Acharya Anil Vats जी का ये लेख श्री राधा दामोदर मंदिर, वृंदावन, के विशेष माहात्म्य का सुन्दर परिचय है..
यह मंदिर जीव गोस्वामी ने बनवाया था, जो रूप गोस्वामी के शिष्य थे। यहाँ छह गोस्वामियों—रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, भक्त रघुनाथ, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट और रघुनाथ दास—ने भक्ति की थी। रूप गोस्वामी जी यहाँ सेवाकुंज में अपनी भजन कुटी में रहते थे।
आज मूल श्री राधा दामोदर की मूर्ति जयपुर में है, लेकिन उनकी एक प्रतिमा यहाँ भी है। साथ ही, मंदिर में श्री वृंदावनचंद्र, श्री छैलचिकनिया, श्री राधाविनोद और श्री राधामाधव जी की मूर्तियाँ भी हैं। मंदिर के पीछे जीव गोस्वामी और कृष्णदास गोस्वामी जी की समाधियाँ हैं। उत्तर की तरफ रूप गोस्वामी जी की भजन कुटी और समाधि है। पास ही भूगर्भ गोस्वामी जी की समाधि भी है।
मान्यता है कि इस मंदिर की चार परिक्रमा करने से गोवर्धन परिक्रमा (25 किमी) का पुण्य मिलता है! यह मंदिर लगभग 450 साल पुराना है, और यहाँ एक गोवर्धन शिला है, जिसकी परिक्रमा करने से सीधे गोवर्धन परिक्रमा का फल मिल जाता है।
सनातन गोस्वामी और गोवर्धन परिक्रमा की कथा
गोवर्धन पर मानसी गंगा के पास चक्रेश्वर महादेव का मंदिर है। वहाँ एक पुराने नीम के पेड़ के नीचे सनातन गोस्वामी जी की भजन कुटी थी। वे रोज 7 कोस (25 किमी) की गोवर्धन परिक्रमा करते थे, लेकिन बुढ़ापे में उनके लिए यह मुश्किल हो गया।
एक दिन परिक्रमा करते हुए वे गिर पड़े। तभी एक गोप बालक ने उन्हें उठाया और बोला—
“बाबा, अब आप बूढ़े हो गए हो, परिक्रमा छोड़ दो। भगवान प्रेम से प्रसन्न होते हैं, मेहनत से नहीं!”
लेकिन सनातन गोस्वामी नहीं माने। फिर एक दिन वही बालक फिर मिला और उन्हें समझाया। इस बार सनातन जी ने उसके चरण पकड़ लिए और कहा—
“प्रभु, अब छल मत करो! मैं जान गया कि तुम मेरे मदनगोपाल हो। गोवर्धन परिक्रमा मेरे प्राण हैं, इसे कैसे छोड़ दूँ?”
तब भगवान प्रकट हुए और बोले—
“सनातन, तुम्हारी भक्ति देखकर मैं प्रसन्न हूँ। अब इस गोवर्धन शिला (जिस पर मेरे पैर का निशान है) की परिक्रमा करो, यह गोवर्धन परिक्रमा के बराबर है।”
ऐसा कहकर भगवान अंतर्धान हो गए। सनातन गोस्वामी ने उस शिला को अपनी कुटी में रखा और उसकी परिक्रमा करने लगे। आज भी वह शिला राधा दामोदर मंदिर में है, और इसकी चार परिक्रमा करने से गोवर्धन परिक्रमा का पुण्य मिलता है!
जय श्री गिरिराज गोवर्धन!
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ..हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
(प्रस्तुति – आचार्य अनिल वत्स)