नई दिल्ली के ग्रैंड कन्वेंशन सेंटर की एक गर्म शाम। चारों ओर कैमरों की फ्लैश चमक रही थी। सुरक्षा गार्ड वॉकी-टॉकी पर बात कर रहे थे, और मेहमानों की चहल-पहल जारी थी। हॉल में मंत्री, उद्योगपति, गणमान्य नागरिक और विदेशी मेहमानों की भीड़ थी। देश के सबसे प्रभावशाली पुरुष और महिलाएं पहली पंक्तियों में विराजमान थे।
तीसरी पंक्ति के एक कोने में, हल्के रंग की सूती साड़ी में लिपटी एक साधारण-सी महिला चुपचाप बैठी थीं। कोई उनकी ओर ध्यान नहीं देता — लेकिन आज की कहानी उन्हीं से शुरू होती है।
उनका नाम था लक्ष्मी पिचाई।
बहुत कम लोग उन्हें जानते थे। सुर्खियों में उनका बेटा था — सुंदर पिचाई, गूगल के सीईओ और भारत की शान।
आज उन्हें भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना था। यह अवसर एक ऐतिहासिक क्षण था, जहाँ देश के बुद्धिजीवी वर्ग उनकी सफलता का उत्सव मना रहे थे। मंच की ओर देखते हुए सुंदर की दृष्टि माँ पर आकर ठहर गई। माँ शांत थीं — गोद में हाथ रखे, कुछ भी न कहतीं, पर आँखों में भावों का अथाह सागर।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंच पर आए, और तालियों की गूंज के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। उनका भाषण प्रेरणादायी था — कठिन परिश्रम, दृढ़ संकल्प और जीवन मूल्यों से भरा। उन्होंने कई प्रतिष्ठित नामों का उल्लेख किया। फिर उनकी आवाज धीमी हुई और उन्होंने कहा:
“आज हम केवल सुंदर पिचाई को नहीं, उस माँ के जीवन-संघर्ष को नमन कर रहे हैं, जिन्होंने कभी अपने बेटे की पढ़ाई के लिए स्वयं भूखी रहना स्वीकार किया।”
पूरा हॉल स्तब्ध हो गया।
यह बात कभी सार्वजनिक रूप से नहीं कही गई थी।
फिर जो हुआ, वह सभी के दिलों को छू गया।
प्रधानमंत्री मंच से उतरे — पर वे सुंदर की ओर नहीं गए। वे सीधे तीसरी पंक्ति के कोने में बैठी उस माँ के पास पहुँचे, जो अब भी चकित थीं। उनकी आँखों में अविश्वास और हाथों में हल्का कंपन था।
प्रधानमंत्री ने झुककर उनके चरण स्पर्श किए।
धीरे से कहा — “यह सब कुछ आपके त्याग से संभव हुआ है।”
पूरा हॉल खड़ा हो गया। कोई कुछ नहीं बोल पाया। तालियाँ रुकीं, केवल मौन में भक्ति थी।
सुंदर की आँखें भर आईं। उन्होंने दुनियाभर के राष्ट्रपतियों से मुलाकात की थी, लेकिन कभी किसी ने उनकी माँ को ऐसा सम्मान नहीं दिया था।
लक्ष्मी जी उठने लगीं, तो प्रधानमंत्री ने उन्हें सहारा दिया। मंच पर उन्हें ले जाया गया। उन्होंने संकोच किया, लेकिन प्रधानमंत्री के आग्रह ने उन्हें आगे बढ़ा दिया।
जैसे ही वे मंच पर खड़ी हुईं, तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सभागार गूंज उठा।
सुंदर उनके पास आकर खड़े हो गए।
एक पल को उन्होंने अपनी आँखें बंद कीं — और वह सब स्मृतियाँ उमड़ पड़ीं…
चेन्नई का वह छोटा-सा रंग-बिरंगा दो कमरे का घर…
जहाँ एक साधारण फ्रिज तक नहीं था। पिता एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे, जो घर पर सोल्डरिंग तार और ब्लूप्रिंट लाते थे ताकि बच्चे उनसे सीख सकें। खिलौनों की जगह टूटे रेडियो लाते थे।
माँ चावल के दानों से गणित सिखाती थीं।
कॉलेज की फीस के लिए उन्होंने अपने शादी के सोने के कंगन तक बेच दिए।
जब सुंदर को अमेरिका में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिली, तो वह खुश नहीं हो सका — टिकट के पैसे नहीं थे। माँ ने कहा,
“तू जा बेटा, मैं इंतज़ाम कर लूंगी।”
और उन्होंने अपना आखिरी गहना भी बेच दिया…
सुंदर को वो सब याद था — बिजली कटने पर पसीने में भीगते हुए फर्श पर सोना, और माँ रातभर गत्ते से हवा करती थीं, फिर सुबह काम पर जाती थीं।
आज, उसी माँ का हाथ थामे वह मंच पर खड़ा था — प्रधानमंत्री के बगल में।
दुनिया कैमरों से उन्हें कैद कर रही थी, लेकिन सुंदर के लिए वह क्षण निजी था।
“माँ की हथेली की गर्माहट और उनकी साँसों की लय बस मेरे लिए सब कुछ थी।”
रात जब होटल लौटे, माँ ने उसका हाथ थामा और धीरे से कहा:
“तूने नहीं भुलाया, मेरे लिए यही बहुत है।”
सुंदर ने धीरे से उत्तर दिया:
“माँ, हम कैसे भूल सकते हैं — आपने कभी कुछ माँगा ही नहीं।”
लक्ष्मी पिचाई जी का त्याग और मातृत्व नमन के योग्य है।