Osho writes: अगर पता चल जाए कि यह चक्कर तो बहुत बार हुआ है। यह सब तो मैंने बहुत बार किया है। तो फिर एकदम सब व्यर्थ हो जाएगा..
मैंने सुना है, सिकंदर जब हिंदुस्तान आता था, तो रास्ते में एक फकीर से मिल लिया था। एक फकीर था डायोजनीज। एक नंगा फकीर। गांव के किनारे पड़ा रहता था। खबर की थी किसी ने सिकंदर को, कि रास्ते में जाते हुए एक अदभुत फकीर है डायोजनीज उससे मिल लेना।
सिकंदर मिलने गया है। फकीर लेटा है नंगा। सुबह सर्द आकाश के नीचे। धूप पड़ रही है, सूरज की धूप ले रहा है। सिकंदर खड़ा हो गया है, सिकंदर की छाया पड़ने लगी है। डायोजनीज पर। सिकंदर ने कहा कि शायद आप जानते न हों, मैं हूं महान सिकंदर, अलक्जंडर द ग्रेट।
आपसे मिलने आया हूं। उस फकीर ने जोर से हंसा। और उसने अपने कुत्ते को, जो कि अंदर माद में बैठा हुआ था, उसको जोर से बुलाया कि इधर आ। सुन, एक आदमी आया है, जो अपने मुंह से अपने को महान कहता है। कुत्ते भी ऐसी भूल नहीं कर सकते।
सिकंदर तो चौंक गया। सिकंदर से कोई ऐसी बात कहे, नंगा आदमी, जिसके पास एक वस्त्र भी नहीं है। एक छुरा भोंक दो, तो कपड़ा भी नहीं है, जो बीच में आड़ बन जाए।
सिकंदर का हाथ तो तलवार पर चला गया। उस डायोजनीज ने कहा, तलवार अपनी जगह रहने दे, बेकार मेहनत मत कर। क्योंकि तलवारें उनके लिए है जो मरने से डरते हैं। हम पार हो चुके हैं उस जगह से, जहां मरना हो सकता है। हमने वे सपने छोड़ दिए जिनसे मौत पैदा होती है। हम मर चुके, उन सपनों के प्रति। अब हम वहां हैं, जहां मौत नहीं।
तलवार भीतर रहने दे। बेकार मेहनत मत कर। सिकंदर से कोई ऐसा कहेगा। और सिकंदर इतना बहादुर आदमी, उसकी तलवार भी भीतर चली गई। ऐसे आदमी के सामने तलवार बेमानी है। और ऐसे आदमी के सामने तलवार रखे हुए लोग खिलौनों से खेलते हुए बच्चों से ज्यादा नहीं हैं।
सिकंदर ने कहा, फिर भी मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं?
डायोजनीज ने कहा, क्या कर सकते हो? तुम क्या कर सकोगे। इतना ही कर सकते हो कि थोड़ा जगह छोड़ कर खड़े हो जाओ, धूप पड़ती थी मेरे ऊपर, आड़ बन गए हो। और ध्यान रखना किसी की धूप में कभी आड़ मत बनना।
सिकंदर ने कहा कि जाता हूं, लेकिन एक ऐसे आदमी से मिल कर जा रहा हूं, जिसके सामने छोटा पड़ गया। और लगा कि जैसे पहली दफा ऊंट पहाड़ के पास आ गया हो। अब तक बहुत आदमी देखे थे, बड़े से बड़ी शान के आदमी देखे थे। झुका दिए थे। लेकिन एक आदमी के सामने…अगर भगवान ने फिर जिंदगी दी, तो अब की बार कहूंगा कि डायोजनीज बना दो।
डायोजनीज ने कहा, और यह भी सुन ले कि अगर भगवान हाथ-पैर जोड़े मेरे और मेरे पैरों पर सिर रख दे और कहे कि सिकंदर बन जा। तो मैं कहूंगा कि इससे तो ना बनना अच्छा है। पागल हूं कोई, सिकंदर बनूं।
पूछता हूं जाने के पहले, कि इतनी दौड़-धूप, इतना शोरगुल, इतनी फौज-फांऽटा लेकर कहां जा रहे हो। सिकंदर ने कहा कि अहा, रौनक छा गई, चेहरा खुश हो गया। कहा, पूछते हैं। इस जमाने को जीतने जा रहा हूं।
डायोजनीज बोला फिर, फिर क्या करेंगे?
फिर हिंदुस्तान जीतूंगा!
और फिर?
और फिर चीन जीतूंगा!
और फिर?
फिर सारी दुनिया जीतूंगा!
और डायोजनीज ने पूछा, आखिरी सवाल और, फिर क्या करने के इरादे हैं?
सिकंदर ने कहा, उतने दूर तक नहीं सोचा है, लेकिन आप पूछते हैं, तो मैं सोचता हूं कि फिर आराम करूंगा।
डायोजनीज कहने लगा, ओ कुत्ते फिर वापस आ। यह कैसा पागल आदमी है, हम बिना दुनिया को जीते आराम कर रहे हैं, यह कहता है हम दुनिया जीतेंगे फिर आराम करेंगे। हमारा कुत्ता भी आराम कर रहा है, हम भी आराम कर रहे हैं। तुम्हारा दिमाग खराब है, आराम करना है न आखिर में?
सिकंदर ने कहा, आराम ही करना चाहते हैं।
तो उसने कहा, दुनिया कहां तुम्हारे आराम को खराब कर रही है। आओ हमारे झोपड़े में काफी जगह है, दो भी समा सकते हैं। गरीब का झोपड़ा हमेशा अमीर के महल से बड़ा है। अमीर के महल में एक ही मुश्किल से समा पाता है। और बड़ा महल चाहिए, और बड़ा महल चाहिए। एक ही नहीं समा पाता, वही नहीं समा पाता। गरीब के झोपड़े में बहुत समा सकते हैं। गरीब का झोपड़ा बहुत बड़ा है।
वह फकीर कहने लगा, बहुत बड़ा है, दो बन जाएंगे, आराम से बन जाएंगे। तुम आ जाओ, कहां परेशान होते हो।
सिकंदर ने कहा, तुम्हारा निमंत्रण मन को आकर्षित करता है। तुम्हारी हिम्मत, तुम्हारी शान–तुम्हारी बात जंचती है मन को। लेकिन आधी यात्रा पर निकल चुका। आधी से कैसे वापस लौट आऊं। जल्दी, जल्दी वापस आ जाऊंगा।
डायोजनीज ने कहा, तुम्हारी मर्जी लेकिन मैंने बहुत लोगों को यात्राओं पर जाते देखा, कोई वापस नहीं लौटता। और गलत यात्राओं से कभी कोई वापस लौटता है। और जब होश आ जाए, तभी अगर वापस नहीं लौट सकते तो फिर मतलब यह हुआ कि होश नहीं आया।
एक आदमी कुएं में गिरने जा रहा हो। रास्ता गलत हो और आगे कुआं हो, उसे पता भी न हो। कोई कहे कि अब मत जाओ, आगे कुआं है। वह कहे, अब तो हम आधे आ चुके, अब कैसे रुक सकते हैं। वह नहीं लौट आएगा तत्क्षण।
एक आदमी सांप के पास जा रहा हो, और कोई कहे कि मत जाओ, अंधेरे में सांप बैठा है। वह आदमी कहे कि हम दस कदम चल चुके हैं, अब हम पीछे कैसे वापस लौट सकते हैं?
और फिर वह डायोजनीज कहने लगा कि सिकंदर सपने बड़े होते हैं, आदमी की जिंदगी छोटी होती है। जिंदगी चुक जाती है, सपने पूरे नहीं होते। फिर तुम्हारी मर्जी। खैर, कभी भी तुम आओ, हमारा घर खुला रहेगा। इसमें कोई दरवाजा वगैरह नहीं है। अगर हम सोए भी हों, तो तुम आ जाना और विश्राम कर लेना।
या अगर हमें ना भी पाओ, क्योंकि कोई भरोसा नहीं कल का। आज सुबह सूरज उगा है, कल न भी उगे। हम न हो, तो भी झोपड़े पर हमारी कोई मालकियत नहीं है। तुम आ जाओ, तो तुम ठहरना। झोपड़ा रहेगा।
सिकंदर को ऐसा कभी लगा होगा। असल में जो लोग सपने देखते हैं, अगर वह सच देखने वाले आदमी के पास पहुंच जाएं, तो बहुत कठिनाई होती है। क्योंकि दोनों की भाषाएं अलग हैं।
अब सिकंदर लेकिन बेचैन हो गया होगा। वापस लौटता था, हिंदुस्तान से तो बीच में मर गया, लौट नहीं पाया। असल में, अंधी यात्राएं कभी पूरी नहीं होती, आदमी पूरा हो जाता है। और सच तो यह है कि न मालूम कितने-कितने जन्मों से हमने अंधी यात्राएं की हैं।
हम पूरे होते गए हैं बार-बार। और फिर उन्हीं अधूरे सपनों को फिर से शुरू कर देते हैं। अगर एक आदमी को एक बार पता चल जाए कि उसने पिछली जिंदगी में किया था, तो यह जिंदगी उसकी आज ही ठप्प हो जाए।
क्योंकि यही सब उसने पहले भी किया था। यही नासमझियां, यही दुश्मनियां, यही दोस्तियां, यही दंभ, यही यश, यही पद, यही दौड़। न मालूम कितनी बार एक-एक आदमी कर चुका है। इसलिए प्रकृति ने व्यवस्था की है कि पिछले जन्म को भुला देती है। ताकि आप फिर उसी चक्कर में सम्मिलित हो सकें, जिसमें आप कई बार हो चुके हैं।
अगर पता चल जाए कि यह चक्कर तो बहुत बार हुआ है। यह सब तो मैंने बहुत बार किया है। तो फिर एकदम सब व्यर्थ हो जाएगा।
(आचार्य रजनीश)