Jawagal Shrinath: जब दुनिया में वसीम अकरम, एलन डोनाल्ड, डेरेन गोफ, कोर्टनी वॉल्श, एम्ब्रोज़ और मैक्ग्रा जैसे दिग्गज गेंदबाज़ थे, तब भारत का एक गेन्दबाज इन महान गेंदबाज़ों की लिस्ट में शान से खड़ा था – जवागल श्रीनाथ..
मेरे बचपन के हीरो जवागल श्रीनाथ थे। जब दुनिया के पास वसीम अकरम, एलन डोनाल्ड, डेरेन गोफ, कोर्टनी वॉल्श, एम्ब्रोज़ और मैक्ग्रा जैसे दिग्गज गेंदबाज़ थे, तब भारत के पास भी एक नाम था जो इन महान गेंदबाज़ों की लिस्ट में शान से खड़ा था – जवागल श्रीनाथ।
भारत ने जब-जब तेज गेंदबाज़ों की कमी महसूस की, तब-तब सबसे पहले नाम आता था – श्रीनाथ का।
मायूस करने वाली पिचों पर भी उन्होंने ऐसी धार और रफ्तार दिखाई कि विरोधी बल्लेबाज़ सहम जाते थे। 1991 में जब उन्होंने टीम इंडिया के लिए डेब्यू किया, तब तक भारत को सिर्फ स्पिन गेंदबाज़ों की धरती कहा जाता था। लेकिन श्रीनाथ ने आते ही यह साफ कर दिया कि अब ये पहचान बदलने वाली है।
उनकी गेंदबाज़ी की सबसे बड़ी ताकत थी – लंबा रनअप, लगातार तेज़ रफ्तार और आखिरी पल तक गेंद को स्विंग कराने की कला।140–150 किमी प्रति घंटा की गति ने उन्हें भारत का पहला असली स्पीडस्टर बना दिया। वे सिर्फ तेज नहीं थे, बल्कि नई और पुरानी दोनों गेंद से उतने ही खतरनाक थे।
श्रीनाथ की यॉर्कर पहचान बन गई थी और बाउंसर से उन्होंने बड़े-बड़े बल्लेबाज़ों को हैरान कर दिया था। यहां तक कहा जाता है कि सचिन तेंदुलकर भी मानते थे कि नेट्स में श्रीनाथ का सामना करना असली मैच खेलने से भी ज्यादा कठिन है।
1994 के हीरो कप ने उन्हें असली हीरो बना दिया और भारत के सबसे तेज गेंदबाज़ का ताज उनके नाम हुआ। 1996 वर्ल्ड कप में उन्होंने अपना जलवा बिखेरा और भारतीय गेंदबाज़ी के सबसे बड़े हथियार के रूप में उभरे। ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के खिलाफ उनकी घातक स्पेल आज भी याद की जाती हैं।
1999 वर्ल्ड कप में उन्होंने अपनी तेज़ गेंदों से भारतीय उम्मीदों को ज़िंदा रखा और साबित किया कि भारतीय पिचों पर भी स्पीड और स्विंग का मेल विरोधी टीमों को तबाह कर सकता है।
2000 के दशक तक आते-आते उनकी कलाई और कंधे पर दबाव बढ़ गया। चोटों ने उन्हें परेशान किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 2002–03 में उन्होंने संन्यास का ऐलान कर दिया, लेकिन किस्मत ने उन्हें आखिरी बार बुलाया।
सौरव गांगुली, जो उस समय टीम इंडिया के कप्तान थे, ने उनसे कहा –“हमें वर्ल्ड कप में अनुभव और रफ्तार दोनों चाहिए, और ये सिर्फ तुम्हारे पास है।”
गांगुली की बात मानकर श्रीनाथ ने वापसी की और 2003 वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के लिए उतरे।
यही वह टूर्नामेंट था जिसमें भारत फाइनल तक पहुंचा। श्रीनाथ ने 2003 वर्ल्ड कप में 16 विकेट लिए और अपनी आखिरी गेंद तक टीम को सब कुछ दिया। फाइनल भले ही ऑस्ट्रेलिया से हार गया, लेकिन श्रीनाथ ने गर्व और सम्मान के साथ अपने करियर को अलविदा कहा।
उनके करियर में 300 से ज्यादा ODI विकेट और 200 से ज्यादा टेस्ट विकेट हैं। वे कपिल देव के बाद भारत के सबसे भरोसेमंद तेज गेंदबाज़ साबित हुए। उन्हें अक्सर “मैसूर एक्सप्रेस” कहा जाता था, क्योंकि उनकी गेंदबाज़ी सचमुच किसी दौड़ती ट्रेन से कम नहीं थी। उनकी लाइन-लेंथ और फिटनेस आने वाली पीढ़ियों के लिए सबक रही।
आज भी जब भारत के महान तेज गेंदबाज़ों की बात होती है, तो कपिल देव, ज़हीर ख़ान और जसप्रीत बुमराह के साथ सबसे पहले नाम लिया जाता है – जवागल श्रीनाथ का।
वे सिर्फ तेज गेंदबाज़ नहीं थे, बल्कि एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने यह दिखाया कि भारत की धरती पर भी स्पीड का राज हो सकता है। उनकी विरासत ने इरफान पठान, आशीष नेहरा, ज़हीर ख़ान और आज के बुमराह जैसे तेज गेंदबाज़ों को रास्ता दिखाया।
श्रीनाथ आज भी क्रिकेट से जुड़े हुए हैं, बतौर ICC मैच रेफरी। मैदान पर उन्होंने जितना अनुशासन दिखाया, उतना ही मैदान से बाहर भी बनाए रखा। जवागल श्रीनाथ ने भारत को यह सिखाया कि तेज गेंदबाज़ी सिर्फ ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज़ या पाकिस्तान की ताक़त नहीं है। भारत के पास भी वो रफ्तार है, वो धार है और वो जज़्बा है।
मैसूर का वह लड़का जिसने दुनिया को दिखाया कि भारतीय भी 150 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से खेल में तूफान ला सकते हैं। और इसी वजह से आज भी क्रिकेट फैंस उन्हें सिर्फ एक गेंदबाज़ नहीं, बल्कि भारत की स्पीड की पहचान मानते हैं – असली ‘मैसूर एक्सप्रेस’।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी इन्द्रनील)