Wednesday, June 25, 2025
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AI 171 Plane Crash: टेकऑफ के वक़्त क्यों खुले थे फ्लैप्स? क्यों बाहर था लैंडिंग गियर? क्या तकनीकी चूक बना 265 मौतों का कारण?

AI 171 Plane Crash: अब जबकि ब्लैक और एफडीआर मिल गया है, कुछ समय बाद दुर्घटना का कारण सामने आ जायेगा किन्तु आज कुछ प्रश्न हैं जो अपने उत्तर को खोज रहे हैं..

AI 171 Plane Crash: अब जबकि ब्लैक और एफडीआर मिल गया है, कुछ समय बाद दुर्घटना का कारण सामने आ जायेगा किन्तु आज कुछ प्रश्न हैं जो अपने उत्तर को खोज रहे हैं..

अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की फ्लाइट AI171, एक बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर, 12 जून 2025 की दोपहर टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद भीषण हादसे का शिकार हो गई, जिसमें 241 यात्रियों समेत कुल 265 लोगों की जान चली गई।

हादसे की शुरुआत और सवालों की झड़ी

विजुअल फुटेज और शुरुआती तकनीकी जांच से एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है — जब विमान ने उड़ान भरी, उस समय उसके लैंडिंग गियर पूरी तरह फैले हुए थे और विंग फ्लैप्स पूरी तरह से पीछे खींच लिए गए थे। सामान्य प्रक्रिया के अनुसार, टेकऑफ के कुछ सेकंड बाद गियर को समेट लिया जाता है और फ्लैप्स को धीरे-धीरे हटाया जाता है। लेकिन यहां दोनों का विपरीत व्यवहार देखा गया, जो बोइंग 787 के ऑपरेटिंग मैन्युअल के खिलाफ था।

क्या तकनीकी खराबी बनी मौत की वजह?

अब जांचकर्ता फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग की गहराई से जांच कर रहे हैं, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह त्रासदी तकनीकी खामी, मानवीय चूक या प्रणालीगत विफलता का नतीजा थी।

गियर-फ्लैप्स का असामान्य कॉन्फ़िगरेशन

फुटेज से जो स्थिति सामने आई, वह बेहद असामान्य थी — टेकऑफ के दौरान लैंडिंग गियर नीचे था और फ्लैप्स पीछे हटा लिए गए थे। संभव है कि टेकऑफ के दौरान पावर में कमी महसूस होने पर पायलटों ने लैंडिंग गियर ऊपर करने की कोशिश की हो, लेकिन उसे फिर से फैलाना पड़ा हो। एक संभावना यह भी है कि हाइड्रोलिक या मैकेनिकल फेल्योर के चलते गियर नीचे फंसा रह गया हो। ऐसी स्थिति में ड्रैग कम करने के लिए फ्लैप्स को पीछे हटाना एक आपातकालीन रणनीति हो सकती है।

कम ऊंचाई पर फ्लैप्स हटाना — खतरनाक फैसला?

कम ऊंचाई और धीमी गति पर फ्लैप्स हटाने से लिफ्ट में भारी गिरावट आती है, जिससे विमान स्टॉल की स्थिति में जा सकता है। फ्लाइट ट्रैक से संकेत मिलता है कि उस समय विमान में याइंग या रोलिंग नगण्य थी — यानी पायलटों के पास कुछ हद तक नियंत्रण था। कुछ विशेषज्ञ बाएं इंजन की खराबी की आशंका भी जता रहे हैं, लेकिन अकेले इससे फ्लैप्स और गियर की विसंगति नहीं समझाई जा सकती।

जब विमान ने लिफ्ट खो दी

आख़िरकार, जब फ्लाइट लगभग 600 फीट की ऊंचाई पर थी, तो लैंडिंग गियर का फैला रह जाना और फ्लैप्स का पूरी तरह पीछे हट जाना एक घातक मेल साबित हुआ। इस असामान्य कॉन्फ़िगरेशन ने विमान पर अतिरिक्त ड्रैग (वायुरोध) पैदा किया और लिफ्ट (उठान शक्ति) को कम कर दिया। परिणामस्वरूप, विमान अपनी ऊंचाई बनाए रखने में असफल रहा और स्टॉल (उड़ान रुकना) की स्थिति में सीधे नीचे गिरने लगा।

पायलटों ने नियंत्रण पाने की अंतिम कोशिश जरूर की—लेकिन तब तक न तो समय था, न हवा का साथ। विमान का भाग्य तय हो चुका था।

क्या यह त्रासदी टाली जा सकती थी?

यह सवाल अब हर किसी के मन में है—क्या हादसे को रोका जा सकता था? क्या कोई तकनीकी चेतावनी पहले से मौजूद थी जिसे अनदेखा कर दिया गया? या फिर, क्या यह एक ऐसी मशीनगत चूक थी, जो मानव क्षमताओं की परिधि से बाहर थी?

AI171 की यह अंतिम यात्रा अब केवल आंकड़ों और यादों में दर्ज है। लेकिन इसके पीछे छुपे कारण, जो 265 ज़िंदगियों के अचानक अंत का कारण बने, अभी पूरी तरह उजागर नहीं हुए हैं। जांच जारी है—और उम्मीद है कि इससे भविष्य के लिए कोई बड़ा सबक जरूर निकलेगा।

(त्रिपाठी अर्चना शैरी)

 

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