Acharya Anil Vats presents: एक दिन रुक्मिणी ने विनम्रता से पूछा – “प्रभु, क्या आपको राधा की याद आती है?”
“जब राधा ने कृष्ण से पूछा — क्या हम फिर कभी मिलेंगे?”
यह प्रश्न राधा ने कृष्ण से अंतिम बार किया था… पर उसका उत्तर ऐसा था, जिसने पूरे ब्रह्मांड को मौन कर दिया।
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। धर्म की विजय हुई थी, किंतु हृदय में अनेक अनकहे घाव शेष थे। द्वारका लौटने के बाद भी श्रीकृष्ण की आँखों में एक अधूरी प्यास तैर रही थी — वृंदावन की स्मृति में भीगी हुई।
एक दिन रुक्मिणी ने विनम्रता से पूछा –
“प्रभु, क्या आपको राधा की याद आती है?”
कृष्ण मुस्कराए, पर उस मुस्कान में एक गहरी पीड़ा छिपी थी…
उसी क्षण नारद मुनि वृंदावन से एक समाचार लाए —
“राधा अब वृद्ध हो चली हैं, पर उनका मन अब भी केवल एक ही नाम जपता है — कृष्ण।”
कृष्ण बिना कुछ बोले चल पड़े — लेकिन वे अब श्रीकृष्ण के रूप में नहीं, एक साधारण ग्वाले के वेश में वृंदावन पहुँचे।
राधा ने उन्हें देखा… और मुस्करा दीं — मानो वह पहले से जानती हों कि वही कृष्ण उनके सामने खड़े हैं।
धीरे से राधा बोलीं
“कृष्ण, क्या हम फिर कभी मिलेंगे?”
कृष्ण ने स्नेहभरे स्वर में उत्तर दिया —
“राधे, मिलन आत्मा का होता है… शरीर तो केवल माध्यम है। हम आज भी एक हैं — और सदा रहेंगे।”
राधा ने आँखें मूँद लीं। उनके चेहरे पर एक दिव्य शांति उतर आई।
कृष्ण के नेत्रों से अश्रु बह निकले, पर उन्होंने वही मुस्कान ओढ़ ली —
जो केवल वही ओढ़ सकता है, जिसने अपने हृदय का सबसे प्रिय अंश सदा के लिए खो दिया हो।
आध्यात्मिक संदेश
सच्चा प्रेम वह नहीं, जो साथ रहकर दिखाया जाए,
बल्कि वह होता है जो बिछुड़कर भी आत्मा से जुड़ा रह सके।
राधा और कृष्ण का प्रेम देह का नहीं, आत्मा का था।
क्या आज के युग में ऐसा निष्कलंक प्रेम संभव है?
🙏 यदि इस प्रेमकथा ने आपके हृदय को स्पर्श किया हो, तो
” राधे कृष्णा” लिखकर अपनी श्रद्धा अर्पित करें।