Alvin Kallicharan: एक समय की क्रिकेट की महाशक्ति वेस्टइन्डीज़ के एक पुराने जबर्दस्त बल्लेबाज का नाम था एल्विन कालीचरण..
वेस्टइंडीज़ की अजेय टी और दानवनूमा खिलाड़ियों के बीच अपनी अलग पहचान बनाने वाला छोटे क़द का दिग्गज ” था एल्विन कालीचरन।
दोस्तो, क्रिकेट के इतिहास में कुछ किरदार ऐसे होते हैं जो रिकॉर्ड से नहीं, अपने दिल से याद रखे जाते हैं…आज बात उसी “लिटिल जाइंट” की, जिसका कद छोटा था, पर हौसला आसमान जितना ,एल्विन कालिचरन।
गुयाना में पैदा हुआ एक दुबला-पतला लड़का, जिसकी ऊँचाई 5 फीट 4 इंच से ज़्यादा नहीं थी, पर जब वो बल्ला उठाता था… तो सामने डेनिस लिली जैसे राक्षस भी काँप जाते थे।
21 मार्च 1949 को जन्मे एल्विन ने वेस्ट इंडीज़ के लिए 66 टेस्ट मैच खेले। बनाए 4,399 रन, औसत लगभग 44 के आसपास। 12 शतक, 21 अर्धशतक और दर्जनों यादें जो आज भी दिल में बसी हैं। वनडे में भी 31 मैचों में 826 रन, औसत करीब 34 का।
फर्स्ट क्लास क्रिकेट में तो रनो का समंदर ही बहा दिया , 32,650 रन, 87 शतक, 160 फिफ्टी।
ऐसा consistency वाला बल्लेबाज़ आज के ज़माने में भी मुश्किल है।
एल्विन का डेब्यू ही किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था। 1972, न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ टेस्ट डेब्यू ,और पहले ही मैच में शतक। वो भी जब सामने गिलियन पिच थी, जहाँ गेंद घास पर् फिसलती थी और हवा मैं घूमती थी।
लोग बोले “इतना छोटा खिलाड़ी, क्या करेगा?” और उसने बल्ले से जवाब दिया “ऊँचाई से नहीं, टाइमिंग से फर्क पड़ता है।”
दोस्तों, एल्विन का नाम सिर्फ़ रनों से ही नहीं, एक किस्से से भी अमर है… वो किस्सा जो क्रिकेट में स्पोर्ट्समैनशिप का सबसे बड़ा सबक बन गया।
1974 में इंग्लैंड के खिलाफ पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट — दिन का आखिरी वर चल रहा था। एलन नॉट ने गेंद खेली, और कालिचरन ने सोचा “दिन खत्म हो गया” वो क्रीज़ से बाहर निकल गये। लेकिन इंग्लैंड के कप्तान टोनी ग्रेग ने मौका देखकर बेल्स गिरा दी रन आउट!
भीड़ बेकाबू, मैदान में हंगामा, सब लोग गुस्से में। अगली सुबह इंग्लैंड ने अपनी अपील वापस ले ली —
क्योंकि सबको पता था, एल्विन ने कोई गलती नहीं की थी।
उस पल ने क्रिकेट को एक सीख दी कि खेल सिर्फ़ जीत का नहीं, इंसानियत का भी नाम है। और कालिचरन उस दिन “प्लेयर” से बढ़कर “किरदार” बन गया।
वो 1975 और 1979 वर्ल्ड कप की विजेता वेस्ट इंडीज़ टीम का हिस्सा रहा। ब्रायन लारा से पहले, उसके जैसे “सिल्क टच” वाले खिलाड़ी बहुत कम थे। बल्लेबाज़ी में क्लास, और चेहरे पर मुस्कान — यही उनकी पहचान थी।
हाँ, ज़िंदगी ने झटके भी दिए जब 1982 में उन्होने साउथ अफ्रीका रिबेल टूर खेला, तो बहुतों ने उसे ग़लत कहा, आलोचना की। लेकिन उन्होंने हमेशा कहा — “मैं बस क्रिकेट खेलना चाहता था, राजनीति नहीं।”
आज वो क्रिकेट के बड़े नामों में नहीं गिना जाता, पर जिसने भी उसे खेलते देखा है , वो जानता है, एल्विन कालिचरन एक खेल की कला के अहसास का नाम है। एक ऐसा अहसास, जहाँ क्लास रन से बड़ी चीज़ होती है, जहाँ क्रिकेटर नहीं, इंसान जीतता है।
“छोटा था, पर दिल से बड़ा… कद पाँच फीट, पर खेल पाँच दशक तक याद रहेगा।” — एल्विन कालिचरन, वेस्ट इंडीज़ का वो छोटा-सा सूरज, जो आज भी पुराने रिकॉर्ड्स में गर्माहट देता है।
(प्रस्तुति -रामपुरी)