Hindusthan First: भगवान कृष्ण ने अपनी चेतावनी में जिस चुनौती का उल्लेख किया था आज भारत में वह सर्वत्र देखने को मिल रही है..अब समय आ गया है कि हिन्दू विजय के लिये रणभूमि में उतरे !
महाभारत की समाप्ति के बाद हस्तिनापुर में पाण्डवों के राज्याभिषेक के बाद जब श्री कृष्ण द्वारिका जाने लगे तो धर्मराज युधिष्ठिर उनके रथ पर सवार हो कर कुछ दूर तक उन्हें छोड़ने के लिए चले गए…
लेकिन, जाते भगवान श्रीकृष्ण ने देखा, धर्मराज के मुख पर उदासी ही पसरी हुई थी.
उन्हें उदास देखकर भगवान श्री कृष्ण ने मुस्कुरा कर पूछा…
“क्या हुआ भइया ?
क्या आप अब भी खुश नहीं ?”
इस पर युधिष्ठिर ने उसी उदासी के साथ कहा : “प्रसन्न होने का अधिकार तो मैं इस महाभारत युद्ध में हार आया हूँ केशव…!
मैं तो यह सोच रहा हूँ कि जो हुआ वह ठीक था क्या ?”
युधिष्ठिर का उत्तर अत्यंत मार्मिक था.
युधिष्ठिर की ऐसी बातें सुनकर श्री कृष्ण खिलखिला उठे और बोले : “क्या हुआ भइया…!
यह किस उलझन में पड़ गए आप ?”
“हँस कर टालो मत अनुज !
मेरी विजय के लिए इस युद्ध में तुमने जो जो कार्य किया है, वह ठीक था क्या ?
पितामह का वध, कर्ण वध, द्रोण वध, यहाँ तक कि अर्जुन की रक्षा के लिए भीमपुत्र घटोत्कच का वध कराना…
यह सब ठीक था क्या ?
क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुमने अपने ज्येष्ठ भ्राता के मोह में वह किया जो तुम्हें नहीं करना चाहिए था ?”
धर्मराज बड़े भाई के अधिकार के साथ कठोर प्रश्न कर रहे थे.
अब श्री कृष्ण गम्भीर हो गए और बोले :
“भ्रम में न पड़िये बड़े भइया !
यह युद्ध क्या आपके राज्याभिषेक के लिए लड़ा गया था ?
नहीं….!
आप तो इस कालखण्ड के करोड़ों मनुष्यों के बीच एक सामान्य मनुष्य भर हैं.
यदि आप स्वयं को राजा मान कर सोचें… तब भी इस समय संसार में असंख्य राजा हैं और असंख्य आगे भी होंगे.
इस भीड़ में आप बहुत छोटी इकाई हैं धर्मराज…
तो फिर, मैं आपके लिए कोई युद्ध क्यों लड़ूंगा ?”
श्री कृष्ण की बातें सुनकर युधिष्ठिर आश्चर्य में डूब गए.
और, धीमे स्वर में बोले, “फिर…?
फिर यह महाभारत क्यों हुआ..?”
अब श्री कृष्ण ने बताया : यह युद्ध आपकी स्थापना के लिए नहीं अपितु धर्म की स्थापना के लिए हुआ.
यह भविष्य को ध्यान में रखते हुए जीवन संग्राम के नए नियमों की स्थापना के लिए हुआ.
महाभारत हुआ.
ताकि, भविष्य का भारत सीख सके कि विजय ही धर्म है…
वो चाहे जिस प्रयत्न से मिले.
यह अंतिम धर्मयुद्ध है धर्मराज.
क्योंकि, यह वो अंतिम युद्ध है जो धर्म की छाया में हुआ है.
भारत को इसके बाद उन बर्बरों का आक्रमण सहना होगा जो केवल सैनिकों पर ही नहीं बल्कि निर्दोष नागरिकों, स्त्रियों, बच्चों और यहाँ तक कि सभ्यता और संस्कृति पर भी प्रहार करेंगे.
उन युद्धों में यदि भारत सत्य असत्य, उचित अनुचित के भ्रम में पड़ कर कमजोर पड़ा और पराजित हुआ तो उसका दण्ड समूची संस्कृति को युगों युगों तक भोगना पड़ेगा.
आश्चर्यचकित युद्धिष्ठर चुपचाप श्री कृष्ण को देखते रहे.
श्री कृष्ण ने फिर कहा…. “भारत को अपने बच्चों में विजय की भूख भरनी होगी धर्मराज.
यही मानवता और धर्म की रक्षा का एकमात्र विकल्प है.
क्योंकि, इस सृष्टि में एक आर्य परम्परा ही है जो समस्त प्राणियों पर दया करना जानती है…
यदि वह समाप्त हो गयी तो न निर्बलों की प्रतिष्ठा बचेगी न प्राण.
क्योंकि, संसार की अन्य मानव जातियों के पास न धर्म है न दया.
और, वे केवल और केवल दुख देना जानते हैं.
“ऐसे में भारत को अपना हर युद्ध जीतना होगा, वही धर्म की विजय होगी.”
श्री कृष्ण की ये बातें सुनकर युधिष्ठिर जड़ हो गए तो श्री कृष्ण ने उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “मनुष्य अपने समय की घटनाओं का माध्यम भर होता है भइया…
वह कर्ता नहीं होता.
इसीलिए, भूल जाइए कि किसने क्या किया..
और, आप बस इतना स्मरण रखिये कि इस कालखण्ड के लिए समय ने आपको हस्तिनापुर का महाराज चुना है.
तथा, आपको इस कर्तव्य का निर्वहन करना है.
यही आपके हिस्से का अंतिम सत्य है।”
अब युधिष्ठिर के रथ से उतरने का स्थान आ गया था इसीलिए वे अपने अनुज कृष्ण को गले लगा कर उतर आए.
क्योंकि, अभी कृष्ण के सामने अनेक लीलाओं का मंच सजा था.
आज ये युधिष्ठिर और कोई नहीं हिन्दू समाज है जो नपुंसक हो गया है “भाई चारा की बीमारी से ग्रस्त”।
और, मोदी जी श्री कृष्ण की भांति ये लड़ाई भारत में धर्म स्थापना के लिए लड़ रहे हैं.
परंतु, याद रखें कि द्वापर के महाभारत की तरह ही मोदी जी सारथी बनकर केवल रास्ता दिखा सकते है…
अर्जुन की तरह शस्त्र हमें खुद उठाने होंगे.
कोई ये न भूले कि…. जब मोदी जी भगवा वस्त्र में मंदिर में निकलते है तो वे सिर्फ पूजा-अर्चना ही नहीं करते…
बल्कि, एक सेनापति की भांति आगे बढ़कर पूरे हिन्दू समाज को एक सन्देश देते हैं कि…
“गर्व करो हम हिन्दू हैं”.
इसीलिए, राजनीति में नैतिकता और सुचिता की बात कर अपने मन को बहकाना सिर्फ बेवकूफी है क्योंकि विजय ही अंतिम सत्य है.
अतः , इस प्रसंग में श्री कृष्ण की चेतावनी को समझें और किसी दूसरे (मोदी और हिन्दू समाज) के प्रति विलाप करने की जगह गंभीरता से चिंतन करें कि इस धर्मयुद्ध हम कहाँ खडे हैं और आने वाली पीढ़ी के लिए समाज के लिए, राष्ट्र के लिए और सनातन के लिए हमारा कर्तव्य क्या है ???
जय महाकाल…!!!
(कुमार सतीश)