लोग अक्सर यह प्रश्न उठाते हैं कि संन्यासी क्या करते हैं? कुछ लोग कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि “वह चार्टर्ड प्लेन से यात्रा करता है,” या “वह कथा करके धन कमा रहा है,” अथवा “हिंदुओं को मूर्ख बनाकर लूट रहा है।” विडंबना यह है कि ऐसे आक्षेप लगाने वाले वे लोग हैं जिन्होंने अपने जीवन में किसी भी मंदिर, आश्रम, या सनातन आस्था के कार्य के लिए एक चवन्नी तक का दान नहीं किया होगा।
हममें से बहुत से लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि एक संन्यासी लगभग तीन वर्षों से, यानी 900 से अधिक दिनों से, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, तेलंगाना और बिहार जैसे राज्यों से होते हुए हिंदुओं को एकजुट करने के महती कार्य में लगा हुआ है।
यह यात्रा किसी चार्टर्ड प्लेन से नहीं हो रही है। स्वामी दीपांकर जी ने, जो 18 हज़ार किलोमीटर से अधिक पैदल चल चुके हैं, 23 नवंबर 2022 को हिंदू एकीकरण का संकल्प लेकर कुछ सहयोगियों के साथ इस पदयात्रा का शुभारंभ किया था।
शुरुआत में लोग उपहास करते थे कि यह यात्रा दस दिन में समाप्त हो जाएगी। परंतु सत्य यह है कि यह अब भारत की सबसे लंबी अवधि तक चलने वाली पदयात्रा बन चुकी है। इस दौरान एक करोड़ से अधिक हिंदुओं ने जाति-पाति के भेद से ऊपर उठकर हिंदू बने रहने का दृढ़ संकल्प लिया है।
ऐसे समय में, जब हिंदुओं के समूल नाश पर राजनीतिक स्तर पर चर्चाएँ होती हैं, इस पदयात्रा पर भी सुरक्षा को लेकर निरंतर संकट बने रहे। इन चुनौतियों के बावजूद, एक संन्यासी बिना किसी राजनीतिक या संगठनात्मक समर्थन के बस चल पड़ा।
जिन्हें हम और आप अपना हितैषी मानते हैं, वे भी इन संन्यासियों का सहयोग तो चाहते हैं, लेकिन केवल अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को साधने के लिए।
जीवन पर संकट झेलकर भी स्वामी दीपांकर जी ने यह सिद्ध किया है कि साधु केवल लंगोट पहनकर हिमालय की गुफाओं में एकांतवास नहीं कर रहा है; वह समाज के नव-निर्माण हेतु गतिशील है। धर्म ध्वजा ही सर्वोपरि है; उसी से समाज का, राष्ट्र का और हम सबका अस्तित्व है।
स्वामी दीपांकर जी भिक्षा यात्रा पर निकले हैं। उन्हें आपसे भौतिक धन की अपेक्षा नहीं है; उन्हें अपने पात्र में हिंदू एकता के संकल्प की भिक्षा चाहिए। क्या हम अपनी अज्ञानता से उपजे पूर्वाग्रहों में डूबे क्षुद्र प्रश्न पूछने के बजाय, ऐसे त्यागी संन्यासियों को यह अमूल्य भिक्षा भी नहीं दे सकते?
(प्रस्तुति -प्रीति गौतम)