कुछ लोग सितारों की तरह चमकते हैं, कुछ चाँद की तरह रोशनी फैलाते हैं, और कुछ—राहुल की तरह—चुपचाप अपनी रोशनी में समेट लेते हैं पूरी रात का अंधेरा।”
चैंपियंस ट्रॉफी 2025, भारतीय क्रिकेट के सुनहरे पन्नों में दर्ज होगी, लेकिन क्या हर पन्ने पर वही नाम होंगे जिनकी तस्वीरें पोस्टर पर छपती हैं? क्या हर तालियों की गूंज में वो धड़कनें शामिल होंगी जो मैदान पर धैर्य से धड़क रही थीं?
केएल राहुल, शायद यह नाम सुर्खियों में उतनी बार नहीं आया जितना कोहली और रोहित का आया, लेकिन जो देखा, जिसने महसूस किया, वो जानता है कि इस टूर्नामेंट की असली कहानी राहुल की बैटिंग से लिखी गई थी। सेमीफाइनल में जब टीम डगमगा रही थी, जब विकेट गिर रहे थे, जब घबराहट ड्रेसिंग रूम से लेकर करोड़ों फैंस के दिलों तक फैल रही थी, तब राहुल क्रीज़ पर खड़े थे—एक संतुलन, एक विश्वास, एक परिपक्वता लिए।
उनके शॉट्स में आक्रामकता नहीं थी, पर हर डिफेंस में भरोसा था। हर सिंगल में धैर्य था, हर बाउंड्री में गहरी सोच। फाइनल में भी वही कहानी दोहराई गई—जब शोर बल्लेबाज़ों के नामों पर था, तब स्थिरता राहुल के बल्ले में थी। लोग कहते हैं, बड़े खिलाड़ी बड़े मौकों पर उभरते हैं। लेकिन कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो अपनी बारी आने तक खामोश रहते हैं, और जब दुनिया उनकी ओर देखती है, तो वो पहले ही अपना काम कर चुके होते हैं।
सैल्यूट है दोस्त, तुझे भले क्रेडिट न मिले, लेकिन जो तुझे खेलते हुए महसूस किया, वो कभी नहीं भूलेगा। क्योंकि कुछ कहानियाँ अंडररेटेड रहकर भी इतिहास बनाती हैं।