Mahadev : नीलकंठ महादेव मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह भारत की गौरवशाली विरासत का प्रतीक भी है.. यहां आकर न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि देश के इतिहास को भी नजदीक से महसूस किया जा सकता है..
सावन के पवित्र महीने में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित कालिंजर किले में भगवान शिव के प्राचीन मंदिर “नीलकंठ महादेव” के दर्शन करने हज़ारों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। यह मंदिर एक छोटी गुफा के अंदर स्थित है, और इसका शिवलिंग नीले पत्थर से बना हुआ है। मान्यता है कि सावन में यहां सच्चे मन से पूजा करने से सभी पाप धुल जाते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है।
नीलकंठ महादेव मंदिर का महत्व
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब विष निकला था, तब भगवान शिव ने उसे यहीं पर ग्रहण किया था, जिससे उनका कंठ नीला हो गया। इसी कारण इस स्थान को नीलकंठ कहा जाता है। मंदिर की गुफा गुप्त काल की बनी है, जबकि इसके मंडप के स्तंभ चंदेल राजाओं के समय के हैं। यहां की दीवारों पर देवी-देवताओं की अनगिनत सुंदर मूर्तियां हैं, जो देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
कालिंजर किला: इतिहास और शौर्य का प्रतीक
कालिंजर किला बुंदेलखंड की पहाड़ियों पर बसा एक ऐतिहासिक और अजेय किला है, जिसकी ऊंचाई लगभग 700 फीट है। यह किला चंदेल राजाओं के अधीन था और 9वीं से 15वीं शताब्दी तक उनका मजबूत गढ़ रहा। इस किले पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेरशाह सूरी और हुमायूं ने कई बार आक्रमण किया लेकिन सफल नहीं हो पाए। यहां तक कि शेरशाह सूरी की मौत भी इसी किले पर आक्रमण के दौरान हुई।
मंदिर के पास की अद्भुत नटराज मूर्ति
मंदिर के पास पहाड़ को काटकर बनी भगवान शिव की 25 फीट ऊंची नटराज मूर्ति है, जिस पर लगातार एक प्राकृतिक जलधारा गिरती रहती है। यह दृश्य बेहद आकर्षक और रहस्यमय है। ऐसी विशाल मूर्ति कैसे बनाई गई होगी, यह सोचकर हर कोई हैरान रह जाता है।
मंदिर में होती है तंत्र साधना
नीलकंठ मंदिर को तंत्र-मंत्र की साधना के लिए भी जाना जाता है। पुराने समय में चंदेल राजा यहां गुप्त साधनाएं करते थे। आज भी कई स्थानीय साधक यहां तांत्रिक विधियों से पूजा करते दिखाई देते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए 100 से ज्यादा घुमावदार सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो पहाड़ काटकर बनाई गई हैं।
कैसे पहुंचें कालिंजर
कालिंजर किला बांदा जिले में स्थित है और चित्रकूट से इसकी दूरी करीब 40 किलोमीटर है। दूसरा रास्ता नरैनी होते हुए 70 किलोमीटर लंबा है। यह किला 8 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और इसके अंदर कई सुंदर महल, मंदिर और जलाशय हैं।
पवित्रता और इतिहास का संगम
नीलकंठ महादेव मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यह भारत की गौरवशाली विरासत का प्रतीक भी है। यहां आकर न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि देश के इतिहास को भी नजदीक से महसूस किया जा सकता है।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी किसलय इन्द्रनील)