Thursday, August 7, 2025
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Mahadev : श्रीकालहस्ती मंदिर: जहां कभी नहीं बंद होते कपाट – वायु रूप में विराजे हैं भोलेनाथ

Mahadev : श्रीकालहस्ती मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति, चमत्कार और आस्था की जीवंत मिसाल है, जहां हर कोने में शिव की महिमा गूंजती है..

Mahadev : श्रीकालहस्ती मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति, चमत्कार और आस्था की जीवंत मिसाल है, जहां हर कोने में शिव की महिमा गूंजती है..

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित श्रीकालहस्ती मंदिर को ‘दक्षिण की काशी’ कहा जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जहां वे वायु (हवा) के रूप में पूजे जाते हैं। सावन के पवित्र महीने में शिवभक्तों के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है।

मंदिर की खासियत – कभी नहीं होते बंद

इस मंदिर के कपाट कभी बंद नहीं होते, चाहे सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण। यहां शिवलिंग को पुजारी भी स्पर्श नहीं करते, क्योंकि यह वायु तत्व का प्रतीक है और अत्यंत पवित्र माना जाता है।

मंदिर से जुड़ी अनोखी कथा

श्रीकालहस्ती नाम तीन जीवों – मकड़ी (श्री), सर्प (काला) और हाथी (हस्ती) – की भक्ति से जुड़ा है। इन तीनों ने शिव की आराधना करते हुए अपने प्राण त्याग दिए। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया। यही कारण है कि मंदिर के शिवलिंग पर मकड़ी का जाला, हाथी के दांत और पांच सिर वाला सर्प दर्शाए जाते हैं।

अन्य पौराणिक कथाएँ

कन्नप्पा नामक एक शिकारी ने जब देखा कि शिवलिंग से खून बह रहा है, तो उसने बिना सोचे अपनी आंखें चढ़ा दीं। उसकी अटूट श्रद्धा से प्रसन्न होकर शिव ने उसे आंखें लौटाईं और मोक्ष दिया।

मां पार्वती ने भी यहां तपस्या कर श्राप से मुक्ति पाई और वे यहां ज्ञान प्रसुनांबिका देवी के नाम से पूजी जाती हैं।

घनकाला नाम की एक भूतनी ने यहां भैरव मंत्र का जाप कर सिद्धि प्राप्त की।

विशेष पेड़ और आस्था का केंद्र

मंदिर परिसर में स्थित पवित्र बरगद का पेड़ (स्थल वृक्ष) भी खास है। लोग इस पेड़ के चारों ओर रंग-बिरंगे धागे बांधकर अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। कहा जाता है कि यह पेड़ इच्छाएं पूरी करता है।

मंदिर का निर्माण और इतिहास

मंदिर का अंदरूनी भाग 5वीं सदी में पल्लव राजाओं ने बनवाया।

मुख्य मंदिर और गोपुरम (द्वार) को 11वीं सदी में चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम ने बनवाया।

16वीं सदी में विजयनगर सम्राट कृष्णदेवराय ने 120 मीटर ऊँचा राजगोपुरम बनवाया, जो द्रविड़ शैली की वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।

पंचभूत स्थलों में एक

यह मंदिर पंचभूत (पांच तत्वों) में से वायु तत्व का प्रतिनिधि है। इसलिए इसे “दक्षिण का कैलाश” भी कहा जाता है। यह मंदिर राहु-केतु दोष दूर करने के लिए प्रसिद्ध है, और ग्रहण के समय भी खुला रहता है।
मंदिर के आस-पास के दर्शनीय स्थल

श्रीकालहस्ती के पास आप श्री सुब्रह्मण्य स्वामी मंदिर, पुलिकट झील, और चंद्रगिरी किला जैसे स्थल भी देख सकते हैं। सावन और महाशिवरात्रि पर यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

श्रीकालहस्ती मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भक्ति, चमत्कार और आस्था की जीवंत मिसाल है, जहां हर कोने में शिव की महिमा गूंजती है।

(प्रस्तुति-त्रिपाठी किसलय इन्द्रनील)

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