Tuesday, October 21, 2025
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Acharya Anil Vats presents: महाकाली की उत्पत्ति कथा

Acharya Anil Vats द्वारा प्रस्तुत इस लेख से जानिये किस तरह हुआ महाकाली का आविर्भाव..और किस तरह हुआ उनका विकराल कोप शांत..

Acharya Anil Vats द्वारा प्रस्तुत इस लेख से जानिये किस तरह हुआ महाकाली का आविर्भाव..और किस तरह हुआ उनका विकराल कोप शांत..

श्रीमार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत
जननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी।

कथा के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों के आतंक का प्रकोप इस कदर बढ़ चुका था कि
उन्होंने अपने बल,छल एवं महाबली असुरों द्वारा देवराज इन्द्र सहित अन्य समस्त
देवतागणों को निष्कासित कर स्वयं उनके स्थान पर आकर उन्हें प्राणरक्षा हेतु भटकने
के लिए छोड़ दिया।

दैत्यों द्वारा आतंकित देवों को ध्यान आया कि महिषासुर के इन्द्रपुरी पर अधिकार
कर लिया है,तब दुर्गा ने ही उनकी मदद की थी।

तब वे सभी दुर्गा का आह्वान करने लगे।
उनके इस प्रकार आह्वान से देवी प्रकट हुईं एवं शुम्भ-निशुम्भ के अति शक्तिशाली
असुर चंड तथा मुंड दोनों का एक घमासान युद्ध में नाश कर दिया।
चंड-मुंड के इस प्रकार मारे जाने एवं अपनी बहुत सारी सेना का संहार हो जाने पर
दैत्यराज शुम्भ ने अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी संपूर्ण सेना को युद्ध में जाने की
आज्ञा दी तथा कहा कि आज छियासी उदायुद्ध नामक दैत्य सेनापति एवं कम्बु दैत्य
के चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनी से घिरे युद्ध के लिए प्रस्थान करें।

कोटिवीर्य कुल के पचास,धौम्र कुल के सौ असुर सेनापति मेरे आदेश पर सेना एवं
कालक,दौर्हृद,मौर्य व कालकेय असुरों सहित युद्ध के लिए कूच करें।

अत्यंत क्रूर दुष्टाचारी असुर राज शुंभ अपने साथ सहस्र असुरों वाली महासेना लेकर
चल पड़ा।

उसकी भयानक दैत्यसेना को युद्धस्थल में आता देखकर देवी ने अपने धनुष से ऐसी
टंकार दी कि उसकी आवाज से आकाश व समस्त पृथ्वी गूंज उठी।
पहाड़ों में दरारें पड़ गईं।

देवी के सिंह ने भी दहाड़ना प्रारंभ किया,फिर जगदम्बिका ने घंटे के स्वर से उस आवाज
को दुगना बढ़ा दिया।

धनुष,सिंह एवं घंटे की ध्वनि से समस्त दिशाएं गूंज उठीं।

भयंकर नाद को सुनकर असुर सेना ने देवी के सिंह को और मां काली को चारों ओर
से घेर लिया।

तदनंतर असुरों के संहार एवं देवगणों के कष्ट निवारण हेतु परमपिता ब्रह्माजी,
विष्णु, महेश, कार्तिकेय, इन्द्रादि देवों की शक्तियों ने रूप धारण कर लिए एवं
समस्त देवों के शरीर से अनंत शक्तियां निकलकर अपने पराक्रम एवं बल के साथ
मां दुर्गा के पास पहुंचीं।

तत्पश्चात समस्त शक्तियों से घिरे शिवजी ने देवी जगदम्बा से कहा-
‘मेरी प्रसन्नता हेतु तुम इस समस्त दानव दलों का सर्वनाश करो।’

तब देवी जगदम्बा के शरीर से भयानक उग्र रूप धारण किए चंडिका देवी शक्ति रूप
में प्रकट हुईं।

उनके स्वर में सैकड़ों गीदड़ों की भांति आवाज आती थी।

असुरराज शुम्भ-निशुम्भ क्रोध से भर उठे।

वे देवी कात्यायनी की ओर युद्ध हेतु बढ़े।
अत्यंत क्रोध में चूर उन्होंने देवी पर बाण,शक्ति,शूल,फरसा,ऋषि आदि अस्त्रों-शस्त्रों
द्वारा प्रहार प्रारंभ किया।

देवी ने अपने धनुष से टंकार की एवं अपने बाणों द्वारा उनके समस्त अस्त्रों-शस्त्रों को
काट डाला,जो उनकी ओर बढ़ रहे थे।

मां काली फिर उनके आगे-आगे शत्रुओं को अपने शूलादि के प्रहार द्वारा विदीर्ण करती
हुई व खट्वांग से कुचलती हुईं समस्त युद्धभूमि में विचरने लगीं।

सभी राक्षसों चंड मुंडादि को मारने के बाद उसने रक्तबीज को भी मार दिया।

शक्ति का यह अवतार एक रक्तबीज नामक राक्षस को मारने के लिए हुआ था।

फिर शुम्भ-निशुंभ का वध करने के बाद बाद भी जब काली मां का गुस्सा शांत नहीं हुआ,
तब उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए और काली
मां का पैर उनके सीने पर पड़ गया। शिव पर पैर रखते ही माता का क्रोध शांत होने लगा।

शवारुढा महाभीमां घोरद्रंष्टां हसन्मुखीम ।
चतुर्भुजां खडगमुण्डवराभय करां शिवाम।।
मुण्डमालाधरां देवीं ललजिह्वां दिगम्बराम।
एवं संचिन्तयेत कालीं श्मशानालयवासिनीम ।।

अर्थात “महाकाली शव पर बैठी है,शरीर की आकृति डरावनी है,देवी के दांत तीखे और
महाभयावह है,ऎसे में महाभयानक रुप वाली,हंसती हुई मुद्रा में है.उनकी चार भुजाएं है.
एक हाथ में खडग,एक में वर,एक अभयमुद्रा मेम है,गले में मुण्डवाला है,जिह्वा बाहर
निकली है,वह सर्वथा नग्न है,वह श्मशान वासिनी हैं.श्मशान ही उनकी आवासभूमि है ।

उनकी उपासना में सम्प्रदायगत भेद हैं,श्मशानकाली की उपासना दीक्षागम्य है,
जो किसी अनुभवी गुरु से दीक्षा लेकर करनी चाहिए। देवी कि साधना दुर्लभ है।

(प्रस्तुति -आचार्य अनिल वत्स)

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