Pakistan: धर्म के नाम पर अधर्म और शिक्षा के नाम पर यौन शोषण चल रहा है पापिस्तान के मदरसों में..किया है पापिस्तानी मीडिया ने बड़ा खुलासा..
पाकिस्तान के मदरसों और विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ मौलवी और अन्य कर्मचारी बेहद घिनौना काम कर रहे हैं. ये हालत पाकिस्तान के हर मदरसों की है. इसके बारे में जानकर आपके भी होश उड़ जाएंगे. ये चौंकाने वाली रिपोर्ट खुद पाकिस्तान की एक संसदीय समिति ने जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर के मदरसों और विद्यालयों में बच्चों के साथ यौन शोषण के साथ दुर्व्यवहार और शारीरिक शोषण की घटनाएं तेजी से बढ़ गई हैं.
धार्मिक शिक्षा या दरिंदगी?
कहने को तो मदरसा ‘दीनी तालीम’ की जगह है. लेकिन आए दिन जिस तरह की खबरें आती रहती है, उससे पता चलता है. ये आतंकी से लेकर यौन शोषण के अड्डों में तब्दील हो चुके हैं. मदरसों की दीवारों के पीछे की सच्चाई को लेकर एक बेहद ही खौफनाक और भयावह खुलासा हुआ है. पाकिस्तान में इन जगहों पर बच्चों के साथ बेहद ही क्रूरता वाला व्यवहार किया जाता है. जिन जगहों पर इस्लामिक शिक्षा देने का दावा किया जाता है, वही अब यौन हिंसा का केंद्र बन गए हैं.
जी हां पाकिस्तान के मदरसों और विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ मौलवी और अन्य कर्मचारी बेहद घिनौना काम कर रहे हैं. ये हालत पाकिस्तान के हर मदरसों की है. इसके बारे में जानकर आपके भी होश उड़ जाएंगे. ये चौंकाने वाली रिपोर्ट खुद पाकिस्तान की एक संसदीय समिति ने जारी की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के मदरसों और विद्यालयों में बच्चों के साथ यौन शोषण के साथ दुर्व्यवहार और शारीरिक शोषण की घटनाएं बहुत तेजी से बढ़ गई हैं.

समिति ने की सख्त कार्रवाई की मांग
पाकिस्तान की संसदीय समिति ने बच्चों के साथ हो रहे यौन शोषण समेत अन्य यातनाओं पर गहरी चिंता जताते हुए वहां की सरकार से तत्काल और प्रभावी कदम उठाने का आग्रह किया है। समिति ने कहा कि शिक्षा के नाम पर किसी भी बच्चे को पीड़ा नहीं झेलनी चाहिए. वहां की मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ये मुद्दा सीनेट की मानवाधिकारों पर कार्यात्मक समिति की बैठक में उठाया गया, जिसकी अध्यक्षता सीनेटर समीना मुमताज जेहरी ने की है. बैठक का मुख्य उद्देश्य पंजाब, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा के मदरसों में हो रही गंभीर गड़बड़ियों की समीक्षा करना था.
बच्चों को लग रहा मदरसा जाने में डर
मौलवी और अन्य कर्मचारी छोटे-छोटे बच्चों और बच्चियों तक को नहीं छोड़ रहे. ऐसे में मदरसे में पढ़ने वाले सभी बच्चे दहशत में हैं. सीनेटर जेहरी ने जोर देकर कहा कि देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है. ये कदम वैध धार्मिक संस्थानों को निशाना बनाने के लिए नहीं, बल्कि निगरानी, जवाबदेही और पारदर्शिता के ज़रिए दुर्व्यवहार की रोकथाम के लिए उठाया गया है.
समिति ने की ये मांगें
सीनेटर जेहरी ने मदरसों का उचित पंजीकरण कराने से लेकर वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने, नियमित निरीक्षण और निगरानी, शारीरिक शोषण पर पूर्ण प्रतिबंध, बाल संरक्षण पर शिक्षकों को प्रशिक्षण, अभिभावक-शिक्षक सहभागिता को अनिवार्य बनाने की सिफारिश की है. उन्होंने कहा कि अभियोजन में कमी और यौन शोषण करने वाले दोषियों को सजा नहीं देना चिंता का विषय बन गया है. सीनेटर जेहरी ने ये भी रेखांकित किया कि दर्ज मामलों में दोषसिद्धि की दर अत्यंत कम है.
मदरसों को मुख्यधारा में लाने की मांग
सीनेटर ऐमल वली खान ने कहा कि कई मदरसे अब शैक्षणिक संस्थानों की बजाय राजस्व अर्जित करने वाले प्लेटफ़ॉर्म बन चुके हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मदरसों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए, सख्त कानून बनाकर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए, जिला-स्तरीय निगरानी हो, अन्य सदस्यों ने बच्चों की सुरक्षा के लिए जिला स्तर पर निगरानी तंत्र स्थापित करने और प्रांतों में एकरूप कानून बनाने की सिफारिश की.
36 हजार से अधिक मदरसे
एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में पंजीकृत और गैर पंजीकृत 36 हजार से अधिक मदरसे चल रहे हैं. इनमें करीब 22 लाख बच्चे तालीम ले रहे हैं. ज्यादातर गरीब परिवारों से आते हैं. ग्रामीण इलाकों के होते हैं और मदरसे में रहकर ही पढ़ाई करते हैं. इसका फायदा इन मजहबी संस्थानों से जुड़े लोग उठाते हैं और बच्चों के साथ यौन हिंसा करते हैं
ये है ‘इस्लामी गणराज्य’
बड़ी विडंबना यह है कि यह सब उस देश में हो रहा है जो खुद को ‘इस्लामी गणराज्य’ कहता है और जहां धर्म के नाम पर कट्टरता को बढ़ावा मिलता है. लेकिन वही धर्म जिसकी आड़ में इन बच्चों को दरिंदगी का शिकार बनाया जा रहा है, अब सवालों के घेरे में है.
इस पूरी रिपोर्ट का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि जिन हाथों में पढ़ाने की जिम्मेदारी होनी चाहिए थीं उन हाथों में हैवानियत भारी थी. और जिन लबों से दुआ निकलनी चाहिए थी वहीं से बच्चों के रोने की चीखें दबा दी गईं. यह केवल एक देश का संकट नहीं, बल्कि उस इंसानियत का सवाल है जिसे हर मजहब में सबसे ऊपर माना गया है.
(प्रस्तुति -इंद्रपति त्रिपाठी)