Sunday, December 7, 2025
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Book Review:  ग़ज़ाला वहाब रचित ‘द हिंदी हार्टलैंड: ए स्टडी’ की पुस्तक समीक्षा

Book Review: ग़ज़ाला वहाब की पुस्तक The Hindi Heartland: A Study (एलेफ़ बुक कंपनी, 2025) ध्रुवीकरण के बजाय आत्ममंथन को प्रेरित करती है और हिंदी हार्टलैंड को केवल एक राजनीतिक रणभूमि नहीं, बल्कि ऐसा धातुभट्ठी (crucible) मानकर देखती है, जहाँ भारत का अतीत और भविष्य, दोनों ही ढल रहे हैं..

Book Review: ग़ज़ाला वहाब की The Hindi Heartland: A Study (एलेफ़ बुक कंपनी, 2025) भारत के हिंदी-भाषी क्षेत्र का एक गहन, सूक्ष्म और सटीक शोधपूर्ण अध्ययन है..यह वह इलाका है जो देश की राजनीति, संस्कृति और पहचान पर अनुपात से कहीं अधिक असर डालता है..

बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को समेटे यह विशाल भूभाग भारत के कुल भू-क्षेत्र का 38% है और यहां देश की 40% से अधिक आबादी निवास करती है। परंतु इस जनसंख्या और राजनीतिक वज़न के पीछे गरीबी, जड़ जमाए हिंसा और गहरे सामाजिक विरोधाभासों की कठोर सच्चाइयाँ छिपी हैं।

एक पुरस्कार-विजेता पत्रकार और स्वयं इस क्षेत्र की बेटी होने के नाते, वहाब ने ऐतिहासिक अध्ययन, राजनीतिक विश्लेषण और सांस्कृतिक चिंतन को एक साथ पिरोते हुए एक व्यापक और साथ ही आत्मीय कथा प्रस्तुत की है। यह पुस्तक पाँच मुख्य विषयगत खंडों में बंटी है — शुरुआत होती है क्षेत्र की भौगोलिक संरचना से और फिर यह मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास, औपनिवेशिक विरासत, स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका और समकालीन संकटों की यात्रा करती है।

वहाब ने इसके आर्थिक ठहराव की जड़ों को आज़ादी के बाद की उन नीतियों में खोजा है, जो समावेशी विकास को बढ़ावा देने में असफल रहीं। वहीं जाति, धर्म और भाषाई राजनीति पर उनकी पैनी दृष्टि यह उजागर करती है कि किस तरह हिंदी की सर्वोच्चता — जो प्रायः धार्मिक राष्ट्रवाद से जुड़ जाती है — ने अन्य क्षेत्रीय पहचानों को हाशिए पर डाल दिया है।

इसमें मंदिर राजनीति और विवादित धार्मिक स्थलों पर उनका विश्लेषण विशेष रूप से प्रभावशाली है, जो यह दिखाता है कि धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के बीच चल रही भारत की खींचतान में यह इलाका कितना केंद्रीय है।

वहाब की रचना को विशिष्ट बनाता है उनका अंतर्संबंधी दृष्टिकोण (intersectional lens), जिसमें जाति, लिंग, धर्म और वर्ग को एक साथ जोड़कर एक गहन, परतदार और सटीक कथा बुनी गई है। क्षेत्र से उनके व्यक्तिगत संबंध लेखन में प्रामाणिकता और नैतिक स्पष्टता भर देते हैं — न तो यह बीते समय का अंधा महिमामंडन है, न ही निराशाजनक खारिज़ी दृष्टि।

वहाब हिंदी हार्टलैंड को एकरूप ‘पिछड़े’ ब्लॉक के सरलीकृत स्टीरियोटाइप में नहीं बाँधतीं, बल्कि इसे एक जीवंत, बहस-तकरार से भरा हुआ, और सदियों से आक्रमणों, सुधार आंदोलनों व औपनिवेशिक विकृतियों से आकार पाए हुए क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत करती हैं। भाषा में सरलता और बौद्धिक गहराई का संतुलन है, जिसमें सूक्ष्म विवरण, प्रत्यक्ष साक्षात्कार और ठोस दस्तावेज़ी प्रमाण कथानक को समृद्ध करते हैं।

यदि कोई कमी बताई जाए, तो वह कुछ ऐतिहासिक अध्यायों की घनी जानकारी है, जो सामान्य पाठक के लिए थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती है, और कुछ हिस्सों में जमीनी स्तर की आवाज़ों की अपेक्षाकृत कमी खलती है। फिर भी The Hindi Heartland शोध और कहानी कहने — दोनों ही दृष्टियों से एक मील का पत्थर है।

यह पुस्तक ध्रुवीकरण के बजाय आत्ममंथन को प्रेरित करती है और हिंदी हार्टलैंड को केवल एक राजनीतिक रणभूमि नहीं, बल्कि ऐसा धातुभट्ठी (crucible) मानकर देखती है, जहाँ भारत का अतीत और भविष्य, दोनों ही ढल रहे हैं। यह समकालीन भारतीय ग़ैर-काल्पनिक साहित्य में एक आवश्यक और समयानुकूल योगदान है।

(प्रस्तुति- विशाल तिवारी)

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