Israel Vs Iran: ईरान पर इजरायल ने ये हमला तब किया जब ईरान के सहयोगी देश आंतरिक या वैश्विक संकटों में उलझे हुए है..
इजरायल ने ईरान पर हमला करने के लिए ऐसा समय चुना जब उसके प्रमुख सहयोगी देश मदद करने की स्थिति में नहीं हैं। रूस यूक्रेन युद्ध में फंसा है, चीन तटस्थ है, और अरब देश खामोश। इस रणनीति ने ईरान को सैन्य और आर्थिक रूप से कमजोर किया, हालांकि इसका असर वैश्विक तेल बाजार और भारत जैसे देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
13 जून 2025 को इजरायल ने “ऑपरेशन राइजिंग लायन” के तहत ईरान के सैन्य अड्डों, परमाणु ठिकानों और तेल-गैस संयंत्रों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। इस हमले में 200 से ज्यादा फाइटर जेट शामिल हुए, जिसमें ईरान के चार शीर्ष सैन्य कमांडर, छह परमाणु वैज्ञानिक और 78 नागरिक मारे गए।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इजरायल ने हमला करने के लिए अत्यंत सूझबूझ वाला समय चुना, जब ईरान के बड़े साझेदार — विशेषकर रूस — स्वयं संकट में हैं और मदद नहीं कर पा रहे। अन्य सहयोगी देश भी या तो तटस्थ हैं या फिर कूटनीतिक चुप्पी साधे हुए हैं।
इजरायल ने यही समय क्यों चुना?
इजरायल ने हमला तब किया जब ईरान के सहयोगी देश आंतरिक या वैश्विक संकटों में उलझे हैं। इससे उसे सैन्य और कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर बढ़त मिली। प्रमुख कारण हैं:
रूस की कमजोर स्थिति
रूस, जो ईरान का सबसे बड़ा सैन्य साझेदार है, यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है। उसकी सेना और अर्थव्यवस्था दोनों पर पश्चिमी प्रतिबंधों का भारी असर पड़ा है।
रूस पहले ईरान को S-300 और S-400 हवाई सुरक्षा प्रणाली दे चुका है, लेकिन अब उसके पास न अतिरिक्त हथियार हैं, न मदद की स्थिति।
ईरान ने रूस को ड्रोन्स और मिसाइलें दी थीं, लेकिन बदले में मदद पाने की उम्मीद अब अधूरी है।
चीन की तटस्थता
चीन ईरान का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और उसका तेल खरीदता है।
लेकिन चीन इजरायल और अरब देशों से भी व्यापार करता है, इसीलिए उसने खुलकर ईरान का साथ नहीं दिया।
मंदी झेल रही चीन की अर्थव्यवस्था वैश्विक तेल संकट नहीं चाहती, इसलिए वह केवल कूटनीतिक समर्थन तक सीमित है।
अरब देशों की दूरी
सऊदी अरब, UAE और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के देश ईरान से ऐतिहासिक रूप से असहज रहे हैं।
2023 में चीन की मध्यस्थता से सऊदी-ईरान रिश्तों में सुधार की कोशिश हुई थी, लेकिन युद्ध के वक्त ये देश चुप्पी साधे हैं।
इजरायल के साथ इनके कूटनीतिक और व्यापारिक रिश्ते मजबूत हो चुके हैं, और वे इस टकराव से दूर रहना चाहते हैं ताकि उनकी अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित न हों।
अमेरिका और पश्चिम का समर्थन
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इजरायल का खुला समर्थन किया है।
अमेरिका ने F-35, मिसाइलें और बम मुहैया कराए हैं। USS Gerald R. Ford युद्धपोत भूमध्य सागर में तैनात है।
अमेरिका ने ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे उसकी हथियार खरीदने और तेल बेचने की क्षमता घट गई है।
ईरान की आंतरिक कमजोरी
ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से अमेरिकी प्रतिबंधों, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी से जूझ रही है।
ईरानी रियाल की कीमत गिरी है, जनता में असंतोष है।
सेना में हथियारों की भारी कमी है, लड़ाकू विमान पुराने हैं और वायु सुरक्षा प्रणाली सीमित है।
हमास और हिज्बुल्लाह जैसे ईरान समर्थित संगठन पहले से इजरायल से जूझ रहे हैं, जिससे ईरान की सैन्य ताकत बंटी हुई है।
इजरायल की रणनीति
इजरायल ने लंबे समय से इस हमले की योजना बनाई थी और इन रणनीतियों को अपनाया:
F-35 का इस्तेमाल: अत्याधुनिक F-35I “Adir” विमानों से रडार से बचते हुए सटीक हमले।
सही समय का चुनाव: जब ईरान सबसे कमजोर स्थिति में था।
मुख्य ठिकानों को निशाना: नतांज, फोर्डो जैसे परमाणु संयंत्र और खार्क द्वीप जैसे तेल अड्डे।
मोसाद की खुफिया जानकारी: ईरान के वैज्ञानिकों और सैन्य ठिकानों की सटीक लोकेशन के आधार पर हमले।
ईरान का जवाबी हमला
ईरान ने 100 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन दागे — लक्ष्य थे तेल अवीव, यरुशलम और डिमोना।
इजरायल की ‘आयरन डोम’ और ‘डेविड स्लिंग’ रक्षा प्रणाली ने अधिकतर मिसाइलें नष्ट कर दीं।
ईरान ने दावा किया कि उसने दो F-35 गिराए और एक महिला पायलट को गिरफ्तार किया — लेकिन इजरायल ने इस दावे को खारिज कर दिया।
भारत पर असर
तेल की कीमतें: भारत 85% कच्चा तेल आयात करता है, जिसमें से 60% होर्मुज की खाड़ी से आता है। हमले के बाद तेल की कीमतें $75 प्रति बैरल से ऊपर गईं, और युद्ध बढ़ने पर $100 से ऊपर जा सकती हैं।
व्यापार: इजरायल ($10.7 बिलियन) और ईरान ($2.33 बिलियन) दोनों के साथ भारत का व्यापार प्रभावित हो सकता है।
निर्यात लागत: सुएज नहर और लाल सागर मार्ग बाधित होने से लागत 40-50% तक बढ़ चुकी है।
कूटनीति: भारत ने दोनों देशों से संयम की अपील की है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत क्षेत्रीय स्थिरता चाहता है।
दुनिया की प्रतिक्रिया
अमेरिका: राष्ट्रपति बाइडन ने इजरायल का समर्थन किया लेकिन युद्ध न बढ़ाने की सलाह दी।
रूस: राष्ट्रपति पुतिन ने हमले की निंदा की लेकिन कोई सैन्य मदद नहीं दी।
संयुक्त राष्ट्र: महासचिव गुटेरेस ने संयम बरतने की अपील की।
सऊदी अरब और UAE: दोनों ने तटस्थ रहने का फैसला किया।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी सुमन पारिजात)