Space Colony: पचास साल पहले एक वैज्ञानिक ने अंतरिक्ष में इंसानों के लिए कॉलोनी बसाने का सपना देखा था। लेकिन वह सपना अधूरा क्यों रह गया?
वो था 1970 का दशक जब एक ऐसा विचार किया गया जो भविष्य में इन्सानों से भरी धरती के लिये एक शरण-स्थली बनेगा पृथ्वी से परे कहीं दूर अंतरिक्ष में.
1970 के दशक में अंतरिक्ष कॉलोनी एक हकीकत बनने के बहुत करीब थी..लेकिन तकनीकी और संस्थागत बाधाओं ने इस परियोजना को आगे नहीं बढ़ने दिया।
एक ऐसी कॉलोनी की कल्पना कीजिए जो पृथ्वी से बाहर अंतरिक्ष में हो, लेकिन जहाँ इंसान उसी तरह रह सकें जैसे धरती पर रहते हैं—हर जरूरत की चीज़ें उपलब्ध हों। यह बात आज भी किसी साइंस फिक्शन जैसी ही लगती है। एलन मस्क भले ही मंगल पर जाने की बात करते हों, पर कोई यह नहीं सोच रहा कि पृथ्वी के आस-पास ही कोई मानवीय बस्ती बनाई जाए।
लेकिन 1970 के दशक में यह सपना एकदम सजीव हो उठा था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिक डॉ. जेरार्ड किचन ओ’नील ने पृथ्वी के पर्यावरणीय संकट को देखते हुए अंतरिक्ष में विशाल कक्षीय कॉलोनियाँ (Orbital Colonies) बसाने की योजना तैयार की थी। उनका सपना था कि तीन किलोमीटर लंबी इन कॉलोनियों में हजारों लोग हरियाली से भरे वातावरण में आराम से रह सकें।
यह योजना उन्होंने अमेरिकी सीनेट को भी पेश की थी और नासा के एम्स रिसर्च सेंटर में इस पर गंभीर काम हुआ था।
अंतरिक्ष कॉलोनी का विचार कैसे आया?
ओ’नील को यह विचार MIT की 1972 की एक रिपोर्ट और ‘World3’ नामक कंप्यूटर सिमुलेशन से मिला, जिसमें बताया गया था कि पृथ्वी लगातार बढ़ती जनसंख्या का दबाव लंबे समय तक नहीं झेल सकती।
ओ’नील की योजना क्या थी?
उनका सुझाव था कि पृथ्वी पर प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और ऊर्जा उत्पादन इकाइयों को अंतरिक्ष में स्थानांतरित कर दिया जाए और कॉलोनियों में पुनः उपयोग होने वाले संसाधनों से एक स्थायी जीवनशैली विकसित की जाए।
उन्होंने तीन प्रकार की कॉलोनियों का प्रस्ताव दिया
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आइलैंड वन: भूमध्य रेखा के पास घूमती हुई गोलाकार बस्ती, जो समय के साथ बड़ी होती जाती।
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स्टैनफोर्ड टोरस: विशाल पहिए जैसी कॉलोनी, जिसमें लगभग 10,000 लोग रह सकते थे। सूरज की रोशनी को अंदर लाने के लिए इसमें घूमते हुए दर्पण होते।
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आइलैंड थ्री: सबसे महत्वाकांक्षी योजना। इसमें दो विशाल बेलनाकार ढांचे होते — हर एक 32 किलोमीटर लंबा और 6 किलोमीटर चौड़ा। यह दिन-रात और मौसम का आभास देने वाले पैटर्न पर आधारित था और पृथ्वी जैसे गुरुत्व बल के लिए प्रति मिनट 40 बार घूमता।
ओ’नील का सपना था कि ऐसी कॉलोनियाँ न केवल मानव बस्ती बनें, बल्कि पृथ्वी के लिए स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली भी प्रदान करें। उन्होंने सौर ऊर्जा को माइक्रोवेव बीम के माध्यम से पृथ्वी तक पहुंचाने का प्रस्ताव रखा था।
सीनेट तक पहुंचा प्रस्ताव
1976 में यह योजना अमेरिकी सीनेट की एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी और नेशनल नीड्स उप-समिति के सामने रखी गई। समिति ने इसे “व्यवहारिक” करार दिया।
तो फिर क्या हुआ?
असल मुश्किल थी लॉन्च वाहनों की। उस समय स्पेस शटल की पहली उड़ान भी नहीं हुई थी और नासा भी इस योजना को अपनाने के लिए तैयार नहीं था। ओ’नील स्पेस शटल का इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन समय के साथ यह योजना अधर में लटक गई। अंततः शटल कार्यक्रम भी बंद कर दिया गया।
अब सवाल यह उठता है
जब आज जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे संकट हमारे दरवाज़े पर हैं, तो क्या मानवता एक बार फिर इस सपने की ओर लौटेगी?
क्या 50 साल बाद हम फिर सोच सकते हैं कि अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह बनाई जाए, जिसे हम घर कह सकें?
(त्रिपाठी किसलय इन्द्रनील)