Friday, August 8, 2025
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Jagannath Rath Yatra 2025: क्यों की जाती है सोने की झाड़ू से सफाई? – क्या है रथ की रस्सी छूने की मान्यता? – पढ़िये यहाँ

Jagannath Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में दुनिया भर के श्रद्धालु उड़ीसा आते हैं..सनातन धर्म की इस महान रथयात्रा की परंपरा के पीछे क्या कारण छुपा हुआ है, जानिये..

Jagannath Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में दुनिया भर के श्रद्धालु उड़ीसा आते हैं..सनातन धर्म की इस महान रथयात्रा की परंपरा के पीछे क्या कारण छुपा हुआ है, जानिये..

उड़ीसा राज्य की विश्वप्रसिद्ध धार्मिक नगरी पुरी में आज  27 जून को भगवान श्रीजगन्नाथ की वर्ष 2025 की भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाएगा। लाखों श्रद्धालु इस दिव्य आयोजन में भाग लेने के लिए देश-विदेश से पुरी पहुंच चुके हैं। प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए हैं, जबकि पुलिस बल हाई अलर्ट पर है।

आज से शुरू होगी रथ यात्रा

शाम 4 बजे तक सभी धार्मिक अनुष्ठान पूरे होने के बाद भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विधिवत रूप से प्रारंभ होगी। 11 जून को स्नान पूर्णिमा के दिन स्नान अनुष्ठान के बाद भगवान के दर्शन बंद कर दिए गए थे। अब इतने दिनों बाद भगवान रथ पर सवार होकर अपने भक्तों को दर्शन देंगे।
रथ खींचने से मिटते हैं पाप

हिंदू धर्म में रथ यात्रा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि किसी श्रद्धालु को भगवान के रथ की रस्सी खींचने का सौभाग्य प्राप्त होता है, तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सोने की झाड़ू से सफाई क्यों?

इस यात्रा की एक अत्यंत पावन परंपरा है ‘छेरा पहरा’, जिसमें रथ यात्रा के मार्ग की सफाई सोने की झाड़ू से की जाती है। यह रस्म दर्शाती है कि भगवान के स्वागत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। सोना पवित्र धातु मानी जाती है और देवपूजा में इसका विशेष महत्व होता है। यह रस्म आध्यात्मिक शुद्धता और समर्पण का प्रतीक है।

रथों की रस्सियों के विशेष नाम

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों में जुड़ी रस्सियों के नाम भी अलग-अलग होते हैं:

भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले नंदीघोष रथ की रस्सी को ‘शंखचूड़ा नाड़ी’ कहा जाता है।

बलभद्र के 14 पहियों वाले तालध्वज रथ की रस्सी को ‘वासुकी’ नाम दिया गया है।

देवी सुभद्रा के 12 पहियों वाले पद्मध्वज रथ की रस्सी को ‘स्वर्णचूड़ा नाड़ी’ कहते हैं।

इन रस्सियों को छूना और खींचना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।

रथ यात्रा की पौराणिक कथा क्या है?

पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवी सुभद्रा ने पुरी नगर देखने की इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र उन्हें रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण पर ले गए। यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी के मंदिर गुंडिचा मंदिर में सात दिन के लिए ठहरे। तभी से यह परंपरा हर वर्ष रथ यात्रा के रूप में मनाई जाती है।

यात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जहाँ भगवान कुछ दिन विश्राम करते हैं और फिर वापस मंदिर लौटते हैं।

(प्रस्तुति- त्रिपाठी किसलय इन्द्रनील)

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