Deepjyoti Deep writes :गाँधी समर्थक और गाँधी वादी विचारधारा के लोगों को औचित्यबोध और सत्यबोध वाले ऐतिहासिक जागरण की आवश्यकता है..
देश जाने कब से गर्दिश मे सो रहा था
धरती सिसक रही थी
आसमान रो रहा था
हर तरफ थे लुटेरे गद्दार और अय्यारी
मेरे भारत देश मे ये क्या हो रहा था
भारत के दो टूक किये
नेताओं की फितरत
कितनी हरजाई थी
विस्मिल फंदे पर झूला
भगत सिंह ने भी फांसी पाई थी
और तुम कहते हो कि
आजादी तो चरखे से आई थी?
कमरे में बैठ मंत्रणा करते
थे नरम दल के कुछ नेता
बाहर मैदानों में लड़ते थे
आजादी के शूर प्रणेता
ना जाने कितने वीरों ने
घोर यातना पाई थी
और तुम कहते हो कि
आजादी तो चरखे से आई थी?
नेता मान लिया था सबने कि
कुछ तो न्याय सही होगा
कहीं हो रहे थे दंगे तो
कुछ तो ठीक कहीं होगा
पर ऐसा कुछ भी ना देखा
आपस में छिड़ी लड़ाई थी (नेहरू -जिन्ना )
और तुम कहते हो कि
आजादी तो चरखे से आई थी?
जब जलियाँ वाला बाग में डायर
चला रहा था गोली
तब खेल रहा था अमृतसर
अंग्रेजों के संग खून की होली
नन्हे बच्चों संग माँ ओ ने
कुएं में छलांग लगाई थी
और तुम कहते हो कि
आजादी तो चरखे से आई थी?
धर्म की रक्षा का मान
मंगल पांडे ने दिखलाया
उसकी हुंकारों को सुनकर
ब्रिटिश महकमा थर्राया
लन्दन जा पहुंची विक्टोरिया
डर से वो घबराई थी
और तुम कहते हो कि
आजादी तो चरखे से आई थी?
जंगल जंगल बस्ती बस्ती
गूंज रहा था यह नारा
यहाँ ना किसी का राज चलेगा
भारत है सिर्फ हमारा
दूर दूर कोने कोने में सबने
क्रांति की मशाल जलाई थी
और तुम कहते हो कि
आजादी तो चरखे से आई थी?
‘ सर्वधिकार सुरक्षित ‘
(दीपज्योति ‘दीप’)