Wednesday, June 25, 2025
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Acharya Anil Vats presents: स्वर्भानु और मोहिनी अवतार का रहस्य

Acharya Anil Vats द्वारा प्रस्तुत इस लेख में पढ़ें कि भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार में स्वर्भानु की क्या भूमिका थी..

Acharya Anil Vats द्वारा प्रस्तुत इस लेख में पढ़ें कि भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार में स्वर्भानु की क्या भूमिका थी..

स्वर्भानु था राहु एवं केतु का वास्तविक नाम

स्वर्भानु का नाम शायद आपने पहली बार सुना हो किन्तु मुझे विश्वास है कि उसका दूसरा नाम आप सभी जानते होंगे। कुछ लोग स्वर्भानु नाम को शायद ना जानते हों किन्तु उसका दूसरा नाम हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्द पात्रों में से एक है और हम सभी उससे परिचित हैं। हम उसे राहु एवं केतु के नाम से जानते हैं। अधिकतर धर्मग्रंथों में केवल राहु का विवरण ही मिलता है जिससे बाद में केतु अलग होता है किन्तु उसका वास्तविक नाम स्वर्भानु था। स्वर्भानु दैत्यराज बलि का एक महत्वपूर्ण सेनानायक था। समुद्र मंथन के समय जब अंत में अमृत की उत्पत्ति हुई तो देवों और दैत्यों में उसे पाने के लिए प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो गयी।

अमृत की एक बूँद भी नहीं मिली

अमृत दैत्यों के हाथों में ना चला जाये इस कारण भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धरा जिसे देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए और सम्मोहित हो मोहिनी रुपी भगवान विष्णु का अनुसरण करने लगे। मोहिनी ने कहा कि देव और दैत्य दोनों अपनी-अपनी पंक्तियों में बैठ जाएँ ताकि वो सभी को अमृत-पान करा सके। बलि के नेतृत्व में दैत्य और इंद्र के नेतृत्व में देवता अपनी-अपनी पंक्तियों में बैठ गए और मोहिनी उन्हें अमृत पिलाने को आयी। मोहिनी दैत्यों को केवल अमृत पिलाने का अभिनय करती किन्तु देवों को वास्तव में अमृतपान करवाती। ऐसा करते-करते सभी देव अमर हो गए किन्तु किसी भी दैत्य को अमृत की एक बूँद भी नहीं मिली।

सुदर्शन ने किया शुभ कार्य

दैत्यों में बैठा स्वर्भानु मोहिनी के इस छल को समझ गया और देव का रूप बना कर उन्ही के मध्य सूर्यदेव एवं चंद्रदेव के बीच में जाकर बैठ गया। जब मोहिनी ने उसे अमृत दिया तो उसने उसका पान करना चाहा। उसी समय सूर्य एवं चंद्र ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रुपी भगवान विष्णु को सचेत कर दिया। ये देख कर कि उसका भेद खुल गया है, स्वर्भानु ने तुरंत अमृत का पान कर लिया किन्तु इससे पहले कि अमृत उसके कंठ से नीचे उतरता, भगवान नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट लिया।

ग्रहण की स्थिति का अभिप्राय

स्वर्भानु का सर राहु कहलाया और धड़ केतु। चूँकि अमृत स्वर्भानु के कंठ तक पहुँच चुका था इसी कारण राहु भी देवों की तरह अमर हो गया। अपने साथ हुआ ये छल देखकर राहु एवं केतु बड़े क्रोधित हुए। चूँकि सूर्य एवं चंद्र ने ही उसका भेद खोला था इसीलिए दोनों ने प्रतिज्ञा की कि वे समय आने पर दोनों को ग्रसेगे। तब से वर्ष में एक बार राहु सूर्य को एवं केतु को चंद्र को ग्रसते हैं जिससे सूर्यग्रहण एवं चंद्रग्रहण लगता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद सूर्य राहु के और चंद्र केतु के कंठ के मार्ग से बाहर निकल जाते हैं।

राहु-केतु का सामान्य प्रभाव

पद्म पुराण के अनुसार इंद्र की पत्नी शची कश्यप पुत्र दैत्य पौलोमी की पुत्री थी। पौलमी का वध इंद्र ने किया क्यूंकि उसने इन्द्रपद प्राप्त कर लिया था। उसके बाद पौलोमी के छोटे भाई विप्रचित्ति ने हिरण्यकशिपु की बहन होलिका और सिंहिका से विवाह किया जिससे राहु या स्वर्भानु का जन्म हुआ जो प्रह्लाद के पुत्र पुरोचन और उसके पश्चात उसके पुत्र बलि का सहायक बना। विप्रचित्ति ने उसके पश्चात इंद्र पद भी प्राप्त किया हालाँकि वो उसपर अधिक समय तक नहीं रह सका। होलिका प्रह्लाद को मरने के प्रयास में मृत्यु को प्राप्त हुई और सिंहिका का वध हनुमान ने समुद्र लंघन के समय किया। अमृत के स्पर्श के कारण राहु एवं केतु को नवग्रह में स्थान मिला है। आम तौर पर राहु को अशुभ ही माना जाता है वही केतु अधिकतर शुभ परिणाम देता है।

राहुकाल तो है पर केतुकाल नहीं

एक दिन के २४ घंटों में २४ मिनट राहुकाल कहलाता है जो कि अशुभ माना जाता है। राहु और केतु को उत्तर एवं दक्षिण ध्रुव को जोड़ने वाली रेखा के रूप में भी देखा जाता है जहाँ राहु उत्तर आसंधि एवं केतु दक्षिण आसंधि कहलाता है। राहु हुए केतु चूंकि कोई वास्तविक ग्रह नहीं है इसीलिए छाया ग्रह भी कहा जाता है जहाँ राहु को ड्रैगन और केतु को एक विशाल सर्प के रूप में दिखाया जाता है जो राहु के संयोग से किसी व्यक्ति के जीवन में कालसर्प योग बनता है।

(साभार आचार्य अनिल वत्स की प्रस्तुति)

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