Tuesday, October 21, 2025
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Acharya Anil Vats presents: जाने-अनजाने में किये हुये पापों का प्रायश्चित कैसे कर सकते हैं।

Acharya Anil Vats presents: प्रायः मन में एक भाव आता है कि आज दिन भर पता नहीं कितने पाप हो गये जिनमें सैकड़ों झूठ और पैरों के नीचे आने वाली चींटियां आदि शामिल हैं..इन पापों का कोई प्रायश्चित हो सकता है क्या?..

Acharya Anil Vats presents: प्रायः मन में एक भाव आता है कि आज दिन भर पता नहीं कितने पाप हो गये जिनमें सैकड़ों झूठ और पैरों के नीचे आने वाली चींटियां आदि शामिल हैं..इन पापों का कोई प्रायश्चित हो सकता है क्या?..

 

हम सभी से जाने – अनजाने में बहुत पाप हो जाते है जिसके बारे में कभी कभी हमे पता भी नहीं चलता के हमसे क्या पाप हो गया है। तो हम किस प्रकार उस पाप का प्रायश्चित कर सकते है ।

बहुत सुन्दर प्रश्न है ,यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ति का कोई उपाय है।

श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में , महाराज परीक्षित जी, श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न किए।

बोले भगवन – आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरकों का वर्णन किया, उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं।

प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं, जैसे चींटी मर गयी, हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं, उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं । और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं।

तो उस पाप से मुक्ति का क्या उपाय है भगवन ।

आचार्य शुकदेव जी ने कहा राजन ऐसे पाप से मुक्ति के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए।

महाराज परीक्षित जी ने कहा, भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोंचना पड़ता है। आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं।

यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं।

बोले राजन पहली यज्ञ है, जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए।

दूसरी यज्ञ है राजन, चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए।

तीसरी यज्ञ है राजन्, पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए।

चौथी यज्ञ है राजन्, आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।

पांचवीं यज्ञ है राजन्, भोजन बनाकर अग्नि भोजन, रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ।

राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे।

राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ति मिल जाती है। हमें उसका दोष नहीं लगता ।उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।

राजा ने पुनः पूछ लिया, भगवन यदि गृहस्थ में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।

तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं राजन्

कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।
अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।

नरक से मुक्ति पाने के लिए हम प्रायश्चित करें। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई व्यक्ति यम, नियम, आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है। लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन्!

केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव परायणः ।

राजन् केवल हरी नाम संकीर्तन से ही जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य है। इसलिए सदैव कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते राम नाम रटते रहो।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण

(प्रस्तुति -आचार्य अनिल वत्स)

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