Acharya Anil Vats द्वारा प्रस्तुत इस लेख से जानिये कि हमारी सनातन संस्कृति में तो प्रतिपल, प्रतिदिन ही पितृ दिवस है..
आज सम्पूर्ण विश्व पाश्चात्य परंपरा के अनुसार पितृ दिवस मना रहा है। किन्तु हमारी सनातन संस्कृति में तो प्रतिदिन ही माता-पिता की सेवा को परम धर्म माना गया है। हमारे पवित्र ग्रंथों में इस सत्य को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया गया है।
तैत्तिरीयोपनिषद् का पावन वचन है:
“मातृदेवो भवः, पितृदेवो भवः”
अर्थात माता-पिता को देवतुल्य सम्मान दें।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड में महर्षि कहते हैं:
“न तु धर्मचरणं किंचिदस्ति महत्तरम्,
यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिया”
अर्थात पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है।
हमारी संस्कृति में पितृ भक्ति के अनेक उज्ज्वल उदाहरण विद्यमान हैं:
श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर बैठाकर तीर्थयात्रा कराई
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पिता की आज्ञा को सर्वोपरि मानकर वनवास स्वीकार किया
भरत जी ने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए पादुका राज्य की परंपरा स्थापित की
मत्स्य पुराण में भगवान शिव माता पार्वती को उपदेश देते हैं:
“जहाँ माता-पिता निवास करते हैं, वही सबसे बड़ा तीर्थ है”
इस पितृ दिवस पर आइए, हम पाश्चात्य संस्कृति की सीमित एकदिवसीय भावना से ऊपर उठकर अपनी सनातन परंपरा के अनुसार माता-पिता को नित्य प्रति देवतुल्य सम्मान देने का संकल्प लें। क्योंकि हमारी संस्कृति में तो प्रतिपल, प्रतिदिन ही पितृ दिवस है।