Donald Trump: ट्रम्प की तेजी देख कर राष्ट्रवाद तो समझ में आता है वैश्विक पटल पर दूरदर्शिता के स्थान पर दुर्दशा अधिक दृष्टिगत हो रही है..समझिये परख सक्सेना की पारखी कलम से..
अमेरिका जब जापान की सुरक्षा करता है तो जापान सक्षम होते हुए भी खुद हथियार नहीं बनाता उल्टे अमेरिका से खरीदता है। जापान हथियार नहीं बनाता इसलिए अमेरिका के लिये बाजार बड़ा है, अन्यथा जापान एक प्रतिद्वंदी होता।
इस बहाने अमेरिकी सेना चीन के बिल्कुल बगल मे बैठी है, भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ डेटा शेयर करती है जाहिर है ये भी फ्री नहीं होगा। भारत ऑस्ट्रेलिया बदले मे कुछ देते ही होंगे। एक ही डील मे अमेरिका के इतने फायदे है।
लेकिन ट्रम्प को बस अमेरिका द्वारा प्रदत्त सुरक्षा दिख रही है, ये स्ट्रेट फॉरवर्ड एटिट्यूड नहीं बल्कि नादानी है।
सभी देश अपनी मुद्रा को डॉलर से लिंक करते है क्योंकि सोना अफ्रीका और रूस के पास ज्यादा था ऐसे मे यूरोपीय देशो को वर्चस्व का डर लगने लगा और उन्होंने डॉलर को चुना।
उस समय अमेरिका ने डॉलर ना थोपने का वचन दिया था, डॉलर और हथियारों की वज़ह से यूरोपीय देशो को एक सुकून था कि रूस से बचे रहेंगे इसलिए अमेरिका की हर मनमानी मान लेते थे।
डोनाल्ड ट्रम्प अब दुनिया को मजबूर कर रहे है कि वो या तो मनमानी सहन करें या फिर अमेरिका का विकल्प ढूंढ़ ले। कमजोर देश तो मनमानी सह लेंगे मगर भारत, ऑस्ट्रेलिया, फ़्रांस और जर्मनी जैसे देश विकल्प ही तलाशेंगे।
यूरोपीय यूनियन ने भारत के साथ फ्री ट्रेड की वार्ता बढ़ा दी, फ़्रांस को तो खुद भारत ने अपना छोटा भाई घोषित किया हुआ है, ब्रिटेन मे लेबर पार्टी सत्ता मे है मगर बीजेपी के साथ अपने मतभेद भूलकर राष्ट्र हित देख रही है।
ऑस्ट्रेलिया ने भारत के साथ पहले ही फ्री ट्रेड डील कर लीं है। फिलिपिंस ने अमेरिका की जगह भारतीय हथियारों को वरीयता दी तो वियतनाम भी कुछ ऐसी ही उधेड़बुन मे लग गया।
ये वे देश है जो अमेरिका का विकल्प तलाश रहे है। प्रथम विश्व युद्ध के समय भी कुछ ऐसा ही अमेरिका के संदर्भ मे हुआ था।
यदि आपको लगता है कि ट्रम्प तो बड़े धाकड़ फैसले ले रहे है, किसी से दब नहीं रहे है, सुपरपॉवर वाली पॉवर दिखा रहे है। तो फिर आपने अमेरिका का इतिहास पढ़ा ही नहीं है।
राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमन ने महज आधे घंटे मे जापान पर परमाणु हमले का निर्णय लिया था, लिंडन बी जोनसन ने एक महीने के अंदर अमेरिकी सेना वियतनाम मे उतार दी थी।
जॉर्ज एच डब्लू बुश ने 20 दिन के अंदर इराक पर हमला कर दिया था, उनके बेटे जॉर्ज बुश ने एक माह मे काबुल पर अमेरिकी परचम लहरा दिया था।
इसलिए यदि आपको अमेरिका अब अकड़ू दिख रहा है तो फिर ये आपका आंकलन मात्र है, आपने शायद उसका इतिहास नहीं पढ़ा।
डोनाल्ड ट्रम्प महज अहंकार दिखा रहे है, शी जिनपिंग की गलती दोहरा रहे है, अमेरिका के वे रहस्य जो उसे सुपरपॉवर बनाते है ट्रम्प उन्हें मिट्टी मे मिला रहे है।
पांडव एक स्ट्रेटजी के साथ चले, 18 मे से 11 दिन पराजित हुए उसके बावजूद अंत मे विजयी रहे। वही रावण ने ताबड़तोड़ फैसले लिये, आखिर मे देवताओं से जीतने वाला मनुष्य के हाथो मर गया
इसलिए आप यदि भूराजनीति मे नए है तो ट्रम्प से लिपट जाइये क्योंकि आपने अमेरिकी समुद्र की गहराई देखी ही नहीं है मगर यदि आपने इतिहास पढ़ा है तो मुस्कुराइये भारत के लिये एक अलग रास्ता बन रहा है।
(परख सक्सेना)