Acharya Anil Vats का ये आलेख बताता है कि कितना महत्वपूर्ण है उपवास एक अच्छे स्वास्थ्य के लिये..
अत्यधिक और असंतुलित भोजन से शरीर में विषैले तत्व और अपशिष्ट पदार्थ एकत्र होते हैं, जिन्हें बाहर निकालने का सबसे प्रभावशाली तरीका है – उपवास। यह न केवल पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है, बल्कि आंतों की सफाई और पुनः सशक्तिकरण में भी सहायक होता है।
उपवास का शाब्दिक अर्थ है – “उप + वास”, यानी अच्छे स्वास्थ्य के समीप रहना। यह शरीर की आंतरिक शुद्धि और पाचन को सुधारने की प्राकृतिक विधि है, जिसे धर्मग्रंथों में भी महत्वपूर्ण माना गया है।
दुर्भाग्यवश, आज उपवास की धारणा विकृत हो चुकी है। लोग उपवास के नाम पर और भी अधिक तले-भुने, भारी-भरकम पकवान खा लेते हैं, जिससे न तो शरीर को विश्राम मिलता है और न ही उपवास का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है।
जैसे कोई मशीन लगातार चलने पर थक जाती है, वैसे ही हमारा पाचन तंत्र भी आराम की माँग करता है। प्राचीनकाल में लोग अधिक मेहनत करते थे और सादा, पौष्टिक भोजन करते थे। उनका जीवन सरल और प्राकृतिक था, इसलिए वे अधिक स्वस्थ रहते थे। आज उल्टा है – भागदौड़, तनाव, मिलावटी और जंक फूड का सेवन आंतों को जल्दी कमजोर कर देता है।
उपवास शरीर में जमी हुई चर्बी और स्टार्च को बाहर निकालता है, जिससे शरीर में अम्लता घटती है और रोग दूर होते हैं। गरिष्ठ भोजन का कुछ हिस्सा आंतों में चिपक जाता है और वहीं सड़ांध बनकर रोगों को जन्म देता है। उपवास उस गंदगी की सफाई करता है।
सच्चे उपवास का अर्थ है – भोजन से पूर्ण विराम और पेट को विश्राम। यह साप्ताहिक, मासिक या रोग के अनुसार तय किया जा सकता है। उपवास की पूर्व संध्या को हल्का भोजन लें – फल या उबली सब्जियाँ। उपवास के दिन खूब पानी पीएँ, टहलें और एनीमा से आंतरिक सफाई करें। जरूरत पड़े तो नींबू या शहद ले सकते हैं। पूरा दिन विश्राम करें।
दूसरे दिन उपवास तोड़ते समय विशेष ध्यान रखें – पहले फल या जूस लें, फिर दोपहर या शाम को सादा भोजन जैसे रोटी, दलिया, उबली सब्जियाँ लें। अचानक भारी खाना खाने से लाभ के बजाय नुकसान हो सकता है।
अगर बीमारी लंबी है या उपवास लम्बे समय तक करना हो, तो किसी योग्य चिकित्सक की सलाह अवश्य लें। जब विषैले तत्व शरीर से निकल जाएँ और पेट साफ हो जाए, तब उपवास जारी रखना उचित नहीं।
महापुरुषों ने हमेशा उपवास को जीवन का हिस्सा माना है – सादा जीवन और उपवास ही उनकी दीर्घायु और कार्यक्षमता का रहस्य रहा है। संत विनोबा भावे हों या अन्य योगी, सभी ने उपवास को सराहा है।
आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास का विशेष स्थान है – जहाँ दवाइयाँ रोगों को दबाती हैं, वहीं उपवास उन्हें जन्म ही नहीं लेने देता। दीर्घायु, स्वस्थ और आनंदमय जीवन के लिए उपवास अमूल्य साधन है।
(प्रस्तुति – आचार्य अनिल वत्स)