज़रूरत
डॉ. चक्रवर्ती ने साफ कहा कि भारत को अपनी लंबी अवधि की विकास रणनीति में बदलाव करना होगा। उन्होंने बताया कि पिछले 30–40 सालों में कई देशों ने तेज़ी से विकास किया, लेकिन वो विकास मुख्य रूप से निर्यात पर आधारित था। अब वही रास्ता जोखिम भरा हो गया है। इसलिए भारत को अपने निवेश, उपभोग और घरेलू सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी पारिजात)