Wednesday, June 25, 2025
Google search engine
Homeराष्ट्रMadhusudan Upadhyaye writes: कश्मीर में कुछ भी ठीक नहीं है !

Madhusudan Upadhyaye writes: कश्मीर में कुछ भी ठीक नहीं है !

Madhusudan Upadhyaye की कलम से जानिये कि कश्मीर भारत के पैसे पर पलता जरूर है पर यहां कुछ भी भारत का नहीं है -लोग भी नहीं और सोच भी नहीं !

Madhusudan Upadhyaye की कलम से जानिये कि कश्मीर भारत के पैसे पर पलता जरूर है पर यहां कुछ भी भारत का नहीं है -लोग भी नहीं और सोच भी नहीं !

मैं अभी कश्मीर में ही हूं। कल सुबह पहलगाम में ही था। पिछले कुछ समय से एक राजकीय अध्ययन यात्रा पर आया हूं। मैं स्वयं और मेरी पूरी टीम पूर्णतः सुरक्षित हैं, सुरक्षा बलों की लगातार निगरानी में हैं। परन्तु यह सच है कि यहां सब ठीक नहीं है। और यहीं क्यों? पूरे भारत में सब कुछ ठीक नहीं है।

सच तो ये है कि आज हम युद्ध में हैं। हम सभ्यताओं के संघर्ष से गुजर रहे हैं। सदियों से भारत इस युद्ध का मैदान रहा है। हम अपनी जमीनें लगातार खो रहे हैं। जन सबसे बड़ा धन है, हमारा जनधन भी हमसे छीना जा रहा है। कहीं वह जान लेकर कहीं धर्म लेकर हमसे हमारे जन छीने ले रहे हैं।

अफगानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश के सफल प्रयोगों के बाद कश्मीर इनकी नयी प्रयोगशाला है। यह प्रयोगशाला कामयाब होती दिखाई देती है। हम जल जन जंगल जमीन लगातार खोते आए हैं यहां।

लगभग एक सप्ताह की इस यात्रा के कुछ बिंदुओं को आपसे साझा करें , संभवतः कश्मीर की जटिलता को समझने में मदद मिले-

१) कश्मीरी मुसलमानों को किसी पर्यटक फर्यटन की कोई आवश्यकता नहीं। इनकी ट्रैवल एजेंसी इनका शिकारा, केसर, कहवा, शिलाजीत, मटन रोगन जोश़ सब छलावा है। इनके लिए समय काटने और मनोरंजन का साधन। औसत कश्मीरियों के घरों में इतना पैसा है कि केवल अपनी कालीनें बाहर फेंक दें तो उतने में लखनऊ, भोपाल, जयपुर में थ्री बीएचके फ्लैट आ जाए। बताने की आवश्यकता नहीं कि यहां एंटी-स्टेट एक्टिविज़्म एक फुल टाइम जॉब है, और दुनिया भर से इसके लिए मोटा फंडिंग आता है।

२) औसत कश्मीरी उसी ज़ुबान में बात करता है जिस भाषा में पाकिस्तान सेना के बड़े अधिकारी और कश्मीर के अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के लोग बोलते हैं। मसलन, वह कहेगा कि जनाब़ दिल्ली ने ये गलत फैसला किया, दिल्ली ने वो किया ये किया। वह कहेगा कि देखिए ये जमीन इंडियन आर्मी के कब्जे में है, ये बिल्डिंग इंडियन आर्मी के कब्जे में है, आदि आदि।

३) एक दो मंदिरों को छोड़ दिया जाए तो घाटी के अधिकांश मंदिर चाहें वह मार्तण्ड मंदिर हो या नारानाग हो, सुगंधेश हो, शंकरगौरीश्वर मंदिर हो, ममलेश्वर हो या इन जैसे अनेकों मंदिर सब भग्नावस्था में है। लोकल गाइड इन सब मंदिरों के टूटने का एक ही कारण बताएंगे कि जनाब़ बहुत बड़ा भूकम्प आया था। अधिकांश मंदिरों के भीतर एएसआई के संरक्षण में होते हुए भी मजारें बन गयी हैं।

४) हमारे जवान दुनिया का सबसे कठिन मोर्चा लड़ रहे हैं। राजनय और ग्लोबल सेंटिमेंट अगर हमारे पक्ष में हो, तो हमारी सेना यह युद्ध मात्र चार से पांच वर्ष में जीत सकती है।

५) राष्ट्रपति शासन बहुत ठीक विकल्प था। पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस, और न जाने कितने फ्रंट यह सब प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों और पाकिस्तान के मददगार हैं। अभी जिस आतंकी संगठन ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली उसका नाम है टीआरएफ, द रेजिस्टेंस फ्रंट। टीआरएफ में लश्कर-ए-तैयबा जैश ए मोहम्मद के लोग तो हैं ही यहां के राजनीतिक दलों के लोग भी शामिल है। इंटेलिजेंस को पता था कि कुछ तो होने वाला है, इन राजनीतिक लोगों को भी पता था। वैसे यह इंटेलिजेंस फेल्यर नहीं है, कभी विस्तार से लिखेंगे।

६) आप पूरी घाटी घूमिए, आपको कृत्रिम चेहरे ही दिखाई देंगे। ऐसा लगेगा जैसे कि आपसे कुछ छुपाया जा रहा है। अधिकांश हिन्दू स्थानों के नाम बदल दिए गये हैं। पहाड़ों और नदियों के भी। कश्मीर का वास्तविक इतिहास यहां किताबों में नहीं पढ़ाया जाता। जाकिर नाइक, मोहम्मद इशरार और हसनैन के तकरीरों के वीडियो यहां युवाओं के फोन में चलते ही रहते हैं। यहाँ के पाकिस्तान परस्त युवक-युवतियों की बस इतनी समझ है कि औसत हिन्दू केवल बुतपरस्त है और ये जाहिल कौम है, कत्ल किए जाने योग्य ही है।

निष्कर्ष कुल मिला कर ये है कि कश्मीर विवाद एक कृत्रिम विवाद है। इस विवाद का ईंधन इस्लामिक अतिवाद है। कुल जमा आठ दस परिवारों को इस विवाद से तगड़ा लाभ है। इस समस्या का समाधान है। भारतवर्ष की सेना और भारतवासी इसका समाधान निकाल ही लेंगे।

(डॉ मधुसूदन पाराशर)

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments