Acharya Anil Vats Presents: सनातन के धर्मग्रन्थों के आख्यान निरंतर पाठकों और श्रद्धालुओं के ज्ञान व बुद्धि की परीक्षा लेते दृष्टिगत होते हैं..आस्था, तर्क और प्रतीकात्मकता की गहन व्याख्या से जानिये रामायण में आपकी जिज्ञासा को शांत करते ये 8 प्रश्नों के उत्तर..
रामायण और महाभारत—ये दोनों महाकाव्य हिंदू धर्म की आधारशिला माने जाते हैं। केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि ये भारतीय समाज, नैतिकता, कर्तव्य और जीवन दर्शन के भी मार्गदर्शक हैं। इन ग्रंथों से जुड़ी कथाएँ जब पढ़ी या सुनी जाती हैं, तो स्वाभाविक रूप से मन में कई प्रश्न उठते हैं। इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करने और ज्ञान को और अधिक गहराई देने के उद्देश्य से यहां रामायण से जुड़े आठ प्रमुख प्रश्नों के उत्तर विस्तार से प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
प्रश्न 1: श्रीराम ने बाली का वध छिपकर क्यों किया?
बाली के वध की कथा रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में वर्णित है। यह प्रश्न सदियों से चर्चा का विषय रहा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने बाली पर सामने से आक्रमण न करके पीछे से प्रहार क्यों किया।
तुलसीदास जी ने इस प्रसंग को एक चौपाई के माध्यम से प्रस्तुत किया है, जिसमें बाली मृत्यु से पूर्व श्रीराम से प्रश्न करता है कि आपने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया, फिर मुझे शिकारी की भांति छिपकर क्यों मारा। इसके उत्तर में श्रीराम स्पष्ट करते हैं कि जो व्यक्ति अपने छोटे भाई की पत्नी का हरण करता है, वह घोर अधर्मी है।
श्रीराम बताते हैं कि छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्रवधू और पुत्री—ये चारों समान मानी जाती हैं। जो इन पर कुदृष्टि डालता है, उसका वध करना पाप नहीं होता। बाली ने न केवल सुग्रीव का राज्य छीना, बल्कि उसकी पत्नी का भी अपहरण किया था। इसलिए उसका दंड अनिवार्य था। यहां विधि नहीं, बल्कि न्याय और मर्यादा प्रधान है।
प्रश्न 2: माता सीता ने स्वयंवर के माध्यम से ही श्रीराम को पति क्यों चुना?
स्वयंवर शब्द स्वयं और वर—इन दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है कि कन्या स्वयं अपने वर का चयन करे। प्राचीन भारत में यह परंपरा स्त्री को सम्मान और स्वतंत्रता देने का प्रतीक थी।
सीता का स्वयंवर, पार्वती द्वारा शिव का चयन और द्रौपदी का अर्जुन से विवाह—ये सभी उदाहरण इसी परंपरा को दर्शाते हैं। रामायण काल में स्वयंवर के साथ शौर्य और पराक्रम की परीक्षा भी जुड़ गई थी। जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष उठाना और प्रत्यंचा चढ़ाना इसी का प्रमाण है।
वाल्मीकि रामायण में सीता को ‘वीर्यशुल्का’ कहा गया है, अर्थात उनका विवाह उसी से होगा जो अपने पराक्रम का मूल्य चुका सके। यह आयोजन तत्कालीन समाज में स्त्री सशक्तिकरण का उत्कृष्ट उदाहरण था, जहां कन्या को वर चयन का सामाजिक अधिकार प्राप्त था।
प्रश्न 3: भरत ने राज्य स्वीकार क्यों नहीं किया?
राजा दशरथ के चार पुत्रों में भरत, कैकेयी के पुत्र थे। राम के वनवास का कारण भी उन्हीं से जुड़ा था, हालांकि भरत स्वयं इस षड्यंत्र से पूर्णतः अनभिज्ञ थे।
जब भरत को अयोध्या लौटकर संपूर्ण घटना का ज्ञान हुआ, तो वे अत्यंत व्यथित हुए। उन्होंने श्रीराम से वन से लौटकर राज्य संभालने का अनुरोध किया, लेकिन राम ने पिता के वचन का पालन करने के लिए मना कर दिया।
इसके बाद भरत राम की खड़ाऊं अयोध्या ले आए और उन्हें सिंहासन पर विराजमान कर स्वयं नंदीग्राम में तपस्वी जीवन व्यतीत किया। भरत का चरित्र त्याग, भ्रातृ प्रेम और आदर्श शासन का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने राज्य इसलिए नहीं लिया क्योंकि वे परिवार और समाज में किसी भी प्रकार के लोभ या कलह का कारण नहीं बनना चाहते थे।
प्रश्न 4: मंथरा का श्रीराम से क्या विरोध था?
मंथरा, रानी कैकेयी की दासी थी और विवाह के समय दहेज में उन्हें मिली थी। उसी ने कैकेयी को राम के राज्याभिषेक के विरुद्ध उकसाया और दशरथ से दो वरदान मांगने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि तुलसीदास जी बताते हैं कि इसके पीछे केवल मंथरा की कुटिलता नहीं, बल्कि दैवी योजना भी थी। जब देवताओं को लगा कि राम का वनवास आवश्यक है ताकि रावण सहित राक्षसों का वध हो सके, तब सरस्वती के माध्यम से मंथरा की बुद्धि भ्रमित की गई।
इस प्रकार मंथरा का राम से कोई व्यक्तिगत बैर नहीं था, लेकिन एक भूल के कारण वह जीवनभर अपयश की पात्र बन गई।
प्रश्न 5: श्रवण कुमार की कथा का रामायण में क्या महत्व है?
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में मुनि कुमार की कथा मिलती है, जिसे आगे चलकर श्रवण कुमार के नाम से जाना गया। दशरथ अपने अंतिम समय में कौशल्या को यह कथा सुनाते हैं।
दशरथ शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे। एक दिन उन्होंने पशु समझकर एक तपस्वी युवक पर बाण चला दिया, जो अपने नेत्रहीन माता-पिता के लिए जल भर रहा था। पुत्र वियोग में मुनि ने दशरथ को श्राप दिया कि वे भी पुत्र शोक में प्राण त्यागेंगे।
यह कथा कर्मफल और नैतिक उत्तरदायित्व का गहन संदेश देती है।
प्रश्न 6: राम सेतु निर्माण में पत्थर कैसे तैर गए?
लंका पहुंचने के लिए समुद्र पार करना सबसे बड़ी बाधा थी। समुद्र देव के प्रकट होने पर उन्होंने बताया कि वानर नल और नील को ऋषि का वरदान प्राप्त था, जिससे उनके स्पर्श से पत्थर जल पर तैरने लगते थे।
प्रतीकात्मक रूप से नल और नील कुशल अभियंता थे। उनके नेतृत्व और श्रीराम की कृपा से समुद्र पर सेतु का निर्माण संभव हुआ, जिसे आज राम सेतु कहा जाता है।
प्रश्न 7: रावण के दस सिर क्यों बताए गए हैं?
वाल्मीकि रामायण में रावण को दशग्रीव कहा गया है, यानी दस ग्रीवा वाला। हालांकि शारीरिक रूप से दस सिर होना संभव नहीं।
रावण के दस सिर उसके दस प्रमुख अवगुणों—अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि—के प्रतीक माने जाते हैं। वह विद्वान, शक्तिशाली और शिव भक्त था, लेकिन एक पाप—सीता हरण—उसके विनाश का कारण बना। इसलिए उसके दस सिर प्रतीकात्मक हैं, शाब्दिक नहीं।
प्रश्न 8: लव-कुश और हनुमान के बीच युद्ध क्यों हुआ?
अयोध्या लौटने के बाद राम ने अश्वमेध यज्ञ कराया। यज्ञ का अश्व स्वतंत्र रूप से विचरण करता है और जिसे भी वह रोके, उससे युद्ध होता है।
जब यज्ञ का अश्व वाल्मीकि आश्रम पहुंचा, तो लव और कुश ने उसे रोक लिया। यज्ञ की रक्षा में निकली राम सेना से उनका युद्ध हुआ, जिसमें हनुमान भी शामिल थे।
लव-कुश अत्यंत बलशाली और पराक्रमी थे, इसलिए किसी को भी पराजित न किया जा सका। अंततः जब श्रीराम स्वयं आए और सीता प्रकट हुईं, तब पूरा रहस्य सामने आया और कथा ने नया मोड़ ले लिया।



