Friday, August 8, 2025
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Acharya Anil Vats: भरत जी का राम प्रेम

Acharya Anil Vats: भरत जी का राम प्रेम - हम राम जी के भक्त अधिकतर श्री हनुमान जी के राम भक्ति के विषय में ही सुनते आये हैं, किंचित दृष्टि हम श्री भरत जी के श्री राम जी के प्रति प्रेम पर भी डाल लेते हैं..

Acharya Anil Vats: भरत जी का राम प्रेम – हम राम जी के भक्त अधिकतर श्री हनुमान जी के राम भक्ति के विषय में ही सुनते आये हैं, किंचित दृष्टि हम श्री भरत जी के श्री राम जी के प्रति प्रेम पर भी डाल लेते हैं..

भरत जी को राम प्रेम छोड़ कर कुछ नहीं चाहिए..परंतु आजके मानव को राम प्रेम छोड़कर सारे भौतिक सुख चाहिए, इसीलिए हमारी यह स्थिति है यानि हमारी तृष्णा बढ़ती जा रही है। राम जी से प्रेम करें अन्य सब कुछ विना मांगे ही आपके पास चला आएंगा ।। अतः सबकुछ पाने के लिए राम शरण मे जाए।।

अरथ न धरम न काम रूचि गति न चहउँ निरबान ।
जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ।।

भरत जी श्रीराम जी से मिलने चित्रकूट जा रहें हैं । प्रयाग में वे त्रिवेणी जी से याचना कर रहें हैं कि मुझे धन , धर्म , काम व मोक्ष पाने की कोई लालसा नहीं है । हर जन्म में मेरा राम जी के चरणों में प्रेम हो यही वरदान मैं आपसे माँगता हूँ, दूसरा कुछ नहीं ।

विशेष, भरत जी राम शब्द की महिमा को जानते थे l शब्द ही ब्रह्म है.. राम शब्द को सुनने के लिए देवाधिदेव महादेव श्मशान वासी बन गये l राम शब्द के जाप से अज्ञान /अन्धकार दूर होता है और ज्ञान का प्रकाश अन्तःकरण मे फैलता है l इसलिए भरत जी श्री राम जी के चरणों में

प्रगाढ़ एवं निरंतर प्रेम का वरदान मांगते हैं l
। मेरे प्रभु राम जय श्री राम !

भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार।
जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार॥

भरतजी की दाहिनी आँख और दाहिनी भुजा बार-बार फड़क रही है। इसे शुभ शकुन जानकर उनके मन में अत्यंत हर्ष हुआ और वे विचार करने लगे-

रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा॥
कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ॥1॥

प्राणों की आधार रूप अवधि का एक ही दिन शेष रह गया। यह सोचते ही भरतजी के मन में अपार दुःख हुआ। क्या कारण हुआ कि नाथ नहीं आए? प्रभु ने कुटिल जानकर मुझे कहीं भुला तो नहीं दिया?॥

अहह धन्य लछिमन बड़भागी। राम पदारबिंदु अनुरागी॥
कपटी कुटिल मोहि प्रभु चीन्हा। ताते नाथ संग नहिं लीन्हा॥

अहा हा! लक्ष्मण बड़े धन्य एवं बड़भागी हैं, जो श्री रामचंद्रजी के चरणारविन्द के प्रेमी हैं (अर्थात्‌ उनसे अलग नहीं हुए)। मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल पहचान लिया, इसी से नाथ ने मुझे साथ नहीं लिया॥

जौं करनी समुझै प्रभु मोरी। नहिं निस्तार कलप सत कोरी॥
जन अवगुन प्रभु मान न काऊ। दीन बंधु अति मृदुल सुभाऊ॥

(बात भी ठीक ही है, क्योंकि) यदि प्रभु मेरी करनी पर ध्यान दें तो सौ करोड़ (असंख्य) कल्पों तक भी मेरा निस्तार (छुटकारा) नहीं हो सकता (परंतु आशा इतनी ही है कि), प्रभु सेवक का अवगुण कभी नहीं मानते। वे दीनबंधु हैं और अत्यंत ही कोमल स्वभाव के हैं॥

जय जय प्रभु श्री राम, जय महावीर हनुमान

जय राम श्री राम जय जय राम l
जय राम श्री राम जय जय राम ll
। पवनसुत हनुमान जी की जय ।

(आचार्य अनिल वत्स)

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