Acharya Anil Vats presents: बहुत कम लोग जानते हैं कि चौसर का निर्माण भगवान शिव ने किया था..इससे भगवान भोलेनाथ के क्रीड़ाप्रिय व विनोदी स्वभाव की जानकारी भी मिलती है..
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव और माता पार्वती चौसर खेलते थे। मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर मंदिर में आज भी मान्यता है कि रात में शिव-पार्वती चौसर खेलते हैं। हर साल महाशिवरात्रि पर चौसर की गोटियाँ और पासे बदले जाते हैं और पूरे साल गर्भगृह में यह चौसर बिछाई जाती है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।
नर्मदा तट पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मान्यता है कि इसके दर्शन बिना चारों धाम की यात्रा अधूरी रहती है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना राजा मांधाता ने की थी, जिन्हें भगवान राम का पूर्वज माना जाता है।
चौसर की कथा
एक बार महादेव ने माता पार्वती से कहा कि उन्होंने एक नया खेल बनाया है और वे उनके साथ खेलना चाहते हैं। खेल शुरू हुआ और क्योंकि खेल महादेव ने बनाया था, वे बार-बार जीतने लगे। तब माता पार्वती ने कहा कि बिना नियमों के खेल उचित नहीं है। यह सुनकर भगवान शिव ने चौसर के नियम बनाए।
नियम बनने के बाद खेल फिर शुरू हुआ। इस बार माता पार्वती जीतने लगीं और अंततः भगवान शिव सब कुछ हार गए—यहाँ तक कि उन्होंने कैलाश पर्वत भी दाँव पर लगा दिया। फिर शिवजी लीला करते हुए रूठ गए और पत्तों के वस्त्र पहनकर गंगा तट पर चले गए।
कार्तिकेय और गणेश की भूमिका
जब कार्तिकेय को पता चला कि उनके पिता हारकर रूठ गए हैं, तो उन्होंने माता पार्वती को चौसर में हराकर शिवजी की वस्तुएँ जीत लीं और गंगा तट पर अपने पिता को मनाने चले गए।
माता पार्वती ने यह बात गणेश को बताई। गणेश भी अपने पिता को ढूँढने निकले। उन्होंने शिवजी को चौसर में हराकर उनकी वस्तुएँ वापस पाईं और माता पार्वती के पास लौट आए। बाद में गणेश शिवजी को कैलाश वापस लाने में सफल हुए।
श्राप और परिणाम
जब शिवजी और पार्वती ने पुनः खेला, तो नारद जी ने अपनी वीणा दाँव पर रखी और भगवान विष्णु पासे बन गए। इस बार शिवजी जीतने लगे। इससे माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्राप दिया—
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शिवजी को सदैव अपने जटाओं में गंगा को धारण करना होगा।
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नारद जी को कभी एक स्थान पर टिकने का अवसर नहीं मिलेगा।
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भगवान विष्णु को पृथ्वी पर जन्म लेकर स्त्री वियोग सहना होगा।
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कार्तिकेय सदैव बाल रूप में ही बने रहेंगे।
बाद में माता पार्वती को अपने श्राप पर पश्चाताप हुआ, लेकिन भगवान विष्णु ने कहा कि वे जगन्माता हैं और उनका दिया हुआ श्राप निष्फल नहीं किया जा सकता।
इस प्रकार यह कथा हमें बताती है कि चौसर का उद्भव भी भगवान शिव की लीला से हुआ था।
।। ॐ नमः शिवाय ।।
(प्रस्तुति- आचार्य अनिल वत्स)