देवतागण भी राधा रानी की भक्ति के लिए तरसते हैं, वे असहाय होकर फूट-फूट कर रोते हैं — क्योंकि उन्हें राधा भक्ति का अधिकार ही नहीं मिला। ये उनका दुर्भाग्य है।
याद रखिए, राधा ही वह आदि शक्ति हैं जिनसे समस्त देवी-देवताओं और समस्त प्राणियों की सृष्टि हुई है।
राधा को केवल श्रीकृष्ण की प्रेमिका या वृषभानु की पुत्री समझना बहुत बड़ी भूल होगी। वे अनंत-अनंत ब्रह्माण्डों का पालन-पोषण करने वाली परब्रह्मशक्ति हैं — ब्रह्माण्ड की अधिष्ठात्री, परमशक्ति।
उनके दिव्य स्वरूप के दर्शन का विचार भी सामान्य जीव के लिए असंभव है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक राधा रानी के चरणों की धूल के लिए तरसते हैं।
यदि भाग्यवश वे चरण नखों का एक क्षण का भी दर्शन कर लें, तो उस दिव्य सौंदर्य और प्रकाश को देखकर वे सम्मोहित होकर धरती पर गिर पड़ते हैं — चेतना खो बैठते हैं।
देवतागण राधा के दर्शन और भक्ति के लिए आज भी तड़पते हैं, परंतु देव योनि में राधा भक्ति का अधिकार नहीं होता।
मनुष्य योनि का सौभाग्य
हे भक्तों! आप सब अत्यंत सौभाग्यशाली हैं कि आपने मनुष्य योनि प्राप्त की है — और यही एकमात्र योनि है जिसमें राधा रानी की निष्काम भक्ति की जा सकती है।
आप आसानी से गोलोक धाम को प्राप्त कर सकते हैं, बस ज़रूरत है सच्चे प्रेम और श्रद्धा से राधा नाम का जाप करने की।
गोलोक धाम की महिमा
बैकुंठ से भी लाखों योजन ऊपर, एक दिव्य धाम है — गोलोक वृन्दावन।
वहीं “लाड़ली राधा” अपनी सखियों संग नित्य विहार करती हैं।
जो भी भक्त राधा रानी के प्रेम में लीन होकर जीवन जीते हैं, वे शरीर त्यागने के बाद गोलोक को प्राप्त करते हैं — जो बैकुंठ से भी करोड़ों गुना आनंदमय है।
वहां स्वयं राधा रानी प्रेम से आपको गोद में उठाएंगी।
वृन्दावन के दिव्य उपवनों में रस भरे नृत्य होंगे, रसिक सखियों का साथ मिलेगा, और आप आनंद में लीन हो जाएंगे।
गोलोक में कोई भेद नहीं
गोलोक में न तो स्त्री है, न पुरुष — सब आत्माएं वहाँ जाकर कृष्णस्वरूप को प्राप्त करती हैं।
आपके हाथ में बांसुरी होगी, सिर पर मोर मुकुट होगा — क्योंकि आपकी आत्मा कृष्ण का अंश है, और वहाँ सभी श्रीकृष्ण ही बन जाते हैं।
सभी सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। सभी बंधन छूट जाते हैं। केवल प्रेम ही शेष रह जाता है।
मैं पूरे विश्वास से कहती हूँ, जो राधा रानी की सच्चे मन से भक्ति करेगा, उसका अंतिम गंतव्य गोलोक ही होगा —
न स्वर्ग, न पितृलोक — सीधा राधा रानी के श्रीचरणों में।
राधा नाम की शक्ति अनंत ब्रह्माण्डों को पार करा सकती है।
तो अब किस बात की देर?
आओ! प्रेमपूर्वक बोलो — राधे राधे!
🌹 जय श्री राधे! 🌹
(प्रस्तुति – आचार्य अनिल वत्स)