China AI Talent Army ये और कुछ नहीं Talent Theft याने प्रतिभा की चोरी है जो चीन आज से नहीं, पिछले सात दशक से करता आ रहा है..
China AI Talent Army: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में चीन सबसे खतरनाक खिलाड़ी बनकर उभर रहा है. वह चुपचाप AI टैलेंट आर्मी का निर्माण कर रहा है. चीन AI से मिलिट्री से लेकर हेल्थ और साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर तक सबपर अपनी पकड़ बनाना चाहता है.
China AI Talent Army: आने वाला समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI का है. यानी कोई भी पेचिंदा काम करने के लिए अब मनुष्यों की नहीं बल्कि कृत्रिम दिमाग की जरूरत पड़ेगी. इसको लेकर दुनिया के कई देश AI पर खूब पैसा खर्च कर रहे हैं. इस समय AI के क्षेत्र में अमेरिका दुनिया पर भारी है, लेकिन एक देश ऐसा भी है जो चुपचाप अमेरिका की गेम पलटने की तैयारी में है. और वो देश है चीन. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में चीन सबसे खतरनाक खिलाड़ी बनकर उभर रहा है. वह चुपचाप AI टैलेंट आर्मी का निर्माण कर रहा है.
आप सोच रहे होंगे कि अमेरिका के पास दुनिया की सबसे अच्छी लैब्स हैं, पैसा है, सुपरचिप्स हैं और दुनिया के सबसे बड़े ग्लोबल टेक जाइंट्स हैं. फिर भी चीन उसे कैसे मात देने की तैयारी कर रहा है. तो उसका उत्तर है ‘मकसद’.
चीन अपनी टेढ़ी चाल से अमेरिका को कर रहा पस्त
दरअसल चीन चुपचाप अमेरिका के टॉप विश्वविद्यालयों में अपने छात्रों को पढ़ने के लिए भेजता है. वो छात्र पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में ही अच्छे पदों पर काम करने लगते हैं. जब वो उस कंपनी की सारी महत्वपूर्ण चीजें समझ लेते हैं तो तब शुरू होता है चीन का खेल. चीन उन टेक जॉइंट्स को अपने पास बुला लेता है और चीन में ही उसी तरह की कंपनी खोलने के लिए कहता है. इस तरह से अमेरिका ना चाहते हुए भी उस टैलेंट को अमेरिका से बाहर जाने देता है.
अमेरिका के सभी विश्वविद्यालयों में चीनी छात्रों का दबदबा
अमेरिका के सभी टॉप विश्वविद्यालयों में चीनी छात्रों का कब्जा है. टेक फिल्ड में चीन एकतरफा लीड कर रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक सिलिकॉन वैली में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के टॉप रिसर्चर्स में अधिकतर चीनी मूल के लोग हैं. जिन्हें चीन जब चाहे अपने पास बुला लेने की ताकत रखता है.
सभी अमेरिकी कंपनियों में चीनी टेक रिसर्चर्स का कब्जा
जानकारी के मुताबिक अमेरिका में विभिन्न कंपनियों के द्वारा बनाई जा रही टॉप AI टीमों में अधिकतर चीनी लोग हैं. मेटा ने अपनी सुपर इंटेलिजेंस लैब्स के लिए जिन 12 टेक जॉइंट्स की टीम बनाई है. उनमें से 8 लोग चीन के हैं. यहीं हाल एप्पल और ओपन एआई का है.
अमेरिका में लगातार गिर रही रिसर्चर्स की संख्या
हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि चीन पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा एआई हब है. ये लोग सारी शिक्षा अमेरिका में ले रहे हैं और वहां से चीन लौटकर वहां पर एआई हथियार बना रहे हैं. 2014 तक दुनिया के टॉप 59% AI रिसर्चर्स अमेरिका में काम करते थे. वहीं चीन में 11% काम करते थे. अब अमेरिका में टॉप AI रिसर्चर्स 42% बचे हैं. वहीं चीन का नंबर 11 % से बढ़कर 28 % हो गया है.
मिलिट्री से लेकर साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर पर करना चाहता है कब्जा
चीन की AI स्ट्रैटेजी सिर्फ रिसर्च पेपर या कोडिंग लैब्स तक सीमित नहीं है. वह इसे एक पावर के रूप में देख रहा है. चीन AI से मिलिट्री से लेकर हेल्थ और साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर तक सबपर अपनी पकड़ बनाना चाहता है. सबसे हैरानी की बात ये है कि चीन ये पूरी दुनिया की आंखों के सामने कर रहा है और अमेरिका हाथ पर हाथ रख खुद को AI की रेस में हारते देख रहा है.
(प्रस्तुति -किसलय इन्द्रनील)