Friday, August 8, 2025
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Geeta Ka Gyan -2: Chapter No. 1 & श्लोक No. 2 की पूरी व्याख्या यहाँ पढ़िए

(Geeta Ka Gyan - 2 में यहां पढ़ें शब्दशः एवं पूर्ण व्याख्या श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग) के श्लोक क्रमांक 2 की..

(Geeta Ka Gyan – 2 में यहां पढ़ें शब्दशः एवं पूर्ण व्याख्या श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग) के श्लोक क्रमांक 2 की:

सञ्जय उवाच:
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा |
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत् ॥२॥

शब्द दर शब्द अर्थ:

  1. सञ्जय उवाच → संजय ने कहा
  2. दृष्ट्वा → देखकर
  3. तु → किन्तु / तो
  4. पाण्डवानीकं → पाण्डवों की सेना (आनीक = सेना)
  5. व्यूढं → व्यवस्थित रूप से सजी हुई / युद्ध के लिए तैयार
  6. दुर्योधनः → दुर्योधन (कौरवों का राजा)
  7. तदा → उस समय
  8. आचार्यम् → आचार्य (गुरु द्रोणाचार्य)
  9. उपसंगम्य → समीप जाकर / पास जाकर
  10. राजा → राजा (दुर्योधन को संदर्भित करता है)
  11. वचनम् → वचन / शब्द
  12. अब्रवीत् → कहा

पूर्ण अर्थ

संजय ने कहा— उस समय, जब दुर्योधन ने युद्ध के लिए व्यवस्थित रूप से सजी हुई पाण्डवों की सेना को देखा, तब वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गया और उनसे कहा।

श्लोक की व्याख्या

इस श्लोक में संजय युद्ध क्षेत्र का दृश्य धृतराष्ट्र को सुनाते हैं। जब दुर्योधन ने पाण्डवों की सेना को सुव्यवस्थित रूप में खड़ा देखा, तो वह अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गया। वह युद्ध की परिस्थितियों को देखकर चिंतित हो गया और गुरु से बातचीत करने लगा।

यह श्लोक महाभारत युद्ध के प्रारंभिक क्षणों को दर्शाता है, जहाँ दुर्योधन अपने गुरु से मार्गदर्शन लेने के लिए जाता है, क्योंकि वह पाण्डवों की सशक्त सेना को देखकर मानसिक रूप से अस्थिर हो जाता है।

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