Exclusive on Bangladesh Bravado: विशेष रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश जैसा कंग्लादेश भी अब भारत को आँख दिखाने की जुर्रत कर रहा है..
(विशेष संवाददाता द्वारा)
हाल ही में बांग्लादेश के एक सेवानिवृत्त मेजर जनरल द्वारा दिए गए विवादित बयान ने भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों में नया तनाव उत्पन्न कर दिया है। यह बयान न केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा सवाल उठाता है, बल्कि दक्षिण एशिया की सुरक्षा और स्थिरता पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
बयान का स्रोत और संदर्भ
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के करीबी और ‘नेशनल इंडिपेंडेंट इन्वेस्टिगेशन कमीशन’ के प्रमुख, सेवानिवृत्त मेजर जनरल ए.एल.एम. फज़लुर रहमान ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा:
“अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो बांग्लादेश को भारत के सात उत्तर-पूर्वी राज्यों पर कब्जा करना होगा। इस दिशा में मुझे लगता है कि चीन के साथ संयुक्त सैन्य व्यवस्था पर चर्चा शुरू करना जरूरी है।”
यह बयान उस आतंकी हमले के संदर्भ में दिया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में 26 नागरिक मारे गए थे। रहमान का कहना है कि अगर भारत इस हमले का जवाब पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई से देता है, तो बांग्लादेश को ‘रणनीतिक प्रतिक्रिया’ के तौर पर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों पर कब्जा करना चाहिए।
भारत की प्रतिक्रिया और कूटनीतिक तनाव
भारत की ओर से आधिकारिक प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने BIMSTEC देशों की एक बैठक में परोक्ष रूप से टिप्पणी करते हुए कहा:
“हमारा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र BIMSTEC के लिए एक कनेक्टिविटी हब बन रहा है, जहां सड़कों, रेलवे, जलमार्गों, ग्रिड्स और पाइपलाइनों का एक विस्तृत नेटवर्क विकसित किया जा रहा है।”
इस बयान को बांग्लादेश की ओर से की गई हालिया टिप्पणियों का परोक्ष उत्तर माना जा रहा है।
मुहम्मद यूनुस की चीन यात्रा और समुद्री ‘गार्जियन’ की परिकल्पना
मार्च में चीन की यात्रा के दौरान मुहम्मद यूनुस ने भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को ‘landlocked’ यानी स्थल-आवृत्त बताया और बांग्लादेश को ‘समुद्र का एकमात्र संरक्षक’ (only guardian of the ocean) करार दिया। उन्होंने इसे चीन की आर्थिक विस्तार नीति से जोड़ते हुए एक ‘विशाल अवसर’ बताया था।
पारस्परिक सहयोग की बजाय अविश्वास का माहौल
जहाँ एक ओर भारत-बांग्लादेश के बीच हाल के वर्षों में कनेक्टिविटी, ऊर्जा सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की कोशिशें हो रही थीं, वहीं इस तरह के बयान दोनों देशों के बीच गहराते अविश्वास को दर्शाते हैं।
भारत ने कुछ ही दिनों बाद बांग्लादेशी निर्यात माल के भारतीय हवाई अड्डों और बंदरगाहों के जरिए तीसरे देशों में ट्रांजिट की पांच साल पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर दिया। भारत ने इसके पीछे लॉजिस्टिक्स पर बढ़ते दबाव का कारण बताया, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि यह एक कूटनीतिक प्रतिक्रिया हो सकती है।
महत्वपूर्ण संदेश
फज़लुर रहमान का यह बयान केवल एक सेवानिवृत्त अधिकारी की राय भर नहीं है — यह एक संभावित रणनीतिक दिशा का संकेत भी हो सकता है, विशेष रूप से जब उसे अंतरिम सरकार के करीबी लोगों का समर्थन प्राप्त हो। यह मामला अब केवल भारत-बांग्लादेश संबंधों का नहीं रहा, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
अब यह देखने वाली बात होगी कि दोनों देश इस घटनाक्रम को लेकर कैसे कूटनीतिक कदम उठाते हैं और क्या वे तनाव को दूर कर एक सहयोगात्मक भविष्य की ओर बढ़ पाएंगे।
(अर्चना शेरी)