Sunday, December 14, 2025
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300 Hindus Killed: 35 साल पहले एसीपी की जान ली थी – हवलदार अब्दुल कादिर था दंगाइयों के साथ

300 Hindus Killed: दुख होता है देख कर कि किस तरह की जिहादी मानसिकता से ग्रसित हैं लोग..जहाँ जिस पद पर बैठा दो वहीं दिमाग में जहर बो लेते हैं..ये अब्दुल कादिर भी वैसा ही है..

300 Hindus Killed: दुख होता है देख कर कि किस तरह की जिहादी मानसिकता से ग्रसित हैं लोग..जहाँ जिस पद पर बैठा दो वहीं दिमाग में जहर बो लेते हैं..ये अब्दुल कादिर भी वैसा ही है..
हैदराबाद में 1990 में हुए दंगो में, जिनमें तीन सौ गरीब हिंदू मारे गए थे, के दौरान अब्दुल क़ादिर नाम के कांस्टेबल ने अपने ही ACP Sattaiah की पॉइंट ब्लेंक रेंज से गोली मारकर हत्या कर दी थी
क्यूंकि वे अपनी ड्यूटी सत्यनिष्ठा से कर रहे थे।
मुस्लिम दंगाइयों की भीड़ पर जब ACP ने गोली चलाने का आदेश दिया तब कांस्टेबल अब्दुल कादिर ने अपने राइफल से प्वाइंट ब्लैंक रेंज से अपने ही ACP को गोली मारकर..मार दिया
लोअर कोर्ट ने अब्दुल कादिर को फांसी की सजा सुनाई जिसे हाई कोर्ट ने और सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया
फिर मुस्लिम नेताओं जिसमें ओवैसी भी शामिल हैं
अब्दुल कादिर की रिहाई के लिए अभियान चलाएं
उसमें कांग्रेस और मुस्लिम नेता दोनों ने वायदा किया कि अगर हम सत्ता में आएंगे तो अब्दुल कादिर को रिहा कर देंगे
और 2016 में जब KCR तेलंगाना के मुख्यमंत्री बने
तब उन्होंने अब्दुल कादिर को जेल से रिहा कर दिया
रिहाई के बाद अब्दुल कादिर का हीरो की तरह स्वागत हुआ…मुस्लिम लोगों की भीड़ ने उसे माला पहनाया और गाजी गाजी के नारे लगाए गए
हमारे शासक तमाम विपक्षी राजनीतिक पार्टियों, फ़िल्म (नेता, अभिनेता, मीडिया, बुद्धिजीवी, प्रोफेसर) ने एक फेक रियलिटी का निर्माण किया हुआ है.. एक काल्पनिक कहानी बनाई.. ताकि हिन्दुओं को भाईचारा और सेक्यूलर वाली नीद में सुलाया जा सके…
जिसमें अब्दुल क़ादिर अपनी जान देकर ACP की जान बचाता है।
उस फेक रियलिटी और काल्पनिक कहानी में हम जीते है इसलिए हमारे गले कटते रहते है।
लेकिन सच्चाई यही है की अब्दुल कादिर दंगाइयों की भीड़ पर गोली इसलिए नहीं चलाया
क्योंकि वह मुस्लिम थे और दंगाइयों पर गोली चलाने का आदेश देने वाले ACP को इसलिए मार देता है
क्योंकि वह हिंदू थे काफिर थे
कंप्यूटर देकर देख लिया, स्टेथोस्कोप देकर देख लिया, वर्दी पहना कर देख ली।
एक बार बांस करके भी देख लो।
शायद यह सुधर जाएं..
(प्रस्तुति – राज मिश्रा)
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