ये इटालियन वे ऑफ़ डेमोक्रेसी है, ट्रम्प के 50% टेरीफ के बाद राहुल गाँधी की आँखों मे जो चमक है वो चाणक्य की बात याद दिलाती है कि विदेशी माता की संतान कभी देशभक्त नहीं हो सकती।
विचारधारा कोई भी हो ये एक राष्ट्रीय संकट है कोई राजनीतिक संभावना नहीं। कांग्रेस मे ही शशि थरूर और राजीव शुक्ला ने डोनाल्ड ट्रम्प को अच्छा जवाब दिया है जो प्रशंसनीय है।
राहुल गाँधी का आचरण इस दृष्टि से अच्छा है कि यदि किसी के मन मे ये बंदा एक विकल्प के रूप मे दिख रहा हो तो उस पर काली स्याही पोत सकते है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने 1995 और 1998 मे इंटरव्यू दिये थे, 95 मे उन्होंने लोकतंत्र मे भूमिका को लेकर कांग्रेस की प्रशंसा की। 1998 मे उन्होंने कहा “राजनीति जिस दिशा मे बहुत चिंतनीय है”।
3 सालो मे ऐसा क्या बदल गया? 1995 मे नरसिम्हा राव थे और 1998 मे सोनिया युग लग चुका था। 1998 से पहले चाहे किसी की भी सरकार हो लेकिन विपक्ष पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर विश्वास किया जा सकता था।
1998 मे सोनिया गाँधी के बाद ये ट्रेंड बदला क्योंकि इटली, स्पेन और ग्रीस मे ऐसा ही होता है। हम लोगो ने ज्यादातर अमेरिका ब्रिटेन का लोकतंत्र देखा है मगर यदि आप यूरोप के अन्य देशो का देखो तो वो टांग खींचने वाला ही होता है।
ज़ब देश पर बड़ा संकट आता है तो विपक्षी पार्टियां खुश हो जाती है और सरकार को घेरने लगती है। यही भारत मे हो रहा है बस समस्या ये है माँ बेटे और उनके कुछ चमचे ही यूरोपीय खून के निकले, बाकि सारे हिंदुस्तानी है।
राहुल गाँधी क्या बोलता है इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता, लेकिन समाज मे अब भी यदि कोई व्यक्ति है जिसे राहुल परिपक्व लगता है तो वो विचार करें। पूरी कांग्रेस की बात नहीं है, उसमे थरूर और शुक्ला जैसे लोग है।
ये पोस्ट भी सिर्फ घाव कुरेदने के लिये है उन लोगो के जो बीजेपी के वोटर है मगर यदि सोच रहे है कि राहुल को भी मौका देना चाहिए। बाकि जो गुलाम है उनको तो मुग़ल ज़ब उनकी बहन बेटिया ले गए तब भी फर्क नहीं पड़ा।
ऊपर से हम तो भक्त है, नड्डा जी से बड़ा प्रचारक तो हमारे लिये ये पाड़ा ही है। राहुल गाँधी मुझे जो खास पसंद है उसकी वजह बता देता हुँ। दरसल ये पहला कांग्रेसी है जिसने कांग्रेस को मजबूत करने की जगह बीजेपी को कमजोर करने पर ध्यान दिया।
बहुत छोटा उदाहरण लीजिये झारखंड बने 25 साल हो गए लेकिन वहाँ अब तक कांग्रेस का मुख्यमंत्री नहीं बना। जबकि शुरुआत मे तो इन्हे रिस्पांस भी अच्छा मिला, लेकिन 2014 मे इसने देखा कि बड़ी पार्टी बीजेपी है दूसरी पार्टी JMM है।
तो उसने JMM से गठबंधन कर लिया। अब गठबंधन का दुख ये होता है कि जिन सीटों पर आपका प्रत्याशी नहीं लड़ रहा वहाँ आपका कार्यकर्ता उपेक्षा का शिकार होता है।
उसके वर्षो की मेहनत पानी हो जाती है और आकस्मिक गठबंधन तो विरोधी पार्टी से भी होते है जैसे दिल्ली मे खुजली से हुआ। कार्यकर्ता के लिये जनता के बीच जाना मुश्किल होता है, ऐसे मे वो विरोधी धड़ा ही जॉइन कर लेता है।
लेकिन राहुल गाँधी जैसे लोगो को सिर्फ इससे मतलब होता है कि कल को हेमंत सोरेन समर्थन देकर प्रधानमंत्री बनवा देगा।
इसी पप्पूगिरी मे आउल बाबा ने कांग्रेस पार्टी को उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु, बंगाल और कश्मीर से साफ करवा दिया है।
इसलिए भक्तो को राहुल गाँधी के देशविरोधी काम करने पर गुस्सा तो आता है लेकिन ज़ब देखते है कि बंदा प्रधानमंत्री बनने के लालच मे कांग्रेस को छोटा कर रहा है तो फिर लगता है गधा है तो क्या हुआ हमारे कपडे भी तो ढो रहा है।
ये जो 99 सीटें मिल गयी सो मिल गयी, 2029 तक तो देश बहुत बदल चुका होगा। दोबारा तमिलनाडु 9 सीटें नहीं देगा, महाराष्ट्र दोबारा 13 सीटें नहीं देगा, उत्तरप्रदेश मे भी जितना मिलना था मिल गया। अब जोड़ घटाव बीजेपी सपा मे होगा कांग्रेस मे नहीं।
नई सीटे मध्यप्रदेश, गुजरात या छत्तीसगढ़ से खींच लोगे तो पालो मुगालते पालने मे क्या जाता है फ्री मे मिलते है। जस्ट पप्पू काइंड ऑफ़ थिंग्स।
यदि आज राहुल गाँधी से मुक्ति पाते हो तो 2039 वो साल होगा ज़ब आप इस हालात मे होंगे कि बीजेपी से भीड़ सको।
(परख सक्सेना)