Wednesday, June 25, 2025
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Acharya Anil Vats presents: ठाकुर जी की कृपा करती है सुन्दर लीला

Acharya Anil Vats द्वारा प्रस्तुत इस आलेख में पढ़ें ठाकुर जी की कृपा की सुन्दर लीला..

सर्वकाल ठाकुर की मेरे ऊपर बड़ी कृपा है !

मात्र यही मन को शान्त करता है पैर मे जूता होने पर काँटे के ऊपर पैर रखने वाले को मालूम है कि मुझे तो कुछ होने वाला नही है , परंतु उससे कहा जाय फूल पर पैर रखने के लिये , तो हो सकता है वो पैर न रख सके ।
घर के लोग फूल जैसे हों – …
बहुत सुख देने वाले हों तो उनका मोह नही छूटता घर मे ही मन फंस जाता है। घर के लोग दुख देने वाले काँटे जैसे हो तो घर से मन हट जाता है। ठाकुर जी जिस स्थिति मे रखे उस स्थिति मे – ठाकुर की कृपा है , जो ऐसा समझता है वही भक्ति कर सकता है, जो ऐसा समझता है कि ठाकुर जी की मेरे ऊपर कृपा नही है वह भक्ति नही कर सकता।
(1) संत एकनाथ जी महाराज कहते हैं –
मेरे ऊपर ठाकुर जी की अतिशय कृपा है –
घर मे जो मेरी धर्मपत्नी है वह तो सन्त है ,
मुझे पाप करने से रोकती है ,
क्रोध करने से रोकती है ,
भक्ति मे साथ देती है –
’ ठाकुर जी की बङी कृपा है। ‘
(2) संत तुकाराम जी की पत्नी प्रतिकूल है –
त्रास देती है,झगड़ा करती है ।
तुकाराम जी कहते है –
मेरे ऊपर ठाकुर जी की बड़ी कृपा है
इसीलिये प्रतिकूल पत्नी दी है।
पत्नी सुख दे तो मैं पत्नी के पीछे दौङूगां –
ठाकुर जी को भूल जाऊँगा,
पत्नी त्रास दे तो संसार से मन हटा कर ठाकुर जी की भक्ति की ओर मुडूगां –
ठाकुर जी कभी बुरा नही कर सकते,
ठाकुर जी जो करते है वे अच्छा ही करते हैं
जिसमे मेरा कल्याण हो –
’ ठाकुर जी की – बडी कृपा है ‘
(3) संत नरसी मेहता की पत्नी का मरण हो गया,
ठाकुर जी ने बड़ी कृपा की –
नही तो अन्त काल मे मुझे पत्नी का ही स्मरण होता,
अब घर मे कोई सुनने सुनाने वाला तो रहा नही।
ठाकुर जी और मैं – दोनो आनन्द करेंगे,
भक्त और भगवान दो रहते हैं -,
वहीं आनन्द प्रगट होता है,
जब बीच मे कोई तीसरा आता है
तो विध्न पड़ जाता है।
‘ ठाकुर जी की कृपा ही – बडी है ‘
सर्वकाल मन को जो शांत रखेगा वही भक्ति कर सकता है।
मन को शांत रखना महान पुण्य –
और हृदय को जलाना पाप है।
शास्त्रो मे तो यहाँ तक लिखा है –
जो अपने हृदय को जलाता है
उसे ठाकुर के मंदिर जलाने जैसा पाप लगता है,
हृदय मे ही तो ठाकुर जी विराजते हैं।
मन के शान्त रहने पर ही भक्ति हो सकती है..!!

🙏🏽🙏🏾🙏जय जय श्री राधे🙏🏽🙏🏾🙏

(प्रस्तुति- आचार्य अनिल वत्स)

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