Tuesday, October 21, 2025
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Acharya Anil Vats presents: गुरुमंत्र का शक्तिशाली प्रभाव

Acharya Anil Vats का यह लेख गुरूमंत्र की ही नहीं गुरू की असाधारण महिमा का भी परिचय कराता है..

Acharya Anil Vats का यह लेख गुरूमंत्र की ही नहीं गुरू की असाधारण महिमा का भी परिचय कराता है..

‘स्कन्द पुराण’ के ब्रह्मोत्तर खण्ड में कथा आती हैः काशी नरेश की कन्या कलावती के साथ मथुरा के दाशार्ह नामक राजा का विवाह हुआ। विवाह के बाद राजा ने अपनी पत्नी को अपने पलंग पर बुलाया परंतु पत्नी ने इन्कार कर दिया। तब राजा ने बल-प्रयोग की धमकी दी।

पत्नी ने कहाः “स्त्री के साथ संसार-व्यवहार करना हो तो बल-प्रयोग नहीं, स्नेह-प्रयोग करना चाहिए। नाथ ! मैं आपकी पत्नी हूँ, फिर भी आप मेरे साथ बल-प्रयोग करके संसार-व्यवहार न करें।”

आखिर वह राजा था। पत्नी की बात सुनी-अनसुनी करके नजदीक गया। ज्यों ही उसने पत्नी का स्पर्श किया त्यों ही उसके शरीर में विद्युत जैसा करंट लगा। उसका स्पर्श करते ही राजा का अंग-अंग जलने लगा। वह दूर हटा और बोलाः “क्या बात है? तुम इतनी सुन्दर और कोमल हो फिर भी तुम्हारे शरीर के स्पर्श से मुझे जलन होने लगी?”

पत्नीः “नाथ ! मैंने बाल्यकाल में दुर्वासा ऋषि से शिवमंत्र लिया था। वह जपने से मेरी सात्त्विक ऊर्जा का विकास हुआ है। जैसे, अँधेरी रात और दोपहर एक साथ नहीं रहते वैसे ही आपने शराब पीने वाली वेश्याओं के साथ और कुलटाओं के साथ जो संसार-भोग भोगे हैं, उससे आपके पाप के कण आपके शरीर में, मन में, बुद्धि में अधिक है और मैंने जो जप किया है उसके कारण मेरे शरीर में ओज, तेज, आध्यात्मिक कण अधिक हैं। इसलिए मैं आपके नजदीक नहीं आती थी बल्कि आपसे थोड़ी दूर रहकर आपसे प्रार्थना करती थी। आप बुद्धिमान हैं बलवान हैं, यशस्वी हैं धर्म की बात भी आपने सुन रखी है। फिर भी आपने शराब पीनेवाली वेश्याओं के साथ और कुलटाओं के साथ भोग भोगे हैं।”

राजाः “तुम्हें इस बात का पता कैसे चल गया?”

रानीः “नाथ ! हृदय शुद्ध होता है तो यह ख्याल आ जाता है।”

राजा प्रभावित हुआ और रानी से बोलाः “तुम मुझे भी भगवान शिव का वह मंत्र दे दो।”

रानीः “आप मेरे पति हैं। मैं आपकी गुरु नहीं बन सकती। हम दोनों गर्गाचार्य महाराज के पास चलते हैं।”

दोनों गर्गाचार्यजी के पास गये और उनसे प्रार्थना की। उन्होंने स्नानादि से पवित्र हो, यमुना तट पर अपने शिवस्वरूप के ध्यान में बैठकर राजा-रानी को निगाह से पावन किया। फिर शिवमंत्र देकर अपनी शांभवी दीक्षा से राजा पर शक्तिपात किया।

कथा कहती है कि देखते-ही-देखते कोटि-कोटि कौए राजा के शरीर से निकल-निकलकर पलायन कर गये। काले कौए अर्थात् तुच्छ परमाणु। काले कर्मों के तुच्छ परमाणु करोड़ों की संख्या में सूक्ष्म दृष्टि के द्रष्टाओं द्वारा देखे गये हैं। सच्चे संतों के चरणों में बैठकर दीक्षा लेने वाले सभी साधकों को इस प्रकार के लाभ होते ही हैं। मन, बुद्धि में पड़े हुए तुच्छ कुसंस्कार भी मिटते हैं।

आत्म-परमात्माप्राप्ति की योग्यता भी निखरती है। व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति, सामाजिक जीवन में सम्मान मिलता है तथा मन-बुद्धि में सुहावने संस्कार भी पड़ते हैं। और भी अनगिनत लाभ होते हैं जो निगुरे, मनमुख लोगों की कल्पना में भी नहीं आ सकते। मंत्रदीक्षा के प्रभाव से हमारे पाँचों शरीरों के कुसंस्कार व काले कर्मों के परमाणु क्षीण होते जाते हैं। थोड़ी-ही देर में राजा निर्भार हो गया और भीतर के सुख से भर गया।

शुभ-अशुभ, हानिकारक व सहायक जीवाणु हमारे शरीर में ही रहते हैं। पानी का गिलास होंठ पर रखकर वापस लायें तो उस पर लाखों जीवाणु पाये जाते हैं यह वैज्ञानिक अभी बोलते हैं, परंतु शास्त्रों ने तो लाखों वर्ष पहले ही कह दिया।

सुमति-कुमति सबके उर रहहिं।

जब आपके अंदर अच्छे विचार रहते हैं तब आप अच्छे काम करते हैं और जब भी हलके विचार आ जाते हैं तो आप न चाहते हुए भी कुछ गलत कर बैठते हैं। गलत करने वाला कई बार अच्छा भी करता है। तो मानना पड़ेगा कि मनुष्य शरीर पुण्य और पाप का मिश्रण है। आपका अंतःकरण शुभ और अशुभ का मिश्रण है। जब आप लापरवाह होते हैं तो अशुभ बढ़ जाता है। अतः पुरुषार्थ यह करना है कि अशुभ क्षीण होता जाय और शुभ पराकाष्ठा तक, परमात्म-प्राप्ति तक पहुँच जाय.

(प्रस्तुति- आचार्य अनिल वत्स)

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