Mahakumbh 2025: इस लेख के चेहरे पर लगाए गए चित्र पर दृष्टि डालिये. आगे की बात हम आगे समझायेंगे. ये किंग साइज़ डस्टबिन बता रहा है अर्थव्यवस्था में महाकुंभ के योगदान की सबसे निचली या पहली सीढ़ी के योगदान का सच।
8 फरवरी को सवेरे साढ़े चार बजे पवित्र संगम में डुबकी लगाकर लौटने के पश्चात् जिस छोटे से चाय के खोखे पर चाय पी, उसी समय अनायास निगाह गई इस डस्टबिन पर। ऊपर तक लगभग फुल हो चुका था। अनुमान लगाया तो लगा कि लगभग एक हजार कप और कुल्हड़ इस डस्टबिन में थे। चाय की कीमत थी 20 रु।
हालांकि दिन में कूड़ा उठाने गाड़ी चक्कर लगाती है। लेकिन यदि इसे 24 घंटे में जमा हुए कप और कुल्हड़ मान लीजिए तो भी वो चाय वाला रोजाना 20 हजार की चाय तो बेच ही रहा है। इसमें प्रॉफिट का अनुमान आप स्वयं लगा लीजिए।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती… जिस तरह अबतक 45 करोड़ से अधिक लोग स्नान कर चुके और 16 दिन अभी शेष हैं उसे देखते हुए 26 फरवरी को समाप्त हो रहे कुंभ में 60 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पहुंचेंगे। इस ठंड में जितना समय कुंभ क्षेत्र में व्यतीत हो रहा है, उतने समय में व्यक्ति 5 चाय तो पी ही रहा है। यह आंकड़ा महाकुंभ में लगभग 6000 करोड़ रु की चाय बिकने की पुष्टि कर ही रहा है।
जहां मात्र 45 दिन में 6000 करोड़ रुपए की सिर्फ चाय बिकेगी, उस महाकुंभ की अर्थव्यवस्था देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था में कितना और कैसा योगदान कर रही है। यह अनुमान भी आप स्वयं ही लगा सकते हैं।
यह संदेश उन सनातन द्रोही धूर्तो तक अवश्य पहुंचाएं जो ज्ञान बांटते हैं कि, योगी ने महाकुंभ के आयोजन में 8 हजार करोड़ खर्च कर दिए, इतने में ये हो जाता, वो हो जाता… इतने लोगों को रोजगार मिल जाता।
अंत में इतना और बता दूं कि देश में मंदिर अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 40 बिलियन डॉलर, 3.02 लाख करोड़ रुपए सालाना है।
(सतीश चंद्र मिश्रा)