काल फ़िल्म मे विवेक ओबेरॉय का संवाद है “हमारा दुश्मन वो है जिसे हम मार नहीं सकते क्योंकि वो जिंदा ही नहीं है”..
इजरायल हमास का युद्ध खत्म हुआ और अंत मे क्या हासिल हुआ? इजरायल की कूटनीतिक पराजय? ठीक है आप खुश हो सकते है कि 47 हजार से ज्यादा गाजा के नागरिक मार दिए, लोग विस्थापित हो गए, कई महत्वपूर्ण आतंकी मारे गए।
दरअसल बात ये है कि इस युद्ध मे आपका पैसा नहीं लगा, आपकी नौकरियां कट नहीं हुई, आपका राशन महंगा नहीं हुआ और ना ही आपकी पेंशन पर असर पड़ा। जिस दिन पड़ गया आप खुद अपने देश को नोच दोगे।
हवा मे नहीं तथ्यों के साथ कह रहा हुँ, 2004 का चुनाव गवाह है। पहले सब परमाणु हथियार को रो रहे थे, हथियार बना लिये तों अमेरिका के सेंक्शन लगे और महंगाई बढ़ गयी। बदले मे जनता ने ऐसी सरकार चुनी जिसने आतंकियों को मुंबई मे घुसने की दावत दी।
ये देश को नोचना नहीं था तों क्या था? ये मैं पढ़े लिखें लोगो की बात कर रहा हुँ, अशिक्षितों और ध्रुव राठी यूनिवर्सिटी वाले गधे तों अलग पंक्ति मे है ही।
इजरायल ने मारा लेकिन ईरान उन्हें दोबारा खड़ा करेगा और दोबारा मरवायेगा, बहुतो को लगेगा ये तों अच्छा है लेकिन इजरायल 47 हजार बाद मे मारेगा उससे पहले 900 महिलाये बच्चे इजरायल के मारे जाएंगे।
जो लोग कहते है कि इजरायल से जवाब देना सीखो, वे सिर्फ हवा मे क्यों बोलते है ज्यादा डीप नहीं मगर ऊपर के आंकड़े तों देख लो। इजरायल जवाब देता है फिर भी हर साल एक ना एक ऐसा आतंकी हमला उस पर होता है।
इस बार इजरायल ने लम्बा युद्ध खींच दिया क्योंकि चुनाव होने थे और नेतन्याहु की कुर्सी जाने वाली थी। युद्ध खींचकर उन्होंने अपने राजनीतिक दांव भी खेल लिये।
कश्मीर मे आज भी हमले होते है, लेकिन भारतीय सेना ऑपरेशन करती है और नेटवर्क तोड़ती है। इसके विपरीत इजरायल की सेना अंधाधुंध बम गिराती है, फिर भी इजरायल मे हमले की पुनरावृति भारत से ज्यादा है।
लेकिन इम्प्रेशन ये दिया जाता है कि इजरायल ज्यादा अच्छा काम कर रहा है जो कि इस युद्ध के बाद तों यही कहूंगा कि ये बकवास है। हमारा दुश्मन वो है जो मौत के लिये ही तों लड़ रहा है, जीते तों गाजी वरना शहीद।
आप उन्हें मारो, उनके बच्चों को आतंकवादी बनने का एक और मौका दो पीछे मजहब तों खड़ा ही है और ये जंग कभी नहीं रुकने वाली। इजरायल इसी सिद्धांत पर चल रहा है, नेताओं का फायदा होता है मगर इजरायल ने आज तक कुछ पाया?
इसके विपरीत यदि नए भारत की बात करें तो वे ना आतंकवाद फैला पा रहे है ना ही खाने को रोटी है, बंदूक से बेहतरीन हथियार भूख होता है। जब भूखे मरेंगे और भारत का शिकार नहीं कर पाएंगे तों पाकिस्तान पर ही टूटेंगे।
ये बेस्ट स्ट्रेटजी है, तहरीक ए तालिबान के बाद हमने इसकी सफलता देखी भी है। अमेरिका जैसे ही अफगानिस्तान से बाहर हुआ, ग़रीबी छाई, उसे लड़ने को कुछ नहीं मिला तों उसने लाहौर कराची जलाने शुरू कर दिए।
इसलिए यही सही है युद्ध आगे से मत करो, पिछले 100 सालो मे यदि रूस का अपवाद हटा दो तों हर आक्रमक देश पराजित हुआ। पलटवार जरूर करो, लेकिन अपनी तैयारी से.. शत्रु के उकसावे मे आकर नहीं।
इजरायल आसानी से आज भी हमास की सुरंगो मे पानी भरकर इस कैंसर से निजात पा सकता है। मानवाधिकार वाले चिल्लायेंगे तों वो तों वैसे भी चिल्ला रहे है। अमेरिका मे रिपब्लिकन सत्ता मे आते रहते है तब भी विंडो मिल जाती है।
मगर यदि ये कैंसर सही हो गया तों हमारे नेतन्याहु चाचा और नफ्ताली चाचा राजनीति किस बात की खेलेंगे। इस युद्ध का विस्तार से आंकलन हर उस भारतीय को करना चाहिए जिसके मन मे युद्ध की इच्छा है। इजरायल ने इतने पैसे खर्च किये हमारे लिये ये सबक मुफ्त मे उपलब्ध है।
(परख सक्सेना)