Friendship Day प्रति वर्ष मित्रता के सम्बन्ध का उत्सव मनाने का एक सुन्दर दिवस होता है। इस बार यह 3 अगस्त को मनाया जाएगा ..
जब भी सच्ची दोस्ती की बात आती है, तो सबसे पहले श्रीकृष्ण और उनके गरीब मित्र सुदामा की कहानी याद आती है। यह कहानी नहीं एक ऐतिहासिक संस्मरण है जो भगवान कृष्ण के अद्भुत प्रेम चरित्र का दर्शन कराती है। यह एक ऐसा उदाहरण है जो बताता है कि सच्ची दोस्ती में न रंग-रूप मायने रखता है, न पैसे और न ही कोई ओहदा।
श्रीकृष्ण बने राजा, सुदामा हो गए गरीब
बचपन में श्रीकृष्ण और सुदामा एक साथ आश्रम में पढ़ते थे। समय बीता और श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बन गए। वहीं, सुदामा इतने गरीब हो गए थे कि उन्हें अपने परिवार का पेट भरने तक में कठिनाई होने लगी। पत्नी-बच्चों का पालन करना मुश्किल हो गया था।
पत्नी ने दी सलाह – श्रीकृष्ण से मदद मांगो
एक दिन सुदामा की पत्नी सुशीला ने कहा, “आप श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र हैं, आज वो राजा हैं। क्यों न उनसे मदद मांगी जाए?” सुदामा को यह बात कहते हुए थोड़ी झिझक हुई, लेकिन मजबूरी में वे तैयार हो गए।
तीन मुट्ठी चावल की पोटली लेकर पहुंचे द्वारका
सुदामा के पास भेंट देने को कुछ नहीं था। तब उनकी पत्नी ने पड़ोस से तीन मुट्ठी चावल उधार लिए और एक छोटी सी पोटली में बांधकर उन्हें दी। सुदामा चल पड़े अपने मित्र से मिलने।
द्वारका पहुंचने पर जब वे महल के बाहर खड़े थे, तो द्वारपालों ने उन्हें गरीब समझकर नजरअंदाज कर दिया। लेकिन जैसे ही श्रीकृष्ण को पता चला कि उनका बचपन का सखा आया है, वे सिंहासन छोड़ दौड़ते हुए महल के बाहर पहुंचे।
दोस्त को देखकर छलक पड़ीं भावनाएं
दरवाजे पर खड़े सुदामा को देखकर श्रीकृष्ण ने उन्हें गले से लगा लिया, उनकी आंखों में आंसू आ गए। वे सुदामा को महल के भीतर ले गए, उन्हें सम्मानपूर्वक अपने सिंहासन पर बैठाया और खुद उनके पैर धोने लगे। यह देखकर सभी दरबारी चकित रह गए।
दो मुट्ठी चावल के बदले मिली अपार दौलत
इसके बाद श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा, “मेरे लिए क्या लाए हो सखा?” सुदामा शर्म से चुप हो गए और पोटली छिपा ली। लेकिन श्रीकृष्ण ने खुद ही वह पोटली ली और चावल खाने लगे।
पहली मुट्ठी चावल खाते ही श्रीकृष्ण ने सुदामा को एक लोक की संपत्ति दे दी। दूसरी मुट्ठी चावल पर दो लोकों की संपत्ति दे दी। जैसे ही उन्होंने तीसरी मुट्ठी चावल खाने की कोशिश की, तभी रुक्मिणी जी ने कहा – “प्रभु, अगर आप तीनों लोक दे देंगे, तो बाकी प्राणी और देवता कहां जाएंगे?” श्रीकृष्ण मुस्कुराए और रुक गए।
बिना मांगे मिली संपत्ति – प्रेम का अद्भुत फल
सुदामा ने कुछ नहीं मांगा था, लेकिन उनके मन का प्रेम इतना गहरा था कि श्रीकृष्ण ने उन्हें सब कुछ दे दिया – मान, सम्मान, वैभव और सुख।
यह कहानी सिखाती है कि सच्ची दोस्ती में स्वार्थ नहीं होता। प्रेम और विश्वास ही उसका असली आधार होते हैं।
Friendship Day पर श्रीकृष्ण और सुदामा की यह मित्रता हर किसी के लिए प्रेरणा है।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी किसलय इंद्रनील)