राहुल द्रविड ने जिस टी-20 टीम को दे दनादन जीतने वाली बनाया था, गंभीर ने उसी टीम को दे देनादन जीतने वाली गुंडा टीम बना दिया है। इस एशिया कप में हर भारतीय प्लेयर का ऐटिटूड बिल्कुल गौती गंभीर जैसा लग रहा था।
खेलना मजबूरी है तो ठीक है हम हाथ नहीं मिलाएंगे, गाली दोगे तो हम चार एक्स्ट्रा देंगे, लड़ने आयोगे तो बल्ला दिखा के डराएंगे और कप कोई पाकी आदमी देगा तो नहीं लेंगे, फुल टशन में रहेंगे, लगातार जीत रहे हैं तो किसी के बस की नहीं कि कुछ उँगली पुंगली कर ले।
भारतीय टीम गंभीर राज में 2000 के दशक की ऑस्ट्रेलिया टीम जैसी बन रही है कि हम जीत तो रहे ही हैं, पर हम तुम्हें ज़लील भी करेंगे, स्लेज भी करेंगे, ग्राउन्ड के बाहर भी माइन्ड गेम्स खेलेंगे और इतना खेलेंगे कि कॉनफ्यूज हो जाओगे कि भाई क्रिकेट मैच हो रहा है कि पॉलिटिकल मैच!
इस हाई टेंशन ड्रामा कप में एक बात जो सबसे सुंदर रही वो यही कि हर मैच का एक हीरो है। कल जब मैंने कुलदीप यादव पर पोस्ट की और इत्तेफाक़ से उसी वक़्त भारत के 20 पर 3 विकेट्स हो गए तो बहुत से घबराए क्रिकेट फैंस ने कहा कि नहीं यार, मैच तो गया! पर तब भी सबको पूरे कॉन्फिडेंस से कमेन्ट में रिप्लाई किया था कि भारतीय बैटिंग अब 3 डिमेन्शन हो गई है। ओपनर्स रन नहीं बनाते हैं तो मिडिल ऑर्डर खुश हो जाता है कि लाओ हमें चांस मिला… लोअर ऑर्डर या फिनिशर्स तो ताक में बैठे ही रहते हैं कि यार कभी तो किसी मैच में 50 पे 5 हों तो हमें मौका मिले, हम भी मैच जितवा सकते हैं भाई, हमें भी टीम में बने रहना है।
ऐसी भारतीय टी20 टीम हो गई है कि ये अपने एक्सपेरिमेंट या बुरी किस्मत से कोई एक मैच हार जाएँ तो हार जाएँ, पर भारतीय टी 20 टीम को टूर्नामेंट हराना लगभग असंभव हो गया है। अब जबकि अजेय होते जा रहे हैं तो बात करने का तरीका और खेलना भावना भी बदल रही है।
विश्व का सबसे अमीर बोर्ड, विश्व विजेता टीम और टीम के 25-26 साल के लड़के भी करोड़ों में खेल रहे हैं, ऐसे में क्या ही किसी को सीरीअस लेंगे… एशिया की बाकी टीम्स को चाहिए कि जलने और लांछन लगाने की बजाए सीखें, बराबरी करने की कोशिश करें! बाकी अपने ही प्लेयर को गद्दार बताकर स्कैन्डल तो किया जा सकता है, पर टूर्नामेंट नहीं जीता जा सकता।
बाकी गंभीर भाई की जय-जयकार रहेगी, टेस्ट में जीतने साधारण कोच साबित हुए हैं, लिमिटेड ओवर में उतने ही सटीक नज़र आ रहे हैं।
(सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर)