Tuesday, October 21, 2025
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Devendra Sikarwar says : ट्रंप-मस्क को भारत के प्रख्यात कूटनीति-विशारद कौटिल्य को पढ़ना चाहिए!

Devendra Sikarwar says : ट्रंप-मस्क को भारत के प्रख्यात कूटनीति-विशारद कौटिल्य को पढ़ना चाहिए! - गहन सार्थक शोधपूर्ण विश्लेषण पढ़ें आज के वैश्विक शक्ति-संतुलन पर..

Devendra Sikarwar says : ट्रंप-मस्क को भारत के प्रख्यात कूटनीति-विशारद कौटिल्य को पढ़ना चाहिए! – गहन सार्थक शोधपूर्ण विश्लेषण पढ़ें आज के वैश्विक शक्ति-संतुलन पर..
पिछले तीस वर्ष में वर्ल्ड ऑर्डर के ग्रेट गेम में खिलाड़ी इतनी बार रिप्लेस हुए हैं कि यह डिसाइड नहीं हो पा रहा था कि कौन किसकी तरफ है।
लेकिन अब जाकर कुहासा साफ हो रहा है।
वस्तुतः जो जंग राष्ट्रो के बीच दिखाई दे रही थी, वह कभी थी ही नहीं। यह जंग तो कारपोरेट के दो वर्गों के बीच हो रही है जिसमें एक ने ‘वामपंथ व लिबरलिज्म’ का मुखौटा ओढ़ा हुआ है और दूसरे ने ‘दक्षिणपंथ व राष्ट्रवाद’ का।
जैसा कि मेलोनी ने भी कहा था कि नब्बे के दशक में क्लिंटन-ब्लेयर ने एक वैश्विक लेफ्ट नैटवर्क बनाया जिसमें सत्ता लिबरल्स की थी।
इस नैटवर्क में एजेंडा वामपंथी ऐनार्की का और दवाब समूह के रूप में इस्लाम था।
लेकिन एक कारक सभी नजरअंदाज कर गये।
इन्हें फंडिंग कौन कर रहा था?
यह था वैश्विक कारपोरेट का एक वैश्विक समूह, जिसमें शामिल थे —
-लंदन स्थितबैंकर्स
-अमेरिका की हथियार लॉबी
-अमेरिका व यूरोप की मेडिसिन लॉबी
-वैश्विक ड्रग माफिया नैटवर्क
-चीन की वैश्विक सप्लाई
सब कुछ सही चल रहा था लेकिन जब कुंहासा छंटा तो यह पता चला कि वास्तव में राजनैतिक नेतृत्व, इस्लामिक आतंकवादी नैटवर्क और वामपंथी कॉकस सभी इस फंडिंग समूह के धागे पर नाचने वाली पुतलियां मात्र हैं।
अब आप पूछेंगे कि यह समूह इतना पैसा क्यों खर्च कर रहा था और क्यों कर रहा है?
सीधा जवाब है कि वर्तमान में सत्ता का स्रोत अर्थ और आर्थिक संसाधन हैं। जिसके पास जितने संसाधन वह उतना अधिक शक्तिशाली।
जो विश्व सोवियत संघ के विघटन से पूर्व परमाणु युद्ध की आशंका के मानसिक संत्रास से गुजर रहा था वह छोटी-छोटी सैकड़ों वैश्विक लड़ाईयों व ऐनार्की में उलझा दिया गया।
तो आप ही बताइये इन युद्धों, ऐनार्की, महामारियों से पैसा और उस पैसे के माध्यम से सत्ता किसके पास जा रही है?
सब कुछ ठीक चल रहा था कि विश्व में तीन घटनाये हुई और इस तंत्र में कुछ धागे उलझ गये।
–भारत में मोदी व हिंदुत्व का उदय
–अमेरिका में अनपेक्षित रुप से ट्रंप की जीत
-टैसला व मस्क का धूमकेतु के रूप में उदय
ट्रंप द्वारा ‘अमेरिकी-रूस संघर्ष को टालने, ‘उत्तर कोरिया – दक्षिण कोरिया संघर्ष’, को टालने और ‘आई एस एस का खात्मा करने आदि घटनाओं से अमेरिकी हथियार लॉबी को बहुत घाटा हुआ और मेडिसिन लॉबी पहले ही रूस और भारत की वैक्सीन के कारण घाटे में थीं।
इसीलिये वैश्विक कारपोरेट के इस गिरोह ने चीन की सबसे बड़ी और एकछत्र व्यापारिक कंपनी ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना’ से हाथ मिलाया और इन्हें उखाड़ने में जुट गये।
भारत में इस वैश्विक कारपोरेट के इंडिया हैड ‘इटालियन औरत एंड कंपनी’ जिसके मंदबुद्धि लड़के की मदद से भारत में अशांति फैलाने और मोदी को उखाड़ने की नई-नई योजनाये जमीन पर उतारी जाने लगीं।
अमेरिका में चीन लॉबी के सहयोग से अभूतपूर्व हेरफेर द्वारा ट्रंप को सत्ता से बाहर कर दिया गया।
लेकिन इस बीच 2022 में एक घटना ने विश्व के इस सर्वशक्तिशाली कॉर्पोरेट को प्रभावी प्रतिद्वन्द्वी दे दिया।
एलोन मस्क के बेटे को ट्रांसजेंडर ‘बना दिया’ गया।
इस घटना ने मस्क को इस कारपोरेट का व्यक्तिगत शत्रु बना दिया।
मस्क और ट्रंप ने सारी बाधाओं को उखाड़ते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया और उसके बाद शुरू हुआ है उनका इस वैश्विक कोर्पोरेट वर्ग के साथ युद्ध।
रूस का समर्थन व झेलेन्स्की को युद्ध बंद कर खनिज समझौते के लिए दवाब डालने का उद्देश्य वस्तुतः न केवल हथियार लॉबी की कमर तोडना है बल्कि इस युद्ध के लाभों को मस्क व उनके समर्थक कोरपोरेट को स्थानान्तरित करना है।
यानि मेहनत आर्म्स लॉबी की और फायदा मस्क लॉबी का।
एक तीर दो शिकार।
नाटो के रक्षा खर्च से स्वयं को अलग करने का अर्थ ही है अमेरिकी डीप स्टेट की आर्म्स लॉबी के दबदबे को खत्म करना।
अब आप भारत को एफ 35 बेचने के मुद्दे पर ट्रंप की भाषा से कहीं से भी किसी को लगता है कि वाकई वह चाहते हैं कि भारत एफ 35 खरीदे?
वाकई आपको लगता है कि ट्रम्प-मस्क यह नहीं जानते कि क्रेता के प्रति विक्रेता की भाषा क्या होती है? और ऐसी भाषा से तो होता हुआ सौदा भी खतरे में पड़ जायेगा।
वस्तुतः ट्रंप-मस्क चाहते ही नहीं कि यह सौदा हो।
आर्म्स लॉबी को एक और झटका।
अब जरा टेरिफ की ओर देखिये कि अमेरिका कनाडा और यूरोप के उन उत्पादों पर टेरिफ बढ़ा रहे हैं जो उनके विरोधी डीप स्टेट ग्रुप के आर्थिक हितों को चोट पहुंचे और जवाब में कनाडा, यूरोप व चीन की लॉबी उन अमेरिकी उत्पादों पर बढ़ा रहे जिससे ट्रंप समर्थक लॉबी सम्बंधित है।
भारत पर कुछ मामलों में असर हुआ है परन्तु यह और कुछ नहीं बल्कि मस्क और उनके गुट के कोरपोरेट के उत्पादों के लिए बाजार खोलने का दवाब बनाने का प्रयास भर है।
इसलिए वर्तमान में जो कुछ चल रहा है वह राष्ट्रो का संघर्ष कतई नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर चल रहा कारपोरेट युद्ध है जिसमें एक ओर है–
प्रतीकात्मक रूप से जॉर्ज सोरोस के नेतृत्व वाली अमेरिकी आर्म्स लॉबी, मेडिसिन लॉबी, यूरोप के बैंकर्स, यूरोप व अमेरिका की की लिबरल पार्टियां, भारत में कांग्रेस, और चीन की कंपनी ‘काम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना’।
दूसरी ओर हैं-
मस्क के नेतृत्व वाले इलेक्ट्रिक ट्रांसपोर्ट, कंप्यूटर, स्पेस, आयल लॉबी व अन्य क्षेत्रों वाले कारपोरेटस, यूरोप व अमेरिका के दक्षिणपंथी, राष्ट्रवादी, रूस के कारपोरेट।
भारत हमेशा की तरह ‘गुट निरपेक्ष’ है।
अभी तुरंत के परिदृश्य में भारत की स्थिति पेवेलियन में पैड पहनकर बैटिंग करने को तैयार बैठे बैटमैन की है जो अपनी बारी का इन्तजार कर रहा है।
रवीश कुमार छाप विद्वेषी व्यक्ति जो वैश्विक राजनीति में मान-अपमान जैसी बकवाद पेलते हैं उनके लिए वैश्विक राजनीति सिर्फ स्टूडियो का पोडियम है जिसमें वे विश्लेषण के स्थान पर सिर्फ शब्दों की जुगाली करते हैं।
निःसंदेह पिछले चार वर्षों के दौरान मोदी जी से दो भूलें हुई हैं–
1) बिडेन के काल में ट्रंप द्वारा मुलाकात के आग्रह को ठुकरा देना जिसने ट्रंप को व्यक्तिगत स्तर पर बहुत आहत महसूस कराया और ट्रंप के प्रतिशोधी व्यक्तित्व से परिचित मोदीजी के सलाहकारों को इसका ध्यान रखना था।
2)ट्रंप के शुरूआती बयानों, शपथग्रहण में व्यक्तिगत आमंत्रण न भेजने के बाद अमेरिका की गैरजरूरी यात्रा जिससे भारत को कोई लाभ नहीं हुआ।
अस्तु!
ट्रंप की मनोस्थिति के विश्लेषण के पश्चात मैं पहले ही नवंबर में कह चुका था कि इस बार वह केमिस्ट्री नहीं बनेगी।
लेकिन ट्रंप की आक्रामक नीति के कारण बुरा यह हो रहा है कि भारत सहित पूरे विश्व में उनके समर्थक राष्ट्रवादी भी लिबरल्स के झंडे के नीचे आने के लिए विवश हो गये हैं जिसे मैलोनी जैसी ट्रंप समर्थक को भी यूरोपीय यूनियन की बैठक में स्ट्रामर जैसे घुटे हुए डीप स्टेट के मोहरे का समर्थन करने पर विवश कर दिया है।
समस्या यही है कि यह युद्ध कारपोरेटस के बीच में चल रहा है लेकिन चल वामपंथ व दक्षिणपंथ के झंडों के नीचे।
पूरे प्रकरण में हास्यसपद यह है कि भारत का तथाकथित प्रबुद्ध वामपंथी वर्ग भी वैसी ही मूर्खतापूर्ण बातें कर रहा है जैसे कि भावुक राष्ट्रवादी वर्ग।
इस युद्ध में भविष्य में सबसे अधिक लाभ चीन को होने जा रहा है अगर ट्रंप-मस्क जोड़ी ने जल्दी ही भारत की शर्तों पर भारत से डील नहीं की तो।
चीन अभी भारत से दो गुना आगे है आर्थिक क्षेत्र में और डेढ़ गुना सामरिक क्षेत्र में लेकिन अगर ट्रंप-मस्क नहीं समझे तो यह अंतर और बढेगा, क्वाड की विश्वासनीयता शून्य हो जायेगी और चीन की कंपनी ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना’ आर्थिक व सामरिक क्षेत्र में पूरे अमेरिका के बराबर हो चुकी होगी।
ट्रंप-मस्क को भारत के प्रख्यात कूटनीति विशारद कौटिल्य को पढ़ना चाहिए–
“राजा को अपने सारे शत्रुओं से एक साथ नहीं लड़ना चाहिए और अपने शत्रुओं के शत्रुओं को सहायता देनी चाहिए।”
विडंबना यह हुई है कि व्यक्तिगत प्रतिशोध में ट्रंप-मस्क ने अपने सारे शत्रुओं को एक साथ खड़ा कर दिया है और अपने सबसे बड़े प्रतिद्वन्द्वी चीन केसबसे प्रभावी प्रतिद्वन्द्वी भारत को नाराज करते जा रहे हैं।
भारत में फिलहाल राजनैतिक हल्के में गहरी खामोशी आने वाले बहुत बड़े तूफान का संकेत है और हमारे वायसेनाध्यक्ष का बयान दोनों के लिए एक रेड सिग्नल है।
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